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Adverse Possession: क्या होता है एडवर्स पजेशन, अगर मकान मालिक हैं तो जरूर जान लें इसका कानून

Adverse Possession: एडवर्स पजेशन एक कानूनी सिद्धांत है. आइए जानते हैं क्या है इस सिद्धांत का मतलब और मकान मालिकों के लिए क्यों है यह जरूरी.

Adverse Possession: एडवर्स पजेशन भारतीय कानून का एक अनूठा सिद्धांत है जो किसी भी व्यक्ति को उस संपत्ति का कानूनी मलिक बनने की अनुमति देता है जिस पर वह मूल मलिक की अनुमति के बिना काफी लंबे समय से रह रहा है. आइए जानते हैं इस नियम के बारे में पूरी जानकारी.

क्या है यह नियम और उसका कानूनी आधार 

सीमा अधिनियम 1963 की धारा 65 के तहत निजी संपत्ति विवादों की समय सीमा 12 साल है. जिसका मतलब हुआ कि अगर वास्तविक स्वामी इस अवधि के अंदर अपनी संपत्ति वापस लेने या फिर कानूनी कार्रवाई करने में विफल हो जाता है तो वह उस व्यक्ति से संपत्ति खो सकता है जो उस पर कब्जा जमाए बैठा है.

आसान शब्दों में कहें तो अगर कोई व्यक्ति किसी जमीन या फिर संपत्ति पर 12 साल तक लगातार, खुलेआम और शांतिपूर्वक तरीके से रहता है और इस पर मूल मालिक कोई आपत्ति ना करें या फिर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं करता है तो कब्जा करने वाला व्यक्ति कानूनी रूप से स्वामित्व का दावा कर सकता है. 

क्या हैं शर्तें 

इस मामले में कब्जा इतना स्पष्ट होना चाहिए कि उस संपत्ति के मालिक को इसकी जानकारी हो.  साथ ही यह निर्बाध भी होना चाहिए और हिंसा या फिर गोपनीयता के आधार पर नहीं होना चाहिए. जब संपत्ति के मालिक को कब्जे के बारे में पता होता है लेकिन वह कानूनी कार्रवाई नहीं करना चाहता तो कब्जा करने वाले व्यक्ति के लिए दावा करना और भी ज्यादा मजबूत हो जाता है. 

मकान मालिकों के लिए यह कानून क्यों जरूरी है 

संपत्ति मालिक और मकान मालिक के लिए एडवर्स पजेशन को समझना काफी ज्यादा जरूरी है. सालों तक किसी संपत्ति की अपेक्षा करना या फिर किसी को वैध समझौते के बिना वहां पर रहने देना स्वामित्व अधिकारों को खोने की वजह बन सकता है. अदालत बिना किसी आपत्ती के लगातार कब्जे को इस बात का संकेत मानती है कि असली मालिक ने संपत्ति में अपना हित पूरी तरह से त्याग दिया है.

एडवर्स पजेशन के तहत किराएदारों की स्थिति

ज्यादातर मामले में किराएदार एडवांस्ड पजेशन के जरिए से स्वामित्व का दावा नहीं कर सकते क्योंकि वह किराए या फिर पट्टे के समझौते के तहत मकान मालिक की अनुमति के बाद ही संपत्ति पर कब्जा करते हैं. हालांकि जब समझौते का समय समाप्त हो जाता है और किराएदार मकान मालिक की तरफ से नवीनीकरण या फिर आपत्ति के बिना रहना जारी रखते हैं तब मुश्किलें खड़ी होती हैं. अगर यह स्थिति बिना किसी कार्रवाई या फिर लिखित स्वीकृति के 12 सालों से ज्यादा समय तक जारी रहती है तो किराएदार के कब्जे को अंत में माना जा सकता है. 

मकान मालिक अपनी संपत्ति की सुरक्षा कैसे करें 

मकान मालिकों को हमेशा एक उचित किराया या फिर पट्टे के समझौते के तहत किराएदार रखना चाहिए. इसी के साथ समय-समय पर उसका नवीनीकरण भी करना चाहिए. इस बात को पक्का करने के लिए कि संपत्ति आपके नियंत्रण में रहे नियमित दौरे और निरीक्षण की जरूरत होती है. 

सभी स्वामित्व रिकॉर्ड जैसे की रजिस्ट्री पत्र, टैक्स की रसीदें और बिजली के बिल अपने नाम पर ही रखें. अगर आपको पता चलता है कि किसी ने आपकी संपत्ति पर बिना अनुमति के कब्जा कर लिया है तो 12 साल का समय समाप्त होने से पहले तुरंत अदालत में कब्जे का मुकदमा दायर करें.

यह भी पढ़ें: 100 की जगह 99 का तेल डलवाने से कुछ नहीं होगा, पेट्रोल पंप पर नहीं चेक की ये चीज तो हो जाएगा फ्रॉड

स्पर्श गोयल को कंटेंट राइटिंग और स्क्रीनराइटिंग में चार साल का अनुभव है.  इन्होंने अपने करियर की शुरुआत नमस्कार भारत से की थी, जहां पर लिखने की बारीकियां सीखते हुए पत्रकारिता और लेखन की दुनिया में कदम रखा. इसके बाद ये डीएनपी न्यूज नेटवर्क, गाजियाबाद से जुड़े और यहां करीब दो साल तक काम किया.  इस दौरान इन्होंने न्यूज राइटिंग और स्क्रीनराइटिंग दोनों में अपनी पकड़ मजबूत की.

अब स्पर्श एबीपी के साथ अपनी लेखनी को निखार रहे हैं. इनकी खास रुचि जनरल नॉलेज (GK) बीट में है, जहां ये रोज़ नए विषयों पर रिसर्च करके अपने पाठकों को सरल, रोचक और तथ्यपूर्ण ढंग से जानकारी देते हैं.  

लेखन के अलावा स्पर्श को किताबें पढ़ना और सिनेमा देखना बेहद पसंद है.  स्क्रीनराइटिंग के अनुभव की वजह से ये कहानियों को दिलचस्प अंदाज़ में पेश करने में भी माहिर हैं.  खाली समय में वे नए विषयों पर रिसर्च करना और सोशल मीडिया पर अपडेट रहना पसंद करते हैं.

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