जिस विश्वविद्यालय में पढ़ते थे रामभद्राचार्य, भड़के वहां के छात्र, प्रेमानंद महाराज के समर्थन में कही ये बात
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से अध्ययन किया है. प्रेमानंद महाराज पर दिए गए बयान को लेकर एबीपी लाइव से बातचीत के दौरान शोध छात्रों ने अपना पक्ष रखा.

जगद्गुरु रामभद्राचार्य द्वारा संत प्रेमानंद महाराज को संस्कृत का ज्ञान होने के संदर्भ में दिए गए चुनौती के बाद देश भर में चर्चाओं का दौर तेज है. इसी क्रम में अब रामभद्राचार्य के तेवर भी नरम नजर आ रहे हैं. उनका कहना है कि उन्होंने कोई अभद्र टिप्पणी नहीं की, प्रेमानंद महाराज उनके पुत्रवत समान है. सिर्फ उनका उद्देश्य संस्कृत के अध्ययन के लिए कहना था. अब इस मामले पर एबीपी लाइव ने उसी संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्रों से बातचीत की जहां से रामभद्राचार्य ने अपना संस्कृत अध्ययन पूरा किया है.
ऐसे बयानों से सनातन को चोट पहुंचता है - छात्र
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से अध्ययन किया है. प्रेमानंद महाराज पर दिए गए बयान को लेकर एबीपी लाइव से बातचीत के दौरान शोध छात्र अनुराग पांडे ने कहा कि - हमारे लिए दोनों पूजनीय है. दोनों की बातें सनातन धर्म के लिए अति महत्वपूर्ण है लेकिन जिस तरह से किसी दूसरे धर्माचार्य पर कोई टिप्पणी करता है तो वह सीधे सनातन धर्म पर ही प्रहार होता है. इसलिए चाहे कोई भी हो उसे दूसरे धर्माचार्य अथवा व्यास पीठ से बोलते समय अपनी मर्यादा का ख्याल होना चाहिए. वहीं छात्र रोहित मिश्रा का कहना है कि - रामभद्राचार्य अपने बयान से सनातन धर्म का ही नुकसान कर रहे हैं. जबकि प्रेमानंद महाराज ने एक बड़ी आबादी को अपने उपदेश और वचन से अच्छे मार्ग पर लाया है. यह अतिशयोक्ति नहीं बल्कि सच है कि लोगों के जीवन को सकारात्मक दिशा की ओर बढ़ाने में जगतगुरु रामभद्राचार्य से अधिक योगदान प्रेमानंद महाराज का रहा है.
किसी पार्टी विशेष की विचारधारा से प्रेरित हैं रामभद्राचार्य
विश्वविद्यालय के छात्र शुभम तो रामभद्राचार्य के बयान से बेहद नाराज नजर आए. उन्होंने कहा कि इससे पूर्व में भी रामभद्राचार्य ने ऐसे बयान दिए हैं जो काफी चर्चा में रहे हैं. वह संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं और यहां की अपनी एक गरिमा है. मुझे तो लगता है कि वह एक पार्टी से प्रभावित होकर इस प्रकार की बातें करने लगे हैं जो बिल्कुल भी उचित नहीं है. सनातनी परंपरा में किसी दूसरे धर्माचार्य पर इस प्रकार की टिप्पणी करना बिल्कुल भी स्वीकार नहीं होगा.
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