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शाहजहांपुर में परम्परागत तरीके से निकला 'लाट साहब' का जुलूस, जानें- कैसे शुरू हुई परंपरा

शाहजहांपुर में होली पर्व पर लाट साहब का जुलूस निकाला गया. लाट साहब की पहचान छिपाने के लिए चेहरे और हाथ पर कालिख लगाई जाती है, हेलमेट पहनाया जाता है. जुलूस के पूरे मार्ग पर होरियारे 'लाट साहब की जय', 'होलिका माता की जय' बोलते हुए लाट साहब को जूते मारते हैं.

शाहजहांपुर: उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में होली पर्व पर निकलने वाला 'लाट साहब' का जुलूस सोमवार को परम्परागत तरीके से निकाला गया. पुलिस सूत्रों ने बताया कि शहर कोतवाली क्षेत्र से निकला बड़े लाट साहब का जुलूस सबसे पहले फूलमती मंदिर पहुंचा जहां लाट साहब ने पूजा-अर्चना की. उसके बाद जुलूस कोतवाली पहुंच गया जहां परंपरा के तहत कोतवाल ने लाट साहब को सलामी दी. सलामी लेने के बाद लाट साहब ने कोतवाल प्रवेश सिंह से साल भर हुए अपराधों का ब्योरा मांगने की रिवायत पूरी की. उसके बाद कोतवाल ने परम्परा के अनुसार लाट साहब को शराब की बोतल और नकद धनराशि दी.

हेलमेट भी लगाया गया कोतवाली से जुलूस निकलकर चार खंबा और केरूगंज होते हुए कचहरी मार्ग से विश्वनाथ मंदिर पहुंचा, जहां फिर लाट साहब ने पूजा अर्चना की. उसके बाद घंटाघर होते हुए ये जुलूस बंगला के नीचे सम्पन्न हो गया. जुलूस के दौरान लाट साहब को एक बैलगाड़ी पर तख्त के ऊपर कुर्सी डालकर बैठाया गया था. उन्हें चोट ना लगे, इसलिए हेलमेट भी लगाया गया था. उनके सेवक बने दो होरियारे झाड़ू से हवा करते रहे और जूतों की माला पहने लाट साहब पर होरियारे 'होलिका माता की जय' बोलते हुए जूते बरसाते नजर आए.

पुलिस रही मुस्तैद पुलिस अधीक्षक एस आनंद ने बताया कि जुलूस को सकुशल संपन्न कराने के लिए पूरे जिले के 22 थानों से और पुलिस लाइन से पुलिस बल के अलावा एक कंपनी आरएएफ, दो कंपनी पीएसी के साथ 225 मजिस्ट्रेट समेत प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस बल समेत डेढ़ हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था.

अधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई इस बीच, अपर पुलिस अधीक्षक (नगर) संजय कुमार ने बताया कि होली पर शहर में निकलने वाले छोटे लाट साहब के आठ और जुलूस शांतिपूर्वक संपन्न हो गए. इन जुलूसों में भी मजिस्ट्रेट स्तर के अधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई थी.

लाट साहब को जूते मारते हैं आयोजन समिति के एक सदस्य ने बताया कि इस बार दिल्ली से आ रहे लाट साहब को रोककर मुरादाबाद से लाट साहब को बुलाया गया था. लाट साहब बनाए जाने वाले व्यक्ति को एक निश्चित धनराशि तो दी ही जाती है साथ ही आयोजन समिति के सदस्य भी इनाम के तौर पर हजारों रुपए देते हैं. उन्होंने बताया कि लाट साहब की पहचान छिपाने के लिए चेहरे और हाथ पर कालिख लगाई जाती है, हेलमेट पहनाया जाता है. जुलूस के पूरे मार्ग पर होरियारे 'लाट साहब की जय', 'होलिका माता की जय' बोलते हुए लाट साहब को जूते मारते हैं.

ऐसे शुरू हुई परंपरा स्वामी शुकदेवानंद कॉलेज में इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर विकास खुराना ने लाट साहब के जुलूस की परंपरा के बारे में बताया कि शाहजहांपुर शहर की स्थापना करने वाले नवाब बहादुर खान के वंश के आखिरी शासक नवाब अब्दुल्ला खान पारिवारिक लड़ाई के चलते फर्रुखाबाद चले गए और वर्ष 1729 में 21 वर्ष की आयु में वापस शाहजहांपुर आए. उन्होंने बताया कि नवाब हिंदू मुसलमानों के बड़े प्रिय थे. एक बार होली का त्यौहार हुआ तब दोनों समुदायों के लोग उनसे मिलने के लिए घर के बाहर खड़े हो गए और जब नवाब साहब बाहर आए तब लोगों ने होली खेली. बाद में नवाब को ऊंट पर बैठाकर शहर का एक चक्कर लगाया गया. इसके बाद से यह परंपरा बन गई.

बिगड़ता गया स्वरूप डॉक्टर विकास खुराना ने बताया कि शुरू में बेहद सद्भावपूर्ण रही इस परंपरा का स्वरूप बाद में बिगड़ता ही चला गया और लाट साहब को जूते मारने का रिवाज शुरू कर दिया गया. इस पर आपत्ति भी दर्ज कराई गई और मामला अदालत में भी पहुंचा लेकिन न्यायालय ने इसे पुरानी परंपरा बताते हुए इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

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