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Raja Bhaiya Profile: 'बाहुबली' छवि वाले Raghuraj Pratap Singh उर्फ 'राजा भैया' की कैसे हुई राजनीति में एंट्री?

UP Elections: प्रतापगढ़ की कुंडा विधानसभा की पहचान बन चुके राजा भैया की बाहुबली की छवि के चलते जाने जाते हैं. राजा भैया अपनी छवि के चलते हमेशा सुर्खियों में बने रहते हैं.

UP Assembly Election 2022: प्रतापगढ़ की कुंडा विधानसभा की पहचान बन चुके राजा भैया की बाहुबली की छवि के चलते जाने जाते हैं. राजा भैया अपनी छवि के चलते हमेशा सुर्खियों में बने रहते हैं. लोकतंत्र में राजशाही का प्रत‍िन‍िध‍ित्‍व करने वाले राजा भैया आज भले ही देश और दुनिया मे जाने जाते हों लेकिन उनके पिता उदय प्रताप सिंह उन्हें राजनीति में आने के खिलाफ थे और उनके इस निर्णय में उनकी दादी रानी गिरिजा देवी का भरपूर सहयोग मिला और मतदाताओं के प्रचंड समर्थन से रिकॉर्ड बनाकर जीत दर्ज की. 

जब राजा भैया ने अपने पि‍ता से चुनाव लड़ने की इजाजत मांगी तो उनके प‍िता ने गुरुजी से अनुमत‍ि लेने को कहा और फिर शुरू हुआ राजा भैया का राजनीत‍िक सफर आज भी बदस्तूर जारी है. उत्तर प्रदेश के विधानसभा का चुनाव राजा भैया ने महज 25 वर्ष की आयु में पहली बार लड़ा और जीत के अंतर का एक बड़ा रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किया. सूबे की सियासत की बात हो और दबंगों की बात न हो तो चुनाव की बात ही बेमानी होगी. इस कड़ी में बड़े नामों में सुमार राजा भैया का अपने क्षेत्र में दबदबा आज भी बरकरार हैं. राजा भैया अवध क्षेत्र के भदरी रियासत उत्तराधिकारी हैं. रघुराज प्रताप सिंह का जन्म 31 अक्टूबर, 1969 को प्रतापगढ़ की भदरी रियासत के उदय प्रताप सिंह और मंजुला राजे के इकलौते बेटे हैं. मां समथर राज परिवार की बेटी है और कांग्रेस की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राजा रणजीत सिंह जूदेव की बहन है. राजा भैया को कॉलेज के जमाने में लोग तूफान सिंह के नाम से बुलाते थे. क्योंकि रफ्तार उनका शौक था. गाड़ी कोई भी हो तेज गति से चलाते थे, बेहद दुबले होने के चलते उनकी रफ्तार देख लोग बरबस ही कयास लगाते थे.

1993 में रखा था राजनीति में कदम

1993 के विधानसभा चुनाव से राजनीति में कदम बढ़ाने वाले राजा भैया लगातार बर्चस्व जमाते रहे. उनके साथ बाबागंज सुरक्षित के मतदाताओं ने भी कदम डर कदम साथ दिया और लगातार इस सीट पर भी उन्हीं के समर्थक का निर्दलीय के तौर पर कब्जा रहा. चाहे रामनाथ सरोज रहे हो या फिर उनके बेटे विनोद सरोज, जो आज भी एमएलए हैं. इतना ही नहीं एमएलसी सीट पर भी लगातार कब्जा बना हुआ है. तो एक बार एमपी के रूप में अक्षय प्रताप सिंह को भी जिताने में कामयाब रहे. राजा भैया ने 30 नवंबर 2018 को जनसत्ता दल लोकतांत्रिक नाम से सियासी दल का गठन लिया जिसके बाद उनकी चुनौती बढ़ गई है. राजा भैया ने 1993 में कुंडा व‍िधानसभा से पहला चुनाव लड़ा था और तब से 2017 तक हुए सभी 6 चुनावों में जीत दर्ज करते आ रहे हैं.

राजा भैया को मिल चुका है सपा का साथ

निर्दलीय होने के बावजूद लगातार मंत्री रहते आ रहे राजा भैया को ज्यादातर चुनाव में सपा का सहयोग रहा है. लेकिन इस बार तमाम दबाव बनाने के बावजूद ना तो सपा ने गठबंधन किया और न ही बीजेपी ने. इस चुनाव में राजा भैया के बेहद करीबी रहे और सीओ जियाउल हक़ हत्याकांड में राजा भैया के साथ आरोपी बनाए गुलशन यादव सपा तरफ से चुनौती दे रहे हैं. तो वहीं बीजेपी की तरफ से सिन्धुजा मिश्र सेनानी जो राजा को कई बार चुनौती दे चुके शिव प्रकाश मिश्र की पत्नी है. राजा भैया पहली बार बीजेपी की कल्याण सिंह सरकार में मंत्री रहे इतना ही नहीं राजनाथ सिंह से लेकर मुलायम सिंह यादव व अखिलेश सरकार में भी मंत्री पद बरकरार रहा.

मुलायम सिंह यादव ने किया था विरोध

मुलायम सिंह यादव ने रघुराज प्रताप सिंह का विरोध किया था. उन पर दंगों में शामिल होने के आरोप थे, मायावती की बसपा सरकार सत्ता में आई तो राजा भैया पर पोटा लगा दिया गया और जेल भेज दिया गया था. छापेमारी की कार्यवाई की, मुलायम सिंह यादव लगातार उस समय राजा भैया का बचाव करते रहे जब सभी नेताओं ने उनसे दूरी बना ली थी. अखिलेश सरकार के कार्यकाल में 3 मार्च 2013 को तत्कालीन सीओ कुंडा की हत्या हुई तो राजा भैया के साथ ही सपा उम्मीदवार को भी नामजद किया गया. मामला इतना हाइलाइट हुआ कि इस मामले की जांच सीबीआई को सौप दी गई. हालांकि सीबीआई की जांच में इन लोगों को क्लीनचिट दे गई. इस हत्याकांड में नाम आने के बाद राजा भैया को इस्तीफा देना पड़ा था. हालांकि क्लीनचिट मिलने के बाद अखिलेश यादव ने उन्हें पुनः मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया था. बेंती कोठी के पीछे स्थित तालाब से जुड़े खौफनाक किस्से मशहूर हुए, ये तालाब 600 एकड़ का तालाब है. उसी तालाब से कई तरह के खौफनाक किस्से जुड़े हैं. बताया जाता था कि राजा भैया ने उस तालाब में घड़ियाल पाल रखे थे और वो अपने दुश्मनों को मारकर उसी तालाब में फेंक देते थे. हालांकि  राजा भैया इस बात से हमेशा इनकार करते रहे हैं.

राजा भैया की शिक्षा के खिलाफ थे उनके पिता

राजा भैया के पिता उनकी शिक्षा के खिलाफ थे, लेकिन मां उन्हें पढ़ाने में कामयाब रहीं. इस बात को राजा भैया एक मीडिया इंटरव्यू में स्वीकार किया था. उनके पिता को लगता था कि वह पढ़ लिख लेंगे तो बुजदिल बन जाएंगे. तब उनकी मां ने पिता की मर्जी के खिलाफ चोरी से उनका दाखिला इलाहाबाद में करवा दिया. उन्‍होंने इलाहाबाद के महाप्रभु बाल विद्यालय से अपनी प्रारंभ‍ि‍क श‍िक्षा ली. इसके बाद उन्‍होंने कर्नल गंज इंटर कालेज इलाहाबाद में दाख‍िला ल‍िया. वहां से स्कूलिंग के बाद राजा भैया लखनऊ चले गए. लखनऊ विश्वविद्यालय से उन्होंने ग्रेजुएशन किया. राजा भैया को एडवेंचर इस कदर पसंद है. जल थल और नभ तक को नापते हैं, इसके चलते दो बार क्राफ्ट हादसे भी हो चुके हैं. पशु पक्षियों के साथ ही गाड़ियों, बाइकों, असलहों, घुड़सवारी, मोटरबोट आदि का जबरदस्त शौक है.

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