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Uttarakhand News: पिथौरागढ़ के गांव को लोगों ने भूतिया मानकर छोड़ा, अब दो लड़कों की मेहनत लौटी खुशी

Pithoragarh News: पिथौरागढ़ के मटियाल गांव को लोगों ने भूतिया मानकर छोड़ दिया था. लेकिन अब दो युवाओं की मेहनत से गांव में फिर से लोग लौटने लगे हैं.

Pithoragarh News: आपने भूतों की कहानी खूब सुनी होगी, लेकिन क्या आपने कभी ये सुना है कि भूतों की अफवाह की वजह से पूरा का पूरा गांव खाली हो गया. वैसे, है तो ये अचरज की बात लेकिन उत्तराखंड (Uttarakhand) के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) में एक ऐसा कथित भूतिया गांव है जिसकी वजह से गांव के 20 परिवार अपना घर छोड़कर चले गये. लेकिन, अब ये गांव गुलजार हो गया है. इस काम को दो युवाओं ने किया है. 

मेहनत और लगन से गांव में फिर लौटी चहल-पहल
दरअसल 'मटियाल गांव' में विक्रम सिंह मेहता और दिनेश सिंह नाम के दो युवाओं ने मेहनत और लगन से गांव में फिर से चहल-पहल ला दी है. दोनों युवा कोरोना काल में अपने गांव लौटे जिसे लोगों ने भूतिया मानकर छोड़ दिया था. 2020 में कोविड लॉकडाउन के बाद दोनों युवाओं ने अपने गांव में रहने की ही ठानी. जून 2020 में जब वे गांव लौटे तो कई लोगों ने उन्हें समझाने का की कोशिश की और उन्हों भूतिया गांव होने की भी बात कही. लेकिन, उन दोनों ने स्थिति में बदलाव लाने की ठान ली थी. जिद थी कि स्थिति को बदल देंगे. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से भूतिया गांव को फिर से 'मटियाल गांव' बना दिया.

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युवाओं ने गांव में खेती करनी शुरु कर दी
पहले कोविड लॉकडाउन के दौरान गांव लौटे दोनों युवाओं के सामने एक खाली गांव था. उन्होंने गांव में खेती करनी शुरु कर दी और अनाज, सब्जियों की खेती करने का फैसला किया. इसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना से 1.5 लाख रुपये का कर्ज लिया. योजना के तहत स्थानीय ग्रामीणों को सब्सिडी पर 10 लाख रुपये से 25 लाख रुपये तक का लोन दिए जाने का प्रावधान है. उन्होंने इसका लाभ लेकर खेती करना शुरु किया और मुनाफा कमाया. इसके बाद दोनों ने गाय, बैल और बकरियां खरीदीं और गांव में पशुपालन का काम शुरू कर दिया. विक्रम और दिनेश तरक्की को देखकर  लोगों का भूतिया गांव का भ्रम टूटने लगा. इसको देख अन्य परिवार भी अब घर वापसी की तैयारी कर रहे हैं.

दो दशक पहले गांव में 20 परिवार रहते थे
विक्रम सिंह मेहता ने इस बारे में बताया कि मटियाल गांव में करीब दो दशक पहले तक 20 परिवार रहते थे. गांव में बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में लोग परेशान थे. रोजगार के साधन नहीं थे तो युवाओं ने नौकरी के लिए बड़े शहरों की तरफ रुख किया. वहीं, पड़ोस के गांव कोटली तक सड़क बनी तो बचे लोग भी वहां शिफ्ट हो गए. पांच साल पहले इस गांव से आखिरी परिवार भी चला गया. इसके बाद से यह गांव भूतिया बन गया. लोग गांव छोड़ गए तो यहां की जमीन बंजर हो गई, इसके बारे में भूतिया गांव का किस्सा प्रचलित हो गया.

विक्रम ने कहा कि जब हम गांव लौटे तो यहां के बारे में हमारी कई यादें थीं. पहले यहां लोग गेहूं, धान और सब्जियां उगाते थे. हमारे गांव में उपजाऊ जमीन और पर्याप्त सुविधांए थीं. इसलिए, जब हम 2020 में वापस आए तो हमने गांव की अर्थव्यवस्था को फिर से जीवित करने का प्रयास किया. विक्रम सिंह मेहता मुंबई के एक रेस्तरां में काम करते हैं और दिनेश सिंह पानीपत में ड्राइवर का काम करते हैं. 

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