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इलाहाबाद हाईकोर्ट में पेंडिंग मुकदमे 10 लाख के पार, जजों की संख्या भी स्वीकृत पदों से 40% कम

मुकदमों की सुनवाई बुरी तरह प्रभावित होने से हज़ारों वकीलों और उनके मुंशियों के सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया है. सबसे बड़ा खामियाजा वादकारियों को भुगतना पड़ रहा है.

प्रयागराज: कोरोना की महामारी ने पिछले 16 महीने से देश में कोहराम मचा रखा है. इस दौरान अदालतों का कामकाज भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है. कोरोना की वजह से दुनिया की सबसे बड़ी अदालत कहे जाने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट में तो पेंडिंग मुकदमों की संख्या अब दस लाख का आंकड़ा पार कर चुकी है. यह हाल तब है, जब ई फाइलिंग और वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये ज़रूरी मामलों की सुनवाई लगातार चल रही थी. तमाम मुक़दमे तो ऐसे हैं, जिनकी पिछले 16 महीने में एक भी बार तारीख तक नहीं लग सकी है. दूसरी लहर के चलते हाईकोर्ट का काम ठीक तरीके से अभी दोबारा शुरू भी नहीं हो सका है कि तीसरी और सबसे खतरनाक लहर की आशंका अभी से जताई जाने लगी है.

कातिल कोरोना हाईकोर्ट के सीटिंग जज के साथ ही तकरीबन डेढ़ सौ वकीलों की जान भी ले चुका है. मुकदमों की सुनवाई बुरी तरह प्रभावित होने से हज़ारों वकीलों और उनके मुंशियों के सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया है तो साथ ही इंसाफ की आस में वादकारियों का इंतजार लगातार लम्बा खिंचता जा रहा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजेज की संख्या वैसे भी स्वीकृत पदों के मुकाबले चालीस फीसदी कम है. ऐसे में पेंडिंग चल रहे दस लाख से ज़्यादा मुकदमों का निपटारा करने में हालात पूरी तरह सामान्य होने के बाद भी सालों का वक़्त लग सकता है.  

पिछले साल 15 मार्च के बाद कोर्ट महीनों पूरी तरह बंद रही

इलाहाबाद हाईकोर्ट में पिछले साल मार्च महीने के पहले हफ्ते के बाद से ही कामकाज प्रभावित होने लगा था. 15 मार्च के बाद कोर्ट महीनों पूरी तरह बंद रही. इस दौरान ज़मानत जैसे ज़रूरी मामलों में भी सुनवाई नहीं हो सकी थी. डेढ़ सौ साल से ज़्यादा पुराने इस हाईकोर्ट में पहली बार ऐसा हुआ था कि लम्बे अर्से तक कामकाज पूरी तरह ठप्प था. हालांकि कुछ हफ़्तों बाद बेहद ज़रूरी मामलों की सुनवाई वर्चुअल तरीके से शुरू की गई. पहले कुछ मामलों में अर्जियों पर सीधे फैसला हुआ. उसके बाद केस से जुड़े वकीलों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये अपना पक्ष रखने का भी मौका दिया गया. हालांकि इंटरनेट कनेक्शन, पुअर कनेक्टिविटी और साथ ही हाई क्वालिटी की इलेक्ट्रानिक डिवाइस नहीं होने की समस्या भी खूब आड़े आई.

बहरहाल कुछ महीनों बाद कड़े नियमों और कोविड प्रोटोकॉल के साथ अदालतों में  फिजिकल सुनवाई शुरू की गई, तभी शिक्षा सेवा अभिकरण के मुद्दे पर यहां के वकील हड़ताल पर चले गए. करीब महीने भर बाद हड़ताल ख़त्म हुई तो कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप शुरू हो गया. हाईकोर्ट को एक बार फिर से पूरी तरह बंद करना पड़ा. इस दौरान कुछ स्पेशल बेंच ने बेहद ज़रूरी मामलों में वर्चुअल सुनवाई ज़रूर की. हाईकोर्ट में आज से ई फाइलिंग के साथ ही फिजिकल फाइलिंग की इजाजत तो दे दी गई है, लेकिन खुली अदालत में अब भी सुनवाई की मंज़ूरी नहीं दी गई है.

हाईकोर्ट में वर्तमान में सिर्फ 98 जज ही हैं

जजेज की कम संख्या के चलते हाईकोर्ट पर पहले ही मुकदमों का काफी बोझ था, लेकिन कोरोना ने इस संख्या को अब दस लाख के पार पहुंचा दिया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट में कई दशक पहले ही जजेज के एक सौ साठ पद स्वीकृत थे, लेकिन पूरी क्षमता कभी नहीं रही. इन दिनों यहां सौ से भी कम जज हैं. हाईकोर्ट में वर्तमान में सिर्फ 98 जज ही हैं. चीफ जस्टिस संजय यादव इसी हफ्ते रिटायर हो रहे हैं. कई अन्य जज भी जल्द ही रिटायर हो जाएंगे तो यह संख्या और भी कम हो जाएगी.

कोरोना से पहले सामान्य दिनों में इलाहाबाद हाईकोर्ट में रोज़ाना औसतन पांच से सात हज़ार मुकदमों की सुनवाई होती थी. इसमें फ्रेश यानी नये मुकदमों के साथ ही लिस्टिंग यानी पुराने मुक़दमे भी शामिल रहते थे. मौजूदा समय में बमुश्किल एक हज़ार मुक़दमे ही सुने जा रहे हैं. कोरोना काल में कामकाज प्रभावित होने की वजह से इलाहाबाद हाईकोर्ट की अकेले प्रधान पीठ यानी इलाहाबाद में ही आठ लाख से ज़्यादा केसेज पेंडिंग हैं. लंबित मुकदमों में सिविल अपील के करीब सवा लाख, सिविल मिसलेनियस के 33 हज़ार, सिविल रिट के लगभग पौने तीन लाख, क्रिमिनल अपील के डेढ़ लाख से ज़्यादा, क्रिमिनल मिसलेनियस के दो लाख से ज़्यादा और क्रिमिनल रिट के तकरीबन सत्रह हज़ार केसेज पेंडिंग है. कोरोना काल के पिछले सोलह महीनों में पेंडिंग मुकदमों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है.

सीनियर एडवोकेट विजय गौतम और हाईकोर्ट बार के महामंत्री प्रभा शंकर मिश्र का कहना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुश्किल और विपरीत हालात में भी काफी काम किया है. वादकारियों के  हितों को ध्यान में रखकर बार और बेंच मिलकर जल्द से जल्द पेंडिंग मुकदमों के निपटारे का प्रयास करेंगे. बार की पदाधिकारी मंजू पांडेय का कहना है कि कोरोना ने नये वकीलों के रोज़गार को बुरी तरह प्रभावित किया है. हालात अब सामान्य हैं, इसलिए अब खुली अदालत में सुनवाई पर विचार होना चाहिए. बार के पूर्व पदाधिकारी अभिषेक चौहान के मुताबिक़ पिछले सोलह महीनों में हाईकोर्ट ने जस्टिस वीके श्रीवास्तव  के साथ ही तकरीबन डेढ़ सौ वकीलों और कई कर्मचारियों को कोरोना की वजह से खो दिया है. हालांकि उनका कहना है कि जीविका और जीवन दोनों में संतुलन बनाकर ही आगे काम करना होगा.

वादकारियों को भुगतना पड़ रहा है खामियाजा

कामकाज प्रभावित होने का सबसे बड़ा खामियाजा वादकारियों को भुगतना पड़ रहा है. तमाम वादकारियों को जहां नई तारीख मिल जा रही है, वहीं रोज़ाना सैकड़ों की संख्या में लोगों को मायूस होकर वापस लौटना पड़ता है. वादकारी तो अब किसी तरह कोरोना के खात्मे का इंतजार कर रहे हैं.

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