ईरान के सुप्रीम लीडर का यूपी से रिश्ता? कितना सच्चा है ये दावा, यहां जानें- हकीकत
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के बारे में सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि उनका रिश्ता यूपी के बाराबंकी से था. इसकी सच्चाई क्या है, पढ़ें यहां.

UP News: उत्तर प्रदेश का बाराबंकी जिला इन दिनों चर्चा में एक बार फिर आ गया है. दरअसल ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई (Supreme Leader Ayatollah Ali Khamenei) के पूर्वजों के बारे में दावा किया जाता है कि वह इसी गांव के थे. इतना ही नहीं कहा यह भी जाता है कि ईरानी की क्रांति का रिश्ता भी बाराबंकी से ही है. गांव के डॉक्टर रेहान काजमी और निहाल काजमी का तो दावा यह भी है कि राजधानी लखनऊ के नवाबों संग ईरान की धार्मिक यात्रा पर खामेनेई के पूर्वज बाराबंकी से गए थे.
बाराबंकी जनपद महाभारतकालीन इतिहास से जुड़ा है और प्राचीन महाभारत कालीन कुंतेश्वर मंदिर जिस स्थान पर स्थित है उसे ही किंतूर गांव कहा जाता है और इसी किंतूर की धरती से ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला खामेनेई का नाता जुड़ने की बात कही जा रही है. गांव के लोग इसराइल के विरोध में है और ईरान की जमकर प्रशंसा कर रहे है, हालांकि कभी अयातुल्ला खामेनेई इस गांव नहीं आए मगर उनके पूर्वजों की पीढ़ियां गांव से संबंध थे.
देश दुनिया में ईरान- इजरायल के बीच छिड़े युद्ध से लोग चिंतित है, लेकिन बाराबंकी से दावा किया जा रहा है जिसे कम ही लोग जानते हैं कि ईरान के वर्तमान शासक से बाराबंकी जिले का गहरा नाता है, बताया जा रहा है बाराबंकी जनपद के इसी किंतूर गांव से जुड़े लोगों ने ही ईरान में क्रांति का बिगुल बजाया था. जिसकी चर्चा खामेनेई की पीढ़ियों का दावा करने वाले वंशज के द्वारा किया जा रहा है.ईरान की तत्कालीन सरकार का तख्ता पलट कर एक नई इस्लामी हुकूमत कायम की गयी थी. जिसके बाद खामेनेई और उनके पूर्वज सत्ता में आए,
जनपद के किंतूर से ईरान गए सैयद अहमद मूसवी के पोते रूहुल्लाह खामेनेई के उत्तराधिकारी ही आज ईरान के सर्वोच्च नेता हैं और इजरायल से मजबूती से जंग लड़ रहे हैं, खामेनेई के पूर्वज कि बात करें तो जानकारी मिलती है कि सन् 1790 में जिले की सिरौली गौसपुर तहसील के किंतूर गांव में सैयद अहमद मूसवी का जन्म हुआ था. बताया जाता है पढ़ाई-लिखाई के बाद सन्, 1830 में 40 वर्ष की उम्र में अहमद मूसवी अवध के नवाब के साथ धार्मिक यात्रा पर इराक गए. वहां से दोनों ईरान पहुंचे और अहमद मूसवी वहीं के एक गांव खुमैन में बस गए थे.
क्या बताते हैं मूसवी के पूर्वज?
उनके पूर्वज बताते हैं कि अहमद मूसवी ने अपने नाम के आगे उपनाम हिंदी जोड़ा ताकि यह अहसास बना रहे कि वह हिंदुस्तान से हैं, उन्हें शेरों शायरी का भी काफी शौख था , जिनकी शायरी की चर्चा आज भी होती है. परिवार की माने तो मूसवी साहब को हिंदी से अत्यधिक लगाव था. जिसके चलते उन्होंने अपने नाम के आगे हिंदी जोड़ा. इसके बाद लोग उन्हें सैयद अहमद मूसवी हिंदी के नाम से जानने लगे थे.
बताया जाता है कि ईरान के पहले सुप्रीम लीडर रुहल्लाह के वंशजों का किंतूर गांव स्थित मकान है.बताते हैं इसे सैयद वाड़ा के नाम से जाना जाता रहा है. पहले यह बड़ा क्षेत्र हुआ करता था मगर अब सिमट गया है जिसके चलते यह पुष्टि नहीं हो सकती कि खामेनेई के पूर्वज सैयद अहमद मूसवी किस निर्धारित स्थान पर रहते थे. किंतूर के इस गांव में लोग इजरायल के खिलाफ हैं. गांव के लोगों का कहना है कि उनकी सोच उनके देश भारत के साथ है. चल रहे युद्ध में गांव के लोग ईरान के साथ हैं. वहां से इनके पूर्वजों का जुड़ाव है. अमेरिका व इजरायल बेगुनाहों का खून बहा रहे हैं. किंतूर गांव में रहने वाले आदिल खामेनेई के वंशज बताए जाते हैं.
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