बनभूलपुरा रेलवे भूमि अतिक्रमण केस पर अहम सुनवाई, फैसले पर टिकी सभी की निगाहें
Haldwani News: बनभूलपुरा में रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण विवाद अब निर्णायक मोड़ पर खड़ा है, और हल्द्वानी के हजारों लोगों की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिक गई हैं.

हल्द्वानी के बनभूलपुरा और आसपास के क्षेत्रों में रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने का मुद्दा पिछले करीब दो दशकों से विवादों में बना हुआ है. रेलवे के अनुसार हल्द्वानी में लगभग 29 एकड़ भूमि पर करीब 4365 अतिक्रमणकारी कब्जा जमाए हुए हैं. लंबे समय से चल रही कानूनी लड़ाई के बाद आज इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होनी है, जिससे पूरे क्षेत्र की निगाहें इस फैसले पर टिकी हैं.
याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी बताते हैं कि बनभूलपुरा और गफूरबस्ती क्षेत्र में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने को लेकर वर्ष 2007 में हाईकोर्ट ने पहला आदेश पारित किया था. तब प्रशासन ने रेलवे स्टेशन के आसपास से लगभग 2400 वर्गमीटर भूमि को अतिक्रमण मुक्त भी कराया था, लेकिन जमीन की स्पष्ट हदबंदी न होने के कारण समय के साथ यहां दोबारा अतिक्रमण शुरू हो गया.
साल 2013 एक केस की सुनवाई में उठा मुद्दा
साल 2013 में रविशंकर जोशी ने गौला नदी में अवैध खनन और गौला पुल की क्षति को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. सुनवाई के दौरान रेलवे भूमि पर अतिक्रमण का मुद्दा फिर से उभर आया. इसी क्रम में 9 नवंबर 2016 को हाईकोर्ट ने याचिका निस्तारित करते हुए रेलवे को 10 सप्ताह में अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए. इसके बाद अतिक्रमणकारियों और प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट में शपथ पत्र देकर दावा किया कि विवादित भूमि प्रदेश सरकार की नजूल भूमि है, लेकिन 10 जनवरी 2017 को हाईकोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया,
इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में कई विशेष अनुमति याचिकाएं दाखिल हुईं. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए कि अतिक्रमणकारी और राज्य सरकार अपने व्यक्तिगत निवेदन 13 फरवरी 2017 तक हाईकोर्ट में दाखिल करें. हाईकोर्ट को इन्हें तीन माह में निस्तारित करने के निर्देश दिए गए.
साल 2017 में HC के आदेश के बाद भी रेलवे ने नहीं उठाए ठोस कदम
6 मार्च 2017 को हाईकोर्ट ने रेलवे को अप्राधिकृत अधिभोगी बेदखली अधिनियम 1971 के तहत कार्रवाई करने को कहा, लेकिन धरातल पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. इस पर याचिकाकर्ता ने अवमानना याचिका दाखिल की, लेकिन स्थिति जस की तस बनी रही,
कोर्ट में साबित कर पाए भूमि पर वैध अधिकार
लगातार कार्रवाई न होने पर जोशी ने 21 मार्च 2022 को फिर से हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की. 18 मई 2022 को कोर्ट ने सभी प्रभावित व्यक्तियों को अपने दस्तावेज प्रस्तुत करने को कहा, लेकिन अधिकांश अतिक्रमणकारी भूमि पर वैध अधिकार साबित नहीं कर सके. 20 दिसंबर 2022 को हाईकोर्ट ने रेलवे को एक सप्ताह का नोटिस जारी कर अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए. मामला बाद में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां आज इस पर महत्वपूर्ण सुनवाई प्रस्तावित है.
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