देहरादून के कुकरेती परिवार की देशभक्ति बनी मिसाल! 5 भाइयों ने एक साथ लड़ी 1971 भारत-पाक की जंग
Dehradun News: इन पांच भाईयों में से तीन भाई राजपूत रेजिमेंट में और दो भाई ईएमई कोर में तैनात थे. इन सभी को अलग-अलग मोर्चों पर तैनात किया गया था लेकिन, सबका एक ही संकल्प था भारत की विजय

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में रहने वाला कुकरेती परिवार ऐसा है जहां देशभक्ति केवल एक भावना नहीं बल्कि विरासत है. इस परिवार के एक नहीं बल्कि पाँच-पांच भाइयों ने एक साथ 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में मोर्चा संभाला था. जो शायद भारतीय सैन्य इतिहास के सबसे दुर्लभ उदाहरणों में से एक है.
ये परिवार देहरादून के डिफेंस कॉलोनी इलाके में रहता है. इन पांच भाईयों में से तीन भाई राजपूत रेजिमेंट में और दो भाई ईएमई कोर में तैनात थे. इन सभी को अलग-अलग मोर्चों पर तैनात किया गया था, उनकी यूनिट अलग थीं लेकिन, सबका संकल्प केवल एक ही था- भारत माता की विजय.
एक परिवार के पांच भाइयों ने संभाला था मोर्चा
इन पांच वीरों में सबसे प्रमुख नाम है शौर्य चक्र विजेता रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल राकेश कुकरेती. वे बताते हैं कि नवंबर 1971 के अंतिम सप्ताह में ही युद्ध की आहट साफ सुनाई देने लगी थी. सीमाओं पर तनाव बढ़ रहा था, पाकिस्तानी सेना भारतीय फौज की सप्लाई लाइनों को तोड़ने की साजिश रच रही थी. लेकिन, भारतीय जवान हर चुनौती के लिए तैयार थे.
युद्ध के दौरान धर्मनगर से गाजीपुर तक दुश्मन के इलाके में घुसकर की गई रेकी ने रणनीति की दिशा बदल दी. लेफ्टिनेंट कर्नल कुकरेती याद करते हैं जब उन्होंने तीन दिन तक बिना खाने और पानी के करीब 93 किलोमीटर तक पैदल चलते रहे. चारों तरफ गोलों की बारिश लेकिन, हौसला जरा भी डगमगाया नहीं. उनकी आंखों में आज भी वह दृश्य जिंदा है, जब मौत बेहद करीब थी लेकिन, देश से बड़ा कुछ भी नहीं था.
कुकरेती परिवार की यह वीरगाथा केवल स्मृतियों तक सीमित नहीं रही. इसे ‘कहानी 1971 युद्ध की’ नामक पुस्तक में सहेजा गया है ताकि आने वाली पीढ़ियां जान सकें कि आज़ादी और विजय के पीछे कितनी कुर्बानियां छिपी होती हैं.
शहीद अनुसूया प्रसाद गौड़ ने निभाई अहम भूमिका
इसी युद्ध की याद में उत्तराखंड की धरती एक और वीर सपूत को भी नमन करती है. महावीर चक्र विजेता शहीद अनुसूया प्रसाद गौड. उनकी बहादुरी की स्मृति में सिद्धपीठ शिवधाम बैरासकुंड में विजय महोत्सव का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में पहुंचे थराली विधायक भोपाल राम टम्टा ने कहा कि उत्तराखंड बलिदानियों की भूमि है और ऐसे आयोजनों से युवाओं को प्रेरणा मिलती है.
अनुसूया प्रसाद गौड की कहानी भी कम मार्मिक नहीं. मात्र 11 दिन की सक्रिय सेवा में उन्होंने ऐसा अदम्य साहस दिखाया कि देश आज भी उन्हें नमन करता है. विवाह से पहले ही वे युद्धभूमि में शहीद हो गए. उनकी वीरांगना की पीड़ा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी भावुक कर दिया था.
आज कुकरेती परिवार हो या गौड परिवार—ये कहानियां केवल अतीत नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा हैं. देहरादून की इस मिट्टी में बसे ये घर आज भी गवाही देते हैं कि जब बात देश की हो, तो उत्तराखंड का हर सपूत सबसे आगे खड़ा मिलता है. यह सिर्फ इतिहास नहीं… यह भारत की धड़कन है.
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