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Aligarh Library में मौजूद है 70 हजार किताबों का नायाब जखीरा, मुफ्त में पढ़ सकते हैं किताबें 

UP News: अलीगढ़ बस स्टैंड से चंद कदमों की दूरी पर मौजूद गगन चुम्भी इमारत जो किसी किले की इमारत से कम नहीं है.  इस इमारत में 70 हजार से ज्यादा नायाब किताबों का जखीरा मौजूद है.

Aligarh News: अलीगढ़ बस स्टैंड से चंद कदमों की दूरी पर कठपुले के सामने व एसपी सिटी ऑफिस के बराबर में मौजूद गगन चुम्भी इमारत जो किसी किले की इमारत से कम नहीं है. इस इमारत में 70 हजार से ज्यादा नायाब किताबों का जखीरा मौजूद है. बताया जाता है कि इन किताबों की संख्या हर दिन इसलिए बढ़ती चली गई क्योंकि जिन छात्रों ने यहां से किताब पढ़ने के बाद ज्ञान हासिल किया और वह छात्र कामयाब हो गए तो उन छात्रों के द्वारा भी इस पुस्तकालय में बहुत सारी किताबें दान कर दी. ताकि अन्य छात्रों का भविष्य संवर सके.
 
जब से यह पुस्तकालय खुला है तब से अब तक कई गुना बढ़ती चली गई यहां छात्र आसपास के गांव के अलावा दूर-दराज से आते हैं और पेड़ पौधों की ठंडी हवा के साथ-साथ आलीशान बिल्डिंग की चार दिवारी के बीच उन किताबों के ज्ञान को अपने मस्तिष्क में भरने के बाद कामयाबी की सीढ़ी चढ़ना शुरू कर देते हैं, यही कारण है यह पुस्तकालय एक अपनी अलग पहचान रखता है, जिसका नाम पंडित मदन मोहन मालवीय के नाम पर रखा गया, इस पुस्तकालय में मौजूद हिंदी इंग्लिश गणित के साथ-साथ उर्दू भाषा और संस्कृत भाषा सहित अन्य भाषा की नायाब किताब मौजूद है.
 
पुराने जमाने से लेकर आधुनिक युग की हैं किताबें
इन किताबों को लेकर बताया जाता है पुराने जमाने से लेकर आधुनिक युग की किताबें इस पुस्तकालय में पहुंच जाती हैं. इस पुस्तकालय की देखरेख एक ट्रस्ट के द्वारा की जाती है. यहां छात्रों से महज एडमिशन के नाम पर चंद रुपए लिए जाते हैं जिससे छात्रों की संख्या सीमित के साथ-साथ उनकी संख्या का आकलन ट्रस्ट को हो सके. इसलिए यहां प्रवेश के नाम पर चंद रुपए लिए जाते हैं इसके बदले छात्रों को एक कार्ड मुहैया कराया जाता है उस कार्ड की पहचान से ही छात्रों को पढ़ने के लिए किताबें दी जाती है जो छात्र पढ़ने के लिए किताबों को घर ले जाते हैं. उनके लिए पुस्तकालय में अलग से व्यवस्था की गई है.
 
छात्रों के लिए अन्य पुस्तकालय की तरह यहां पर कुछ अलग ही व्यवस्था की गई है यहां अलग-अलग कमरे हैं इसके साथ ही पेड़ों की छायादार वृक्षों के नीचे भी छात्रों के बैठने की व्यवस्था है यानी कि जो छात्र अकेले में पढ़ना चाहते हैं वह चार दिवारी के बीच लगे पंखों में अपनी पढ़ाई कर सकते हैं लेकिन जो छात्र पेड़ों के नीचे बैठकर पढ़ना चाहते हैं उनके लिए भी खुली आजादी है जिसके चलते यहां छात्र पढ़ने के बाद अलग-अलग विभागों में अपनी सेवाएं भी दे रहे हैं. आधुनिक युग में जहां महंगाई अपनी चरम सीमा पर है वही यह पुस्तकालय किसी संजीवनी से कम नहीं है. पढ़ने वाले छात्र हजारों रुपए में उन किताबों को बाजारों से खरीदते हैं लेकिन यहां मुफ्त में उन्हें किताबों का भंडार मिल जाता है. ज्ञान की पाठशाला में कोई भी छात्र आकर यहां मुफ्त में ज्ञान ले सकता है.
 
क्या कहते है यहां के लाइब्रेरियन
पुस्तकालय में मौजूद लम्बे समय से इसकी देखभाल करने  वाले लाइब्रेरियन गौरी शंकर शर्मा के द्वारा बताया गया कि पुस्तकालय का नाम प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर अल्फ्रेड कॉमिन्स लायल के नाम पर रखा गया था. जिसे 1884 में नियुक्त किया गया था. पुस्तकालय को 1902 में पूरा किया जाना था, लेकिन 1904 में यह पूरे तरीक़े से अस्तित्व में आया. उस दौरान इस इमारत को लेकर 8 लाख रुपये का कुल खर्च आया जिसको नेशनल एसोसिएशन ट्रस्ट द्वारा संचालित किया गया.
 
गौरी शंकर शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया 1947 में पुस्तकालय का नाम मदन मोहन मालवीय के नाम पर रखा गया था. बताया जाता है कि, मदन मोहन मालवीय ने हिंदी के लिए बहुत योगदान दिए इसी के चलते इसका नाम मालवीय पुस्तकालय कर दिया गया. मौजूदा समय में इसमें उर्दू, फारसी, अरबी, हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी सहित अन्य तरह तरह की भाषाओं में मौजूद 70 हजार पुस्तकें हैं. इस पुस्तकालय को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 5,000 रुपए के अनुदान से नवाजा जाता है. पुस्तकालय में करीब 150 सदस्य हैं.जो की अलग-अलग स्रोत से इस पुस्तकालय में अपनी सहभागिता निभाते हैं.
 
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