अलीगढ़ नुमाइश का क्या है इतिहास? इसका क्या है एएमयू से संबंध? जानिए इसके बारे में
UP News: हर साल की तरह इस साल भी अलीगढ़ में 28 दिनों का रंगारंग नुमाइश कार्यक्रम आयोजन किया जाएगा. पहली बार इसे साल 1880 में आयोजित किया गया था. इस मेले में देश विदेश से लोग खरीदारी करने आते हैं.

Aligarh News: अलीगढ़ नुमाइश मैदान में हर साल लगभग 28 दोनों की रंगारंग नुमाइश का आयोजन किया जाता है, जिसे आम जनता 'अलीगढ़ नुमाइश' के नाम से जानती है. पहली बार इसे 1880 में 'अलीगढ़ जिला मेला' नाम से आयोजित किया गया था. तब इसमें घोड़ों की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी. जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के घोड़ों ने भी भाग लिया. अलीगढ़ की नुमाइश में आधुनिकता की तस्वीरे साफ तौर पर देखी जा सकती है. अलीगढ़ की नुमाइश को देखने के लिए आसपास के जिलों के साथ-साथ लोग विदेशों से भी देखने के लिए आते हैं. जिसको लेकर लोगों में गजब का उत्साह रहता है.
दरअसल पूरा मामला उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ की औद्योगिक एवं कृषि प्रदर्शनी के नाम से प्रतिवर्ष लगने वाली अलीगढ़ की नुमाइश का है. जहां नुमाइश मैदान में हर साल लगभग 28 दिनों की रंगारंग नुमाइश का आयोजन किया जाता है. जिसे आम जनता 'अलीगढ़ नुमाइश' के नाम से जानती है. इस बार 1 फरवरी से 28 फरवरी तक नुमाइश का आयोजन किया जा रहा है. जिसकी तैयारियां से चल रही है.
145 साल पुराना अलीगढ़ नुमाइश का इतिहास
अलीगढ़ के ऐतिहासिक नुमाइश के संबंध में एएमयू और अलीगढ़ के जानकार डॉक्टर राहत ने बताया अलीगढ़ नुमाइश का इतिहास 145 साल पुराना है. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदू, मुस्लिम और अन्य वर्ग नुमाइश मैदान में एकत्र हुए और अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा बनाया. अलीगढ़ नुमाइश मैदान में एक मंदिर के साथ एक मस्जिद भी है और शमशान घाट के साथ कब्रिस्तान भी है. यह नुमाइश पहली बार 1880 में 'अलीगढ़ जिला मेला' नाम से आयोजित की गई थी, तब इसमें घोड़ों की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी.
जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के घोड़ों ने भी भाग लिया. डॉक्टर अबरार ने बताया ऐतिहासिक नुमाइश का अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से भी घनिष्ठ संबंध है. इसकी महत्ता और लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 6 फरवरी 1894 को एएमयू के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने फरवरी 1894 में मोहम्मद एंग्लो-ओरिएंटल (एमएओ) कॉलेज फंड के लिए एक नाटक का मंचन किया तथा यहां एक पुस्तक की दुकान भी स्थापित की गई.
AMU के तीसरे कुलपति के नाम पर भव्य मुज़म्मिल गेट का नाम
नुमाइश में अभी भी एक बड़ा और भव्य मुज़म्मिल गेट रखा गया है. जिसका नाम एएमयू के तीसरे कुलपति नवाब मोहम्मद मुजम्मिल खान के नाम पर है. पहली बार जब अलीगढ़ नुमाइश लगी थी तब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के घोड़े ने भी भाग लिया था. उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में स्थित 145 साल पुरानी ऐतिहासिक प्रदर्शनी में आने वाले व्यापारी देश के अन्य राज्यों के साथ-साथ कश्मीर से भी पश्मीना शॉल सहित हाथ से कढ़ाई किए गए शॉल, सूट, साड़ियां आदि बेचते हैं. जो अलीगढ़ प्रदर्शनी में खरीदारों के आकर्षण का केन्द्र हैं.
अलीगढ़ प्रदर्शनी हर साल आयोजित की जाती है. जहां करीब एक महीने तक अलग-अलग और दुर्लभ वस्तुएं उपभोक्ता खरीदारी का केंद्र होती हैं. देश के विभिन्न राज्यों से व्यवसायी भी यहां आते हैं. जहां करीब एक महीने तक अलग-अलग और खास चीजों की खरीद-फरोख्त होती है. अलीगढ़ प्रशासन और प्रदर्शनी आयोजक कश्मीर समेत दूसरे राज्यों से आने वाले कारोबारियों को सुरक्षा और हर संभव मदद मुहैया कराते हैं. जिसके चलते बड़ी संख्या में कारोबारी यहां खरीद-फरोख्त करते हैं.
राष्ट्रीय एकता की मिसाल
उन्होंने आगे कहा कि अलीगढ़ प्रदर्शनी में राष्ट्रीय एकता और सद्भाव का माहौल मिलता है. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदू, मुस्लिम और अन्य वर्ग प्रदर्शनी मैदान में एकत्र हुए और अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा बनाया. देश की आजादी के बाद प्रदर्शनी ने भव्य रूप ले लिया. नीरज-शहरयार पार्क भी इसी प्रदर्शनी मैदान में स्थित है. अलीगढ़ प्रदर्शनी देश भर में आयोजित होने वाले मेलों में गंगा-जमुनी संस्कृति का उदाहरण है, जहां एक ही मंच पर कविता पाठ और मुशायरा का आयोजन किया जाता है. अलीगढ़ नुमाइश ग्राउंड में मंदिर भी है और मस्जिद भी शमशान घाट भी है और कब्रिस्तान भी.
करीब 28 दिनों तक चलने वाली इस प्रदर्शनी में बॉलीवुड कलाकार भी अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं. अलीगढ़ मेले में झूले, सर्कस, खाने-पीने की दुकानें, खिलौने और कई अन्य दुकानें भी लगती हैं. यहां एक मंदिर के साथ एक मस्जिद भी है. भारत में होने वाली सभी प्रदर्शनियों की तरह अलीगढ़ प्रदर्शनी में भी झूले, सर्कस, खाने-पीने के स्टॉल और खिलौने हैं जो लोगों को अलग-अलग तरीकों से आकर्षित करते हैं.
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Source: IOCL





















