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उत्तर प्रदेश: पीएम मोदी, अमित शाह और सीएम योगी के सामने बड़ी चुनौती, नीतीश कुमार-अखिलेश हाथ मिलाने को तैयार?

जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा, 'आगामी लोकसभा चुनाव में अगर पार्टी बिहार के पड़ोसी सूबे उत्तर प्रदेश का रुख करती है तो वह समाजवादी पार्टी के साथ जाना पसंद करेंगे.'

रविवार यानी 13 मार्च को जदयू (जनता दल यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह उर्फ राजीव रंजन सिंह ने कहा कि साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी यूपी में समाजवादी पार्टी (सपा) के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरेगी. देश में लोकसभा चुनाव होने में अभी एक साल बाकी है लेकिन सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गई है.

इसी क्रम में समाजवादी पार्टी और जेडीयू ने बीजेपी के खिलाफ एक साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया है. दरअसल ललन सिंह बीते रविवार उत्तर प्रदेश के लखनऊ में आयोजित अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस और होली मिलन समारोह कार्यक्रम में पहुंचे हुए थे. 

वहां उन्होंने कहा, 'आगामी लोकसभा चुनाव में अगर पार्टी बिहार के पड़ोसी सूबे उत्तर प्रदेश का रुख करती है तो वह समाजवादी पार्टी के साथ जाना पसंद करेंगे. उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी उत्तर प्रदेश में अपनी कार्यसमिति को मजबूत करेगी. 

ललन सिंह कहते हैं, 'अखिलेश यादव समाजवादी विचारधारा के हैं और हमारे मित्र भी हैं तो हमें अगर उत्तर प्रदेश में गठबंधन करना होगा तो स्वाभाविक तौर पर हम समाजवादी पार्टी के साथ ही करेंगे. समाजवादी पार्टी हमारा वास्तविक सहयोगी हो सकता है.'

जेडीयू के साथ गठबंधन करने से सपा को क्या हो सकता है फायदा

उत्तर प्रदेश में कुर्मी समुदाय यूपी में यादव के बाद दूसरी सबसे बड़ी ओबीसी जाति है और नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय के इकलौते सीएम हैं, जो पिछले डेढ़ दशक के बिहार की सत्ता के धुरी बने हुए हैं. उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां की सियासत ओबीसी के इर्द-गिर्द घूमती है. ऐसे में बिहार से सटे हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुर्मी समुदाय काफी निर्णायक भूमिका में है. 

एक तरफ जहां कुर्मी वोटरों को साधने के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से लेकर सपा, बसपा और कांग्रेस तक अपने जोर आजमाइश में जुटी हैं तो वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार की पार्टी भी इसी वोटर्स के दम पर सूबे में अपनी सियासी एंट्री करना चाहती है. 

ऐसे में अगर समाजवादी पार्टी का कुर्मी समुदाय के सबसे बड़े नेता नीतीश की पार्टी जेडीयू के साथ गठबंधन होता है तो बीजेपी को मिलने वाला कुर्मी वोट बंट सकता और सपा- जेडीयू गठबंधन को इसका फायदा मिलेगा. वर्तमान में बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) की इस जाति पर अच्छी पकड़ मानी जाती है. 

इस गठबंधन से जेडीयू को क्या होगा फायदा 

बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के साथ सत्ता पर काबिज जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का यूपी विधानसभा में एक भी विधायक नहीं है. हालांकि अगर यह पार्टी सपा के साथ गठबंधन करती है तो इसका साफ कारण यही है कि जदयू यूपी में अपनी जमीन तलाशने के लिए लोकसभा चुनाव में सपा का सहारा ले रही है. 

इसके अलावा पिछले कुछ लोकसभा चुनावों में सीएम नीतीश का नाम पीएम मैटेरियल के तौर पर सामने आता रहा है. जेडीयू इस बात से भी अच्छी तरह वाकिफ है कि पीएम का तख्त मिलने का रास्ता 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी में मजबूत दखल देने से आसान हो जाएगा. यही कारण है कि कई लोकसभा चुनाव में मतदाताओं से गच्चा खा चुकी जेडीयू इस बार समाजवादी पार्टी का सहारा लेकर यूपी की लोकसभा सीटों में जीत का विकल्प तलाशने में जुट गई है. 

अब समझते हैं यूपी में कुर्मी समाज का सियासी असर 

उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज की 6 प्रतिशत आबादी है, जो कि ओबीसी का लगभग 35 प्रतिशत है. कुर्मी समुदाय यूपी की लगभग 36 विधानसभा सीटें और 8 से 10 लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. राज्य के 25 जिलों पर इस समाज का प्रभाव है. जबकि 16 जिले ऐसे हैं जो लगभग 12 फीसदी से ज्यादा सियासी ताकत रखते हैं. यह समाज पूर्वांचल से लेकर बुंदेलखंड तक, अवध से लेकर रुहेलखंड में किसी भी पार्टी का सियासी खेल बनाने और खराब करने की ताकत  रखता है. 

यूपी के किन जिलों पर है कुर्मी समाज का प्रभाव 

यूपी के कई जिलों में कुर्मी समाज का इतना प्रभाव है कि केवल इनके वोटर्स ही किसी भी पार्टी को जिताने की ताकत रखते हैं. इन जिलों में मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, संत कबीर नगर, महाराजगंज, कुशीनगर, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, सिद्धार्थ नगर, बस्ती और बाराबंकी, कानपुर, अकबरपुर, प्रयागराज, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, एटा, बरेली और लखीमपुर शामिल है. 

राज्य में कुर्मी समाज के बड़े चेहरों कौन कौन हैं 

उत्तर प्रदेश के हर इलाके में कुर्मियों के एक नेता है. जिसके सहारे अलग अलग राजनीतिक दल अपने सियासी समीकरण को साधते हुए सत्ता पर काबिज होते रहे हैं. 

कानपुर और बुंदेलखंड: उत्तर प्रदेश के कानपुर और बुंदेलखंड में कुर्मी समाज की सियासत ददुआ के इर्द-गिर्द सिमटी हुई थी. इसके अलावा बीजेपी के विनय कटियार और प्रेमलता कटियार कुर्मी समाज की बड़ी नेता हुआ करती थी. वर्तमान की बात करें तो यहां स्वतंत्रदेव सिंह, ज्योति निरंजन और आरके पटेल कुर्मी समाज के बड़े चेहरे हैं. समाजवादी पार्टी से ददुआ के भाई बालकुमार पटेल और नरेश उत्तम पटेल कुर्मी समाज का बड़ा चेहरा है. 

रुहेलखंड: बीजेपी सांसद व पूर्व मंत्री संतोष गंगवार को रुहेलखण्ड में कुर्मी समाज से सबसे बड़े नेता के तौर पर जाना जाता है. तो वहीं सपा में भगवत चरण गंगवार जिनकी कुर्मी समाज पर अच्छी पकड़ है. 

पूर्वांचल क्षेत्र: यूपी के पूर्वांचल क्षेत्र में अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल को कुर्मी समाज का चेहरा माना जाता है, वर्तमान में वह बीजेपी के साथ हैं. वहीं इस क्षेत्र में समाजवादी पार्टी के पास लालजी वर्मा और बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे राकेश वर्मा हैं. 

2019  लोकसभा चुनाव में कितनी सीटें जीती थी सपा ने

साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बसपा और राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन किया था. इस गठबंधन में सपा ने 37 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन सिर्फ पांच सीटें जीतने में कामयाब हो पाई थी.

सीएम नीतीश कुमार को क्यों कहा जाता है कुर्मी के सबसे बड़े नेता 

बिहार के सीएम नीतीश कुमार की छवि न सिर्फ एक साफ-सुथरे नेता की है. बल्कि कहा जाता है बिहार में नीतीश मतलब 16 प्रतिशत वोट की गारंटी. बिहार में विधानसभा चुनाव हो या देश में लोकसभा चुनाव, नीतीश कुमार के वोटों का ग्राफ हमेशा ही बेहतर रहा है.

चुनावी आंकड़ों के अनुसार बिहार में होने वाले हर विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को औसतन 22 प्रतिशत मतदान मिले हैं. विधानसभा की तुलना में उनका लोकसभा चुनाव में ट्रैक रिकॉर्ड ज्यादा बेहतर रहा है. 

साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में नीतीश जब एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़े थे तब उन्हें 16 प्रतिशत वोट मिले थे. इसके साथ ही उनकी पार्टी ने 2 सीटें भी अपने नाम की थी. 

साल 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ हाथ मिलाने पर एनडीए का वोट शेयर लगभग 18 फीसदी बढ़कर 54.34 प्रतिशत हो गया. बिहार के 40 लोकसभा सीटों में से एनडीए को 39 सीटें मिली और विपक्ष से सिर्फ कांग्रेस 1 सीट ही जीत सकी थी.

नीतीश का सपा के साथ शामिल होने क्यों बढ़ाएगा अनुप्रिया की टेंशन 

जैसा की हम जानते हैं कि उत्तर प्रदेश की सियासत ओबीसी के इर्द-गिर्द घूमती है. सूबे में यादव के बाद दूसरी ओबीसी में सबसे बड़ी आबादी कुर्मी समाज की ही है. राज्य में इनकी संख्या लगभग 6 प्रतिशत है और साल 2014, साल 2017, 2019 और साल 2022 के नतीजों को देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल इस कुर्मी समाज की एक बड़ी नेता के रूप में उभरी हैं. इन चुनाव में अनुप्रिया की पार्टी अपना दल राज्य की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई और बीएसपी और कांग्रेस को भी सीटों के मामले में पछाड़ दिया. 

अपना दल का 2 सीटों से 12 सीटों तक का सफर आसान नहीं 

साल 2012 के विधानसभा चुनाव में अपना दल को बीजेपी ने दो सीटें दी थी और इस पार्टी ने दोनों ही सीटों पर जीत दर्ज की. 

साल 2017 में अपना दल ने भारतीय जनता पार्टी के साथ ही मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा और इस चुनाव में इस पार्टी ने 11 में 9 सीटें अपने नाम की.  इस बार अनुप्रिया की इस पार्टी ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 12 सीटों पर जीत दर्ज में कामयाब रही. 

कुर्मी समाज में अनुप्रिया की लोकप्रियता का इससे भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के प्रत्याशियों के लिए तो प्रचार किया ही. इसके साथ ही कुर्मी बहुल इलाकों में अनुप्रिया ने भारतीय जनता पार्टी के लिए भी प्रचार किया और प्रचार का असर कुछ ऐसा हुआ कि ज्यादातर कुर्मी बहुल इलाकों में भारतीय जनता पार्टी और उसके गठबंधन के साथियों को जीत मिली. 

अब जानते गठबंधन के ऐलान के अलावा क्या बोले ललन सिंह

रविवार को लखनऊ में ललन सिंह ने कहा, "हमने केंद्र सरकार से जाति आधारित जनगणना के लिए कहा और यहां तक कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी जाति आधारित जनगणना के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की. लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. क्षेत्रीय दलों के समर्थन से हमने जाति आधारित जनगणना शुरू की और जारी रखेंगे."

संभावना जताई जा रही है कि ललन सिंह ने सपा के साथ आगामी लोकसभा चुनाव में गठबंधन का संकेत दे दिया है. जिसके बाद अब सपा गठबंधन में अपना दल कमेरावादी, आरएलडी के साथ चंद्रशेखर आजाद के पार्टी के रहने की संभावना है. इसके अलावा जेडीयू भी इस गठबंधन का हिस्सा हो सकती है. बता दें कि राज्य में बीजेपी के खिलाफ बीएसपी ने अकेले चुनाव लड़ने का एलान पहले ही कर दिया था.

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