'मनरेगा का नाम ही नहीं बदला, पूरी मूल संरचना ही बदल गई', टीकाराम जूली का दावा
Tikaram Jully News: नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने 'मनरेगा' बिल को लेकर बड़ा दावा किया है. उन्होंने कहा कि इस योजना का सिर्फ नाम ही नहीं बदला है, बल्कि इसकी पूरी मूल संरचना को ही बदलकर रख दिया है.

राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने ‘मनरेगा’ को लेकर बड़ा दावा किया. उन्होंने कहा कि सरकार ने इस योजना का सिर्फ नाम ही नहीं बदला है, बल्कि इसकी पूरी मूल संरचना को ही बदलकर रख दिया है. पहले इस योजना के तहत काम के आधार पर श्रमिकों को रोजगार दिया जाता था. लेकिन, अब इसमें बजट के आधार पर श्रमिकों को रोजगार दिया जाएगा.
उन्होंने कहा कि इससे इसका पूरा मूल ढांचा ही बदल गया है. उन्होंने शुक्रवार (19 दिसंबर) को आईएएनएस से बातचीत में कहा कि मनरेगा के तहत 12 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता था. अब सरकार ने इस योजना पर बड़ा प्रहार किया है. इस योजना ने कोरोना काल में श्रमिकों की काफी मदद की थी.
बिल पर क्या बोले टीकाराम जूली?
टीकाराम जूली ने कहा कि पहले इस योजना का पूरा बजट केंद्र सरकार की ओर से दिया जाता था. अब नए बिल के बाद राज्य सरकार को भी अपने बजट का कुछ हिस्सा इस योजना को संचालित करने में लगाना होगा. मनरेगा की योजना श्रमिक केंद्रित थी. इस योजना में दो महीने की भी पाबंदी लगा दी गई है. अब इस योजना के नए प्रावधान में कहा गया है कि फसल के समय में श्रमिकों को रोजगार नहीं मिलेगा.
टीकाराम जूली ने लगाया ये आरोप
नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि प्रदेश की मौजूदा सरकार हर चीज का वाणिज्यीकरण कर रही है. अगर हर चीज का इसी तरह से वाणिज्यीकरण होता रहेगा, तो हम आने वाली पीढ़ियों को क्या देकर जाएंगे? जवाब स्पष्ट है कि कुछ भी देकर नहीं जाएंगे. अगर हमारे पूर्वजों ने इसी तरह का कृत्य किया होता, तो आज हमारे पास कुछ भी नहीं होता.
उन्होंने कहा कि हम अब इस तरह की स्थिति को किसी भी कीमत पर स्वीकार करने वाले नहीं हैं. केंद्र सरकार को आम जनता से कोई लेना-देना नहीं है. यह सरकार सिर्फ अपने लोगों को ही फायदा पहुंचाने में जुटी रहती है.
दिल्ली में प्रदूषण पर सरकार पर साधा निशाना
टीकाराम जूली ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण को लेकर भी केंद्र सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण की मार की वजह से आज की तारीख में लोगों का सांस तक लेना दूभर हो चुका है. सरकार इस दिशा में पूरी तरह से उदासीन नजर आ रही है.
उन्होंने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण पर अंकुश लगाने के मकसद से कभी ऑड-ईवन लागू कर देती है, तो कभी कुछ कर देती है, तो कभी कुछ गतिविधियों पर पाबंदी लागू कर देती है. मुझे अफसोस के साथ यह कहना पड़ रहा है कि इसके सकारात्मक नतीजे बिल्कुल भी धरातल पर देखने को नहीं मिल पा रहे हैं.
नेता प्रतिपक्ष का कहना है कि राष्ट्रीय राजधानी में आज भी लोगों को प्रदूषित आबोहवा में सांस लेने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है. आखिर इसका जिम्मेदार कौन है? आज की तारीख में आप दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूंचकाक एएक्यूआई की स्थिति देख लीजिए कैसी है.
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