Sawan 2023: कोटा में 10वीं सदी का है चन्द्रेश्वर महादेव मंदिर, धराशाही होने की कगार पर ये मठ, प्रशासन पर गंभीर आरोप
Kota News: चन्द्रेश्वर महादेव के इस स्थान को शिव मठ भी कहा जाता है. शिव (Shiv) मठ में चार देवालय हैं, जिसमें शिव मंदिर के अलावा विष्णु मंदिर भी प्रमुख हैं.

Chandrasel Mahadev Temple:: कोटा में यूं तो बहुत प्राचीन भगवान भोलेनाथ के मंदिर हैं, सभी की अपनी अलग ही गाथा है, लेकिन कोटा के चंद्रेसल गांव में बने चन्द्रेश्वर महादेव की भी अपनी महिमा है. यहां कहा जाता है कि भगवान के दर्शन कर यहां जलाभिषेक करने मात्र से भगवान मनोकामना पूर्ण कर देते हैं. चम्बल (Chambal) की सहायक नदी चन्द्रलोई के तट पर बने इस मंदिर की प्राचीनता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह मंदिर जमीदोज होने के कगार पर है और यहां की नागा साधुओं की समाधियों पर जो लेख मिलता है वह अपने आप में अनूठा है.
चन्द्रेश्वर महादेव के इस स्थान को शिव मठ भी कहा जाता है. शिव (Shiv) मठ में चार देवालय हैं. जिसमें शिव मंदिर के अलावा विष्णु मंदिर भी प्रमुख है. शिव मंदिर में कई प्रतिमाएं विद्यमान हैं जो मूर्तिकला की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं. चन्द्रेश्वर महादेव शिव भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. इस मंदिर (Temple) में बेशकीमती पुरातत्व संपदा इधर-उधर बिखरी हुई है. जिसकी सार संभाल करने वाला कोई नहीं है.
मंदिर के पास 750 बीघा सिंचित भूमि
मंदिर के पुजारी महंत के अनुसार, मंदिर के नाम पर 750 बीघा सिंचित भूमि है. लेकिन जिला प्रशासन द्वारा इसकी समय पर सुध नहीं लिए जाने के कारण श्रद्धालुओं में नाराजगी है. इस मंदिर पर होने वाली खेती का पैसा जिला प्रशासन के खाते में जाता है. अब तक मंदिर के खाते की जमीन का करोड़ों रूपया सरकार के पास हैं, लेकिन उसका उपयोग इस मंदिर के जीर्णोद्धार में नहीं किया जा रहा, हालाकी कुछ काम हुए हैं, लेकिन काम बीच में ही रोक दिया गया जिससे यह मंदिर धराशाही होने की कगार पर है.
नागा साधुओं ने यहां ली थी जिंदा समाधी
चन्द्रेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी व अन्य ग्रामीण बताते हैं कि यहां नागा साधु रहा करते थे. जो कभी मंदिर से बाहर नहीं आते थे, एक गुफा सीधी नदी तक जाती थी और वहां से वह स्नान आदि कर वापस मंदिर में चले जाते थे. ग्रामीणों का कहना है कि दो साधुओं ने यहां जिंदा ही समाधि ली थी, जबकी अन्य कई नागा साधुओं की यहां समाधि आज भी देखी जा सकती है. इस मंदिर का शिवलिंग भी खंडित होता जा रहा है. अन्य प्रतिमाएं भी यहां बिखरी पड़ी हैं, जिनकी सार संभाल नहीं हो रही, यह मंदिर कोटा बसने से पूर्व का है.
नदी में इतने मगरमच्छ की वहां जाना भी मुश्किल
मंदिर समिति सदस्य प्रेमशंकर गौतम ने बताया कि चन्द्रेश्वर महादेव मंदिर के पास चंद्रलोई नदी है. इस नदी में बडी संख्या में मगरमच्छ देखे जा सकते हैं जो चट्टानों और नदी के किनारे पर बैठे रहते हैं और कई बार हमला भी कर चुके हैं, एक व्यक्ति की मौत भी हो चुकी जबकि कई गाय, भैंस व जानवरों को अपना शिकार बना चुके हैं.
इन्हें यहां से हटाने के लिए प्रशासन को कई बार अवगत करा दिया लेकिन सालों से इस समस्या का समाधान नहीं हुआ. जो श्रद्धालु यहां आते हैं उन्हें हमेशा हादसे का खतरा बना रहता है. यह नदी 12 माह अनवरत बहती है, जिस कारण यहां जानवरों का बसेरा रहता है.
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