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वो पांच बड़े कारण जिसकी वजह से कांग्रेस ने गंवा दिया छिंदवाड़ा... जानें क्यों हार गए नकुलनाथ?

MP Lok Sabha Election Result 2024: छिंदवाड़ा के लिए कहा जाता था कि ये कांग्रेस का ऐसा किला है जिसे कोई नहीं भेद सकता, लेकिन अब यहां से नकुलनाथ की हार के कई कारण सामने आए हैं.

MP Lok Sabha Election Result 2024: मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने सभी 29 लोकसभा सीटें जीत ली हैं, लेकिन, उसकी सबसे बड़ी खुशी छिंदवाड़ा की जीत है. यहां से बीजेपी के नगर अध्यक्ष विवेक बंटी साहू ने एक लाख से अधिक वोटों के अंतर से कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ को पराजित कर दिया.

बीजेपी ने आम चुनाव में कांग्रेस के छिंदवाड़ा किले पर कई दशक बाद पहली बार सेंध लगाई है. हालांकि आजादी के बाद यह दूसरी बार है, जब छिंदवाड़ा से बीजेपी का कोई नेता सांसद बना है. इसके पहले साल 1997 के बाय इलेक्शन में पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को पटखनी दी थी.

बता दें कि, साल 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले तक मध्य प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को कांग्रेस और कमलनाथ का अभेद्य किला कहा जाता था. कहते हैं कि कांग्रेस ने इमरजेंसी के बाद के बेहद खराब हालात में हुए चुनाव में भी छिंदवाड़ा सीट नहीं गंवाई थी. लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी ने ऐसी राजनीतिक बिसात बिछाई की कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ उसमें उलझ कर रह गए. इस सीट में 1997 में कमलनाथ की हार के 27 साल बाद उनके बेटे नकुलनाथ को भी हार का मुंह देखना पड़ा.

दरअसल, छिंदवाड़ा को कमलनाथ का अभेद्य किला कहने के पीछे बड़ी राजनीतिक विरासत जुड़ी हुई है. एक बार के अपवाद को छोड़कर आजादी के बाद अब तक हुए सभी चुनाव में छिंदवाड़ा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार ने ही जीत हासिल की है. पिछले 12 लोकसभा चुनाव में से तो 11 बार कमलनाथ या उनके परिवार के सदस्य ही छिंदवाड़ा से जीतकर लोकसभा में पहुंचे हैं. 

सिर्फ एक बार 1997 के उपचुनाव में बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को पटकनी दी थी.छिंदवाड़ा सीट से कमलनाथ नौ बार, उनकी पत्नी अलका नाथ एक बार और पुत्र नकुलनाथ भी एक बार सांसद रह चुके हैं.

छिंदवाड़ा में नकुलनाथ की हार की पांच बड़ी वजह

1. कमलनाथ और नकुलनाथ द्वारा लोकसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस पार्टी छोड़ने को लेकर गलत संदेश दिया. उनके असमंजस से छिंदवाड़ा संसदीय सीट का मतदाता भ्रमित हो गया. अपने जीवन की सबसे बड़ी राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे कमलनाथ और नकुलनाथ ने कांग्रेस पार्टी छोड़ने या बीजेपी में जाने को लेकर जो गफलत की, वह उन पर भारी पड़ी.

2. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पुराने वफादार नेताओं और कार्यकर्ताओं का साथ छोड़ना जाना भी नकुलनाथ की हार की बड़ी वजह बना. खासकर कमलनाथ के हनुमान कहे जाने वाले दीपक सक्सेना और विधायक कमलेश शाह के बीजेपी में जाने से उनके समर्थक कार्यकर्ता और मतदाता नकुलनाथ के खिलाफ हो गये.

3. भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े रणनीतिकार और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने छिंदवाड़ा में रात बिताकर ऐसी रणनीति तैयार की जिसका तोड़ कमलनाथ और नकुलनाथ नहीं निकाल सके. उन्होंने छिंदवाड़ा में कांग्रेस पार्टी में भगदड़ मचाने के लिए खास प्लान तैयार किया था. इसी वजह से छिंदवाड़ा के 1000 से अधिक कांग्रेस पदाधिकारी बीजेपी में चले गए थे.

4. छिंदवाड़ा से बीजेपी के नगर अध्यक्ष विवेक बंटी साहू के जीत की पटकथा वास्तव में कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने लिखी. उन्होंने दो महीने से ज्यादा वक्त तक छिंदवाड़ा में कैंप करते हुए न केवल बीजेपी कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखा, बल्कि कांग्रेस में तोड़फोड़ में भी बड़ी भूमिका अदा की.

इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में शिवराज सिंह चौहान के प्रचार और लोधी वोट के लिए दो विधानसभा सीटों चौरई एवं अमरवाड़ा में कैबिनेट मंत्री प्रह्लाद पटेल का इस्तेमाल पार्टी ने बखूबी किया. मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में आठ जनसभाएं की. इसके अलावा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने भी छिंदवाड़ा पर फोकस कर रखा था.

5. छिंदवाड़ा में 27 साल बाद बीजेपी की जीत की बड़ी वजह ब्रांड मोदी की चमक भी थी. हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रचार के लिए छिंदवाड़ा नहीं आए लेकिन उनकी गारंटी और राम मंदिर, सनातन और केंद्रीय योजनाओं के हितग्राहियों की बड़ी तादाद ने चुनाव के दौरान बीजेपी के पक्ष में माहौल तैयार किया. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लाडली बहना योजना का असर लोकसभा चुनाव के दौरान भी छिंदवाड़ा में देखा गया.

मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र दुबे कहते हैं कि नकुलनाथ का व्यवहार भी छिंदवाड़ा में कांग्रेस की हार का एक कारण था. नकुलनाथ अभी अपने पिता कमलनाथ की तरह राजनीतिक रूप से परिपक्व नहीं हैं. उन्हें पॉलिटिकल दांव-पेंच नहीं आते हैं. इस वजह से पार्टी के स्थानीय दिग्गज नेता उनसे दूर होते गए. दुबे कहते हैं कि पार्टी छोड़कर जा रहे नाराज नेताओं और कार्यकर्ताओं को कमलनाथ की ओर से भी मनाने की कोशिश नहीं की गई, जो अंत में कांग्रेस को भारी पड़ी.

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