ब्राह्मणों को ही पुजारी नियुक्त किए जाने पर हाई कोर्ट सख्त, मध्य प्रदेश सरकार से 4 हफ्ते में मांगा जवाब
MP High Court: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित मंदिरों में केवल ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्तियों को लेकर दायर याचिका पर राज्य सरका को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

Brahmin Priests In Temples: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित मंदिरों में केवल ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्तियों को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर गंभीर रुख अपनाते हुए राज्य सरकार के विभिन्न विभागों को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. यह याचिका आजाद कर्मचारी संगठन (अजाक्स) द्वारा दायर की गई थी, जिसमें मंदिरों में पुजारियों की नियुक्ति प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.
क्या है याचिका का मामला?
अजाक्स ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा नियंत्रित लगभग 350 से अधिक मंदिरों में केवल ब्राह्मण जाति के व्यक्तियों को ही पुजारी पद पर नियुक्त किया जा रहा है. याचिका में कहा गया है कि ये मंदिर राज्य सरकार की जमीन पर बने हैं और इन मंदिरों का संचालन पूरी तरह सरकार के अध्यात्म विभाग द्वारा किया जा रहा है. पुजारियों को शासन से वेतन भी प्रदान किया जाता है.
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और पुष्पेंद्र शाह ने अदालत के समक्ष पक्ष रखते हुए कहा कि यह नियुक्ति नीति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 का उल्लंघन करती है. अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि जब हिंदू समाज में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लोग भी शामिल हैं, तो केवल ब्राह्मणों को पुजारी नियुक्त करना सामाजिक और संवैधानिक असमानता को बढ़ावा देता है.
मंदिर विधेयक 2019 पर सवाल
याचिका में विशेष रूप से वर्ष 2019 में अध्यात्म विभाग द्वारा पारित मंदिर विधेयक 2019 को चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ता का कहना है कि इस विधेयक के जरिए राज्य सरकार ने धार्मिक संस्थानों पर नियंत्रण स्थापित कर दिया और वेतनभोगी पुजारी नियुक्त करने का प्रावधान किया गया. हालांकि इस कानून की जानकारी आम जनता को नहीं दी गई.
राज्य सरकार की आपत्ति
राज्य सरकार की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल अभिजीत अवस्थी ने याचिका की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा कि अजाक्स एक कर्मचारी संगठन है, जिसे इस प्रकार की याचिका दायर करने का कानूनी अधिकार नहीं है. उन्होंने तर्क दिया कि मंदिरों में पूजा-पाठ की परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसमें राज्य सरकार की सीधी भूमिका नहीं रही है.
हाईकोर्ट की टिप्पणी और अगली सुनवाई
मुख्य न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की खंडपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि मामला संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार से जुड़ा है और इस पर सरकार को स्पष्ट जवाब देना होगा.
कोर्ट ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव (सामान्य प्रशासन), धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग, सामाजिक न्याय मंत्रालय और लोक निर्माण विभाग को नोटिस जारी किए हैं. कोर्ट ने सभी संबंधित विभागों को निर्देश दिया है कि वे चार सप्ताह के भीतर इस मामले में जवाब दाखिल करें. अगली सुनवाई की तिथि कोर्ट द्वारा शीघ्र तय की जाएगी.
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Source: IOCL























