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Morena Horror: मुरैना में हुई नृशंस हत्या से फिर याद आया चंबल का खूनी खेल, इन घटनाओं ने भी झकझोरा था

Morena Murder: मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में जमीन विवाद में छह लोगों की हत्या कर दी गई है जिसने एकबार फिर लोगों को चंबल घाटी के खूनी खेल की याद दिला दी है जिससे लोग भय के साए में हैं.

Morena Crime News: गोली के लिए बदनाम चंबल (Chambal) एक बार फिर गोलियों की गूंज से दहल गया है. घटना के बाद इलाक़े में दहशत का माहौल है. मुरैना जिले के सिहोनियां थाना अंतर्गत आने वाले लेपा गांव में पुराने जमीनी विवाद (Land Dispute) के चलते एक ही परिवार की 6 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई. इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है.

चंबल अंचल में जर,जोरू और ज़मीन के विवाद ने अनगिनत डकैत पैदा कियाथा लेकिन समय के साथ-साथ डकैत ख़त्म हो गए, हथियारों की होड़ का मोह आज तक ग्वालियर चंबल अंचल के लोगों से दूर नहीं हो सका है, आज भी छोटी सी बात पर लोगों का खून खौल जाता है और अगर हाथ में बंदूक़ हो तो चलाने में कोई संकोच नहीं करता है परिणाम चाहे जो भी हो. मुरैना में हुई हत्याकांड की यह कोई पहली घटना नहीं है, जिसमें एक साथ इतने लोगों को गोलियों से भून कर मौत के घाट उतार दिया गया. इससे पहले भी भिंड जिले में इस प्रकार की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं.

1987 में मेहगांव के गितौर गांव में हुआ हत्याकांड
गितौर गांव में 1987 में पांच लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई थी. विवाद की शुरुआत 1986 में हुई थी जब गांव के रामनारायण सिंह के खेत पर खड़े ट्रैक्टर में विरोधी सरनाम सिंह और उनके परिवार के लोगों ने आग लगा दी. फायरिंग में रामनारायण सिंह के पक्ष की गोली से सरनाम सिंह की मौत हो गई. गितौर के पूर्व सरपंच जय सिंह गुर्जर ने बताया कि सरनाम सिंह की मौत का बदला लेने के लिए 28 जुलाई 1987 को जब परिवार के लोग ट्रैक्टर पर बैठ कर भिंड से घर आ रहे थे तो धनौली के पेढ़ा (तिराहा) के पास पहले से घात लगाए बैठे विरोधियों ने ट्रैक्टर में बैठे पांचों सदस्यों की गोली मारकर हत्या कर दी थी, जिसमे रामनारायण सिंह, उनका बेटा सुरेश सिंह, परिवार के सदस्य प्रहलाद सिंह, वीरेंद्र सिंह और पुरंदर सिंह मारे गए थे.

1990 का भिंड के मेहगांव इलाके का पचेरा हत्याकांड
ज़िले में दूसरी बड़ी घटना मेहगांव के ही ग्राम पचेरा की है यहां 1990 में नरेंद्र त्यागी और लक्ष्मीनारायण बोहरे के बीच ज़मीन की ख़रीद फ़रोख़्त को लेकर ठन गई थी. इसी टशन में लक्ष्मी नारायण बोहरे की उनके साथी रामजी बोहरे ने नरेंद्र त्यागी के भाई विद्यासागर की गोली मार कर हत्या कर दी थी. घटना के दौरान ही नरेंद्र त्यागी और उनके परिवार के लोगों ने उसे पकड़कर मौत के घाट उतार दिया और लाश को सेंवडा में सिंध के पुल से नदी में फेंक दिया था.  बदले की आग शांत नहीं हुई लगभग दो साल बाद 20 अक्टूबर 1992 को नरेंद्र, शिवनारायण, प्रेम सागर और साथियो ने मेहगांव के बाजार में स्थित अस्पताल के सामने लक्ष्मीनारायण बोहरे के घर के बाहर पहुंचे और ताबड़तोड़ फ़ायरिंग शुरू कर दी.

इस फ़ायरिंग में लक्ष्मीनारायण बोहरे का भाई मूर्तराम, भतीजी स्नेहलता और ड्राइवर इकबाल ख़ान मारे गए. वहीं रामअवतार बोहरे गोली लगने से घायल हुए. वहीं, 1 जनवरी 2023 को जेल से बाहर आने के 15 दिनों बाद ही नरेंद्र और उनके परिवार ने  15 जनवरी को गांव के हाकिम, गोलू और पिंकु त्यागी को गोलियों से भून कर मौत के घाट उतार दिया.

2021 पावई हत्याकांड
साल 2021 में पावई क्षेत्र के ग्राम डिडौना में भी ज़मीन विवाद ने कमलेश सैंथिया और उनके बेटे प्रदीप की हत्या करा दी थी, लेकिन सनसनी इस बात पर फैली थी कि उन्हें मारने वाला भी कोई और नहीं बल्कि उनका अपना भतीजा भजनलाल शर्मा था जिसने गोली मारकर हत्या की यह डबल मर्डर ज़मीन के बंटवारे को लेकर हुआ था. हालांकि इस दोहरे हत्याकांड के आरोपी को कोर्ट ने आजीवन कारावास के लिए भेज दिया है.

ज़मीनी विवाद ने चंबल में पैदा किए बागी
1960 से लेकर 2005 तक कहा जाता था कि चंबल की भूमि अन्न नहीं बल्कि डकैत पैदा करती है, चंबल वह क्षेत्र हैं जहां ज़मीन विवादों की वजह से कई डकैत और बाग़ी अस्तित्व में आए. इनमें डकैत मोहर सिंह और डाकू मलखान सिंह वे नाम थे जिन्होंने पूरे देश में अपने नाम का ख़ौफ़ बरपाया. बताया जाता है कि डकैत मोहर सिंह गोहद क्षेत्र के ग्राम जटपुरा के रहने वाले थे उनके परिवार में ही ज़मीन को लेकर आपसी विवाद था.

साल 1955 में पारिवारिक विवाद पुलिस तक पहुंचा, जब पुलिस ने भी साथ नहीं दिया तो मजबूरन मोहर सिंह को बंदूक उठानी पड़ी और दुश्मनों से बदला लेने के लिए उन्होंने फ़ायरिंग भी की. इसके बाद वो बीहड़ों में चले गए. साल 1972 में उन्होंने सरेंडर किया उस दौरान उनके ऊपर हत्या के 400 केस थे.

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