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Siyasi Scan: 10वीं क्लास में पहला चुनाव हार गया था ये दिग्गज नेता, हार कर भी दिग्विजय सिंह की सरकार को सत्ता से किया था बेदखल

Madhya Pradesh Political Story: मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सत्ता में लगातार 10 साल से काबिज थे. ऐसे में बीजेपी के सामने चुनौती थी कि दिग्विजय सिंह के सामने आखिर किसे उतारे.

Siyasi Scan: मध्य प्रदेश के दिलचस्प सियासी किस्से सुनाए जाएंगे तब बात होगी प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान की. चौहान अपने राजनीतिक करियर में दो बार ही चुनाव हारे हैं. एक बार जब वे कक्षा 10वीं में थे, तब सचिव पद का चुनाव हार गए थे, जबकि दूसरी बार तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के सामने वे चुनाव हारे थे. 2003 के विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान दिग्विजय सिंह से लोहा लेने के लिए उनके ही गढ़ राघोगढ़ जा पहुंचे थे. इस चुनाव में शिवराज सिंह चौहान को 37 हजार 69 वोट मिले थे. शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक बलिदान की वजह से प्रदेश में कमल खिला और 10 साल से सत्ता में काबिज कांग्रेस सरकार को हटना पड़ा था.

मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह प्रदेश की सत्ता में लगातार 10 साल से काबिज थे. साल 2003 के विधानसभा चुनाव उनका तीसरा कार्यकाल था. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के समक्ष परेशानी थी कि दिग्विजय सिंह के सामने आखिर किसे उतारे. शिवराज सिंह चौहान ने इस चुनौती को स्वीकार किया और राघोगढ़ दिग्विजय से लोहा लेने जा पहुंचे. भारतीय जनता पार्टी अपनी रणनीति में कामयाब भी रही. शिवराज सिंह चौहान के सामने होने की वजह से दिग्विजय सिंह अपनी साख बचाने के चलते राघोगढ़ से बाहर नहीं आ सके. हालांकि इस चुनाव में शिवराज सिंह चौहान को हार का सामना करना पड़ा था. कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह को इस चुनाव में 58 हजार 233 वोट हासिल हुए थे, जबकि शिवराज सिंह चौहान को 37 हजार 69 वोट मिले थे, इस तरह शिवराज सिंह चौहान 21 हजार 164 वोटों से चुनाव हार गए थे. बहरहाल शिवराज सिंह चौहान यह चुनाव हारने के बाद भी बाजीगर साबित हुए और प्रदेश की सत्ता में दस साल से काबिज दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार को उतरना पड़ा.

पांच बार सांसद, सबसे लंबे समय तक एमपी के सीएम
राजनीतिक जिंदगी की शुरुआत में शिवराज सिंह चौहान कक्षा 10वीं में अपना पहला चुनाव हार गए थे. शिवराज सिंह चौहान ने कक्षा 10वीं में कैबिनेट के सांस्कृतिक सचिव का चुनाव लड़ा, लेकिन उसमें जीत हासिल नहीं कर पाए. इसके एक साल बाद उन्होंने 11वीं क्लास में अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और उसमें जीत हासिल कर वो 1975 में छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए.  

पांच बार बने सांसद
सीएम शिवराज सिंह चौहान विदिशा संसदीय सीट से पांच बार सांसद रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक व पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के विदिशा सीट छोड़ने पर शिवराज सिंह चौहान यहां से चुनाव लड़े और सांसद बने. 11वीं लोकसभा में वो यही से दोबारा सांसद बने इसके बाद 12वीं लोकसभा के लिए तीसरी बार भी वो विदिशा से सांसद बने और 1999 में 13वीं लोकसभा के लिए चौथी बार और 15वीं लोकसभा के लिए विदिशा से ही पांचवीं बार सांसद चुने गए.

पांच बार ही बने विधायक
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पांच बार सांसद और पांच बार ही विधायक बने हैं. 1990 में वे पहली बार बुधनी विधानसभा से विधायक बने थे. इधर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश में सबसे अधिक समय तक सीएम बने रहने का रिकार्ड भी अपने नाम दर्ज कर लिया है. सीएम शिवराज सिंह चौहान पहली बार 2005 में मध्यप्रदेश के सीएम बने थे. तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के पद से इस्तीफा देने के बाद 29 नवंबर 2005 को शिवराज सिंह चौहान राज्य के मुख्यमंत्री बने. इसी के साथ उन्होंने सीएम के तौर पर अब तक सबसे लंबे वक्त रहने का रिकार्ड भी है.

हारकर भी जीत गए थे शिवराज
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने मध्य प्रदेश में साल 2003 में हुए विधानसभा चुनाव के अनुभव साझा करते हुए एबीपी को बताया कि दिग्विजय सिंह उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, बीजेपी ने उन्हें घेरने के लिए रणनीति बनाई थी. बीजेपी ने इसके लिए शिवराज सिंह चौहान को चुना था. शिवराज सिंह चौहान साल 2003 में सांसद थे. बीजेपी संगठन की मंशा अनुसार शिवराज सिंह चौहान ने 2003 में राघोगढ़ में दिग्विजय सिंह के सामने चुनाव लड़ा.

दिग्विजय सिंह का उस समय पूरे मध्य प्रदेश में दबदबा था. चाहे वह विंध्य का इलाका, ग्वालियर चंबल हो, मालवा क्षेत्र हो, महाकौशल हो, सभी जगह दिग्विजय सिंह का दबदबा था. ऐसे में दिग्विजय सिंह को राघोगढ़ में ही रोकने के लिए बीजेपी संगठन ने यह रणनीति बनाई थी. शिवराज सिंह चौहान का चुनाव हारना तय था, शिवराज ने फिर भी बलिदान दिया. दिग्विजय सिंह के सामने चुनाव हारने के बाद शिवराज सिंह चौहान पूरी तरह से बीजेपी संगठन की नजर में आ गए थे.

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