LG मनोज सिन्हा ने 2 सरकारी टीचर्स को किया बर्खास्त, टेरर लिंक के आरोप में कार्रवाई
Jammu Kashmir News: जम्मू कश्मीर के LG मनोज कुमार सिन्हा की मंजूरी के बाद शिक्षा विभाग के 2 शिक्षकों, गुलाम हुसैन और माजिद इकबाल डार को आतंकवादी समूहों से कथित संबंधों के आरोप में बर्खास्त किया गया.

जम्मू कश्मीर LG एडमिनिस्ट्रेशन ने आतंकवादियों से संबंध रखने के आरोप में गुरुवार (30 अक्टूबर) को दो और सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है. देश की सुरक्षा और अखंडता के खिलाफ काम करने के आरोप में दो शिक्षकों पर ये कार्रवाई हुई है. इसके साथ ही 5 अगस्त 2019 से अब तक नौकरी से निकाले गए सरकारी कर्मचारियों की कुल संख्या 82 हो गई है.
अधिकारियों के अनुसार, आज (30 अक्टूबर) की बर्खास्तगी से पहले, 2021 से भारत के संविधान के अनुच्छेद 311(2)(c) के तहत 80 सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त किया गया था. यह प्रावधान राज्य की सुरक्षा के हित में जरूरी होने पर बिना किसी जांच के नौकरी से निकालने की अनुमति देता है.
LG मनोज सिन्हा की मंजूरी के बाद कार्रवाई
सभी बर्खास्तगी लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज कुमार सिन्हा की मंजूरी से की गई हैं, क्योंकि वे केंद्र शासित प्रदेश में गृह विभाग के प्रमुख हैं. अब तक जिन कर्मचारियों को बर्खास्त किया गया है, वे शिक्षा, पुलिस, स्वास्थ्य, भेड़ पालन और लोक निर्माण सहित कई विभागों के हैं. कर्मचारियों को बर्खास्त करना भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए नुकसानदायक गतिविधियों में कथित तौर पर शामिल व्यक्तियों को हटाने के लिए सरकार के लगातार अभियान का हिस्सा है.
अब तक कितने लोग हुए बर्खास्त?
शिक्षा विभाग के दो शिक्षकों, गुलाम हुसैन और माजिद इकबाल डार को आतंकवादी समूहों से कथित संबंधों के आरोप में बर्खास्त किया गया है. अन्य बर्खास्त कर्मचारियों की तरह, इन दोनों पर भी देश विरोधी बातें फैलाने और कट्टरपंथी तत्वों की मदद करने का आरोप था. अधिकारी के अनुसार, इस प्रावधान के तहत बर्खास्तगी की संख्या अब 82 से ज़्यादा हो गई है.
किन-किन विभागों के लोगों पर कार्रवाई!
इस साल की शुरुआत में, तीन कर्मचारियों, एक पुलिस कांस्टेबल, एक सरकारी स्कूल शिक्षक और एक मेडिकल कॉलेज में एक जूनियर असिस्टेंट को प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों से कथित संबंध के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था. 2024 में, कुपवाड़ा जिले में इसी तरह के आरोपों में दो और कर्मचारियों, एक शिक्षक और एक स्टॉक असिस्टेंट को सेवा से हटा दिया गया था.
घुसपैठ को रोकने के लिए जांच के बाद एक्शन
रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हर मामले की जांच गृह, कानून और सामान्य प्रशासन विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों वाली एक उच्च-स्तरीय समिति करती है, जो लेफ्टिनेंट गवर्नर को कार्रवाई की सिफारिश करने से पहले खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जमा किए गए सबूतों की जांच करती है. अधिकारियों ने कहा कि ऐसे कदम उचित मूल्यांकन के बाद ही उठाए जाते हैं और सरकारी रैंकों में 'विध्वंसक तत्वों' की घुसपैठ को रोकने के लिए ज़रूरी हैं.
आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस
गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "प्रशासन ने आतंकवाद का समर्थन करने या उसका महिमामंडन करने वालों के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई है. देश की एकता को खतरा पहुंचाने वाला कोई भी व्यक्ति सरकारी सेवा में नहीं रहेगा." हालांकि, अलग-अलग पॉलिटिकल पार्टियों ने आर्टिकल 311(2)(c) के बढ़ते इस्तेमाल पर चिंता जताई है. उनका कहना है कि यह क्लॉज़ खास हालात के लिए है, लेकिन इसे अक्सर बिना प्रभावित कर्मचारियों को अपना बचाव करने का सही मौका दिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
PDP विधायक ने दी चेतावनी
PDP विधायक वहीद-उर-रहमान पारा ने J&K लेजिस्लेटिव असेंबली में मनमाने ढंग से नौकरी से निकाले जाने का मुद्दा उठाया और चेतावनी दी कि ट्रांसपेरेंट जांच प्रक्रियाओं की कमी से नेचुरल जस्टिस के सिद्धांतों को नुकसान पहुंच सकता है. आलोचना के बावजूद, अधिकारी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि सरकार देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के शक वाले कर्मचारियों की जांच जारी रखेगी, और इसके लिए पब्लिक संस्थानों की सुरक्षा और एडमिनिस्ट्रेटिव ईमानदारी बनाए रखने की जरूरत बताई.
2019 में जम्मू और कश्मीर के रीऑर्गेनाइजेशन के बाद से, एडमिनिस्ट्रेशन ने आर्टिकल 311(2)(c) का इस्तेमाल किसी भी दूसरे भारतीय राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की तुलना में ज़्यादा किया है. तुलनात्मक रूप से, पंजाब, असम और मणिपुर जैसे राज्य, जो विद्रोह या सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उन्होंने आर्टिकल 311(2)(c) का इस्तेमाल बहुत कम किया है. सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले दस सालों में इन राज्यों में इस प्रावधान के तहत पांच से भी कम लोगों को नौकरी से निकाला गया है.
Source: IOCL






















