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JNUSU Election: जेएनयू छात्रसंघ चुनाव की ग्राउंड रिपोर्ट, जब विचारधारा टकराई, अंबेडकर मोर्चा बना एपीसेंटर!

JNUSU Election 2025: जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में 'अंबेडकर मोर्चा' बनाम ABVP के बीच वैचारिक संघर्ष गहराता जा रहा है. शिक्षा, महिला सुरक्षा और संविधानिक अधिकार जैसे मुद्दे इस बार बहस के केंद्र में हैं.

Delhi JNUSU Election 2025: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में 25 अप्रैल को होने वाले छात्रसंघ चुनाव 2025 में इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प और वैचारिक रूप से तीखा हो गया है. जहां एक ओर वामपंथी संगठनों की पुरानी एकता में दरार आई है, वहीं दूसरी ओर ‘अंबेडकर मोर्चा’ नाम का एक नया गठबंधन उभरकर सामने आया है, जो इस चुनाव में बड़ा मुद्दा बन चुका है.

क्या है 'अंबेडकर मोर्चा'?

'अंबेडकर मोर्चा' दरअसल एक नया गठबंधन है, जिसमें चार छात्र संगठन शामिल हैं– SFI (Students’ Federation of India), AISF (All India Students’ Federation), PSA (Progressive Students’ Association) और BAPSA (Birsa Ambedkar Phule Students’ Association). इस मोर्चे का उद्देश्य बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की विचारधारा को कैंपस की राजनीति का केंद्र बनाना और ABVP जैसी दक्षिणपंथी ताकतों को चुनौती देना है.

क्यों पड़ी इसकी जरूरत?

पिछले साल जहां AISA, SFI, DSF और AISF ने मिलकर 'यूनाइटेड लेफ्ट' के तहत चुनाव लड़ा था, वहीं इस बार AISA और DSF ने अलग राह चुन ली. SFI और AISF ने BAPSA और PSA के साथ मिलकर ‘अंबेडकर मोर्चा’ का गठन किया. दरअसल, यह बदलाव JNU कैंपस में केवल चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि वैचारिक संघर्ष को भी दर्शाता है- खासकर अंबेडकर और वामपंथी सोच के रिश्ते को लेकर.

एबीपी न्यूज़ ने चुनावी कवरेज में अंबेडकर मोर्चा के सभी अहम पदों पर उम्मीदवारों से बातचीत की SFI की अध्यक्ष पद की उम्मीदवार तय्यबा ने साफ कहा कि ABVP अंबेडकर का नाम केवल दिखावे के लिए इस्तेमाल करता है, जबकि हमारा संघर्ष उनके विचारों को जमीन पर लागू करने का है. कैंपस में महिलाओं की संख्या और सुरक्षा बढ़ाना, स्कॉलरशिप का मुद्दा और फंड कट के खिलाफ आवाज उठाना उनके एजेंडे में शामिल है.

AISF के संतोष कुमार, जो वाइस प्रेसिडेंट पद के उम्मीदवार हैं, कहते हैं कि मोर्चा इस बात की गारंटी देगा कि कैंपस में 'राइट टू डिसेंट' कायम रहे और संविधानिक अधिकारों को संरक्षित किया जाए. BAPSA के रामनिवास गुर्जर, जो जनरल सेक्रेटरी के उम्मीदवार हैं, NEP (नई शिक्षा नीति) को गरीब, SC/ST और EWS वर्ग के लिए नुकसानदायक बताते हैं और इसे पूरी तरह खारिज करते हैं. PSA की निगम कुमारी, जो जॉइंट सेक्रेटरी की उम्मीदवार हैं, ICC को ‘पपेट बॉडी’ बताते हुए महिला सुरक्षा को अपने अभियान का मुख्य मुद्दा बताती हैं.

अग्निवीर से एक्टिविस्ट बने अजयपाल सिंह की कहानी

पूर्व अग्निवीर और अब JNU के छात्र अजयपाल सिंह इस चुनाव में SFI से काउंसलर पद के उम्मीदवार हैं. वे खुद को अंबेडकर मोर्चे का हिस्सा मानते हैं और अग्निपथ योजना की कड़ी आलोचना करते हैं. वे बताते हैं कि 4 साल की सेवा के बाद युवाओं को न भविष्य मिलता है, न स्थायित्व. उनके मुताबिक शिक्षा को निजीकरण से बचाना और छात्रों के हक के लिए लड़ना ही असली देशसेवा है.

JNU छात्रसंघ के पुराने चेहरे क्या कहते हैं?

मौजूदा अध्यक्ष धनंजय (AISA) का मानना है कि लेफ्ट की सोच हमेशा से ही एंटी-कास्ट रही है, जो अंबेडकर के विचारों से मेल खाती है. वे मानते हैं कि अंबेडकरवादी पहचान को राजनीतिक लाभ के लिए नहीं, बल्कि विचार के रूप में अपनाना चाहिए. पूर्व अध्यक्ष आइशी घोष (SFI) इस मोर्चे को जेएनयू की राजनीति में ऐतिहासिक मोड़ मानती हैं. वे कहती हैं कि यह गठबंधन ABVP और संघ की विचारधारा को चुनौती देने के लिए बना है और अल्पसंख्यक व छात्रवृत्ति जैसे मुद्दे इसके केंद्र में हैं.

ABVP की अध्यक्ष पद की उम्मीदवार शिखा स्वराज ने अंबेडकर मोर्चे पर तीखा हमला किया. उनका कहना है कि अंबेडकर ने कभी खुद को कम्युनिस्ट नहीं कहा और कम्युनिज्म को भारत के लिए खतरा बताया. वे आरोप लगाती हैं कि लेफ्ट पार्टियां केवल नाम के लिए अंबेडकर का सहारा लेती हैं, जबकि असल में उनके विचारों का अपमान करती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ABVP के पास अगर पैसे होते, तो वे भी बड़े-बड़े पोस्टर लगाते, लेकिन असल ताकत उनकी संगठनात्मक मेहनत में है.

JNU छात्रसंघ चुनाव 2025 केवल संगठन बनाम संगठन की लड़ाई नहीं है. यह विचारधाराओं की टक्कर है– एक तरफ बाबासाहेब अंबेडकर की सोच को केंद्र में रखने वाला ‘अंबेडकर मोर्चा’, तो दूसरी ओर राष्ट्रवाद और परंपरागत ढांचे को कायम रखने वाली ABVP. इस बार चुनावी लड़ाई में मुद्दे भी गहरे हैं– शिक्षा की पहुंच, स्कॉलरशिप, महिला सुरक्षा, संविधानिक अधिकार और अग्निपथ योजना जैसी नीतियों की आलोचना.

JNU की राजनीति एक बार फिर देशभर की छात्र राजनीति को दिशा देने जा रही है और इस बार केंद्र में हैं बाबासाहेब अंबेडकर.

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