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Nitish Kumar's Decisions: सियासत की पिच पर वसीम अकरम की तरह 'स्विंग के सुल्तान' हैं नीतीश कुमार

Nitish Kumar Latest News: नीतीश कुमार (Nitish Kumar) 22 सालों में 8वीं बार बिहार के सीएम पद की शपथ लेंगे. राजनीति में उनका हर फैसला हमेशा भविष्य में नई इबारत के लिखने के लिए होता है.

बिहार में नई सरकार लेकिन सीएम नीतीशै कुमार... आज वो 8वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. बिहार के इस समाजवादी नेता को सियासत में 'स्विंग का सुल्तान' कहा जाए तो गलत नहीं होगा. क्रिकेट की दुनिया में ये टाइटल पाकिस्तान के गेंदबाज वसीम अकरम को हासिल है.

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) राजनीति के इस कुशल खिलाड़ी हैं इसको उन्होंने साबित कर दिया कि कैसे चुप रहकर ऐन वक्त पर ऐसा फैसला लिया जाए कि राजनीति के बड़े-बड़े पंडित भी कुछ न समझ पाएं. जैसे एक खतरनाक स्विंग को मंझे हुए बल्लेबाज भी समझने में चूक जाते हैं. ईद के मौके पर इफ्तार पार्टी से शुरू हुई नीतीश की रणनीति  रणनीति मोहर्रम के दिन आखिर अंजाम तक पहुंच गई.

बीजेपी जहां बिहार में खुद को बड़े भाई की भूमिका में देख रही थी वहीं नीतीश कुमार के एक फैसले ने पूरी पार्टी को नफे-नुकसान का आकलन करने के लिए करने के लिए मजबूर कर दिया. पटना में जब जेडीयू  विधानमंडल दल की बैठक में बीजेपी से तलाक का फैसला हो रहा था तो दूसरी ओर दिल्ली में बिहार सरकार के मंत्री शाहनवाज हुसैन अपनी उपलब्धियां गिना रहे थे.

नीतीश के तेवर से बीजेपी बैकफुट पर थी और आखिरी पलों तक मामला सुलझ जाने की उम्मीद कर रही थी. लेकिन नीतीश कुमार के बारे में आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव का एक पुराना बयान याद कीजिए जिसमें वो कहते हैं कि अगर कोई कहे कि नीतीश कुमार बीमार हैं तो इसका मतलब ये है कि वो कुछ करने जा रहे हैं.

लेकिन नीतीश ऐसे प्रयोग 1985 से करते आ रहे हैं और ज्यादातर मौकों पर इसका फायद ही मिला है.  साल 1985 नीतीश कुमार नालंदा की हरनौत सीट से पहली बार विधायक चुने गए. उसके बाद 1989 में बाढ़ लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. उस समय नीतीश कुमार खुद को लालू यादव का छोटा भाई बताने से नहीं चूकते थे. लेकिन फिर उन्होंने जनता दल से नाता तोड़कर समता पार्टी बना ली.

समाजवादी और सेक्युलर विचारधारा वाले नीतीश कुमार ने साल 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली बीजेपी से हाथ मिला लिया और केंद्र में  मंत्री बन गए. इसके बाद साल 2000 में वो बिहार के सीएम भी बन गए और फिर केंद्र में दोबारा रेल मंत्री की जिम्मेदारी संभाल ली. साथ ही उन्होंने समता पार्टी का विलय जेडीयू में कर दिया.

साल 2004 और 2009 में एनडीए की हार के बाद भी नीतीश ने इस गठबंधन से नाता नहीं तोड़ा. लेकिन साल 2013 में जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को केंद्र की राजनीति में आगे किया तो उन्होंने गठबंधन तोड़ लिया. हालांकि इस फैसले में उनका कैलकुलेशन थोड़ा गड़बड़ा गया क्योंकि लोकसभा चुनाव में 2014 में उनकी पार्टी जेडीयू और लालू की पार्टी आरजेडी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला. 

हालांकि हार-जीत से परे अगर देखें तो एनडीए से नाता तोड़ने का फैसल नीतीश का एक साहसिक कदम था. जिसने सबकों चौंका दिया लेकिन इसके साथ ही 'सेक्युलर राजनीति' के वो एक बड़े नेता बन गए थे. नीतीश ने भगवा राजनीति के पोस्टर ब्वॉय नरेंद्र मोदी के खिलाफ मोर्चा खोला था.

साल 2015 में नीतीश ने फिर एक स्विंग का इस्तेमाल किया और विधानसभा चुनाव के पहले आरजेडी से हाथ मिला लिया. बिहार में जिन लालू प्रसाद यादव का विरोध उनकी राजनीति का आधार था अब वो उनके साथ चुनाव लड़ने के लिए मैदान में आ गए. दोनों पार्टियों के पहाड़ जैसे वोटबैंक के आगे 'मोदी लहर' इस चुनाव में चकनाचूर हो गई. कांग्रेस को मिलाकर महागठबंधन की सरकार बनी और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गए.

लेकिन साल 2017 में नीतीश ने अबकी बार अंतर्रात्मा की आवाज सुन ली. उनके सामने लालू प्रसाद यादव के परिवार से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले खड़े हो गए थे साथ ही वो शासन चलाने में आरजेडी के हस्तक्षेप से असहज हो गए. फिर क्या था उन्होंने रातों-रात सरकार बदल डाली और महागठबंधन से रिश्ता तोड़कर फिर बीजेपी से हाथ मिला लिया और सीएम की कुर्सी उनके पास बनी रही.

अब साल 2022 यानी 9 अगस्त दिन मंगलवार को उन्होंने कहा कि बीजेपी के साथ काम करना मुश्किल हो गया था. ये बात कहने से पहले वो राज्यपाल को इस्तीफा दे चुके थे. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बाकी बातें पार्टी की ओर से बताई जाएंगी. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह का कहना कि जेडीयू के जहाज में छेद करने की कोशिश की जा रही थी. कभी नीतीश कुमार के एकदम नजदीक रहे आरसीपी सिंह को पार्टी से निकाला जा चुका है. मंगलवार की शाम नीतीश कुमार ने राबड़ी देवी से कहा कि साल 2017 भूल जाइये और नए अध्याय की शुरुआत कीजिए. नीतीश कितनी आसानी से राजनीति की रपटीली राहों में खुद को संभाल लेते हैं और सामने वाले को कुछ भी न समझ पाने के लिए मजबूर कर देते हैं.

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About the author मानस मिश्र

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