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क्या बिहार बीजेपी ने खोज लिया अपना नीतीश कुमार! समझें क्यों हो रही इसकी खूब चर्चा

Bihar News: बिहार में बदलते हुए राजनीतिक समीकरण के तहत, बीजेपी को अपना खुद का नीतीश कुमार मिल गया है. कृष्ण कुमार 'मंटू' पटेल ने नीतीश कुमार की कुर्मी एकता रैली के 31 साल बाद 1 और कुर्मी एकता रैली की.

Bihar Politics: कभी नर्म-नर्म तो कभी सख्त-सख्त, कभी हाथ जोड़ तो कभी साथ छोड़ चल देने की आदत से परेशान बीजेपी लंबे वक्त से बिहार में अपना खुद का नीतीश कुमार खोजती आई है. और ऐसा लगता है कि अब उसकी तलाश पूरी हो गई है. क्योंकि बिहार में ठीक 31 साल बाद वो वक्त आया है, जब नीतीश कुमार इतर एक कुर्मी नेता ने बिहार में कुर्मी चेतना रैली करके अपने इरादे साफ कर दिए हैं. 

आखिर कौन है वो नेता, आखिर बीजेपी से उसका क्या संबंध हैं और क्या अगर मौका आया तो बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व उस नेता में अपने नीतीश कुमार की छवि खोज पाएगा, आखिर क्या है बिहार में बदलते हुए राजनीतिक समीकरण की पूरी कहानी? समझें-

लालू यादव और नीतीश कुमार की दोस्ती टूट चुकी थी
ठीक 31 साल पहले की बात है. साल था 1994. यही फरवरी का महीना था. बिहार में कुर्मी और कोइरी समुदाय के लोगों ने मिलकर एक रैली का आयोजन किया. नाम दिया गया कुर्मी चेतना रैली. ये रैली आयोजित हुई पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में. तब लालू यादव और नीतीश कुमार की दोस्ती टूट चुकी थी. लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे और नीतीश कुमार महज एक सांसद. फिर भी दोनों एक ही पार्टी में थे, जिसके अध्यक्ष थे लालू यादव. लालू ने नीतीश को संदेशा भी भिजवाया था कि रैली उनकी सरकार के खिलाफ एक षड्यंत्र है और अगर नीतीश इस रैली में शामिल होते हैं तो इसे बगावत माना जाएगा. 

नीतीश ने सोचने का लिया वक्त 
नीतीश ने कुछ जवाब नहीं दिया. रैली का इंतजार करते रहे. ठीक वक्त पर रैली शुरू भी हो गई. नीतीश कुमार उहापोह में थे. जाएं कि न जाएं. दोस्त के घर डाइनिंग टेबल पर बैठकर वक्त गुजार रहे थे. भाषण का शोर उनके कानों तक भी पहुंच ही रहा था. दोस्त इसरार कर रहे थे कि जाओ, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा. नीतीश ने सोचने का वक्त लिया. दोपहर के करीब तीन बजे दोस्त के घर का दरवाजा खोलकर बाहर आए. और पहुंच गए उस चेतना रैली के मंच पर, जहां भीड़ उन्हीं का इंतजार कर रही थी. 

नीतीश के मन का संदेह खत्म हो चुका था. शक़-ओ-सुबह की कोई गुंजाइश नहीं बची थी. मंच से साफ शब्दों में बोले,''भीख नहीं हिस्सेदारी चाहिए. जो सरकार हमारे हितों को नजरअंदाज करती है, वो सरकार सत्ता में नहीं रह सकती.''

बदलाव को रोकने के लिए बीजेपी है परेशान 
नीतीश कुमार ने ये बात अपने लोगों से कही थी, जिसे पहुंचना लालू यादव तक था. बात पहुंच गई. बात ये भी पहुंची कि नीतीश तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं. और फिर नीतीश कुमार का संघर्ष शुरू हुआ जो समता पार्टी से होते हुए जनता दल यूनाइटेड और फिर बिहार के मुख्यमंत्री तक की कुर्सी पर भी पहुंच गया. नीतीश कुमार अब भी उसी कुर्सी पर बैठे हैं. 2005 से शुरू हुआ ये सफर चंद महीनों को छोड़ दें तो बदस्तूर जारी है. और इसकी वजह से जितनी परेशान विपक्ष की आरजेडी है, उतनी ही परेशान बीजेपी भी. क्योंकि नीतीश कुमार तो उस कुर्सी पर बैठे ही रहते हैं. बस गठबंधन बदलते हैं तो आरजेडी सत्ता में आ जाती है और बीजेपी विपक्ष में. फिर गठबंधन बदलते हैं तो आरजेडी विपक्ष में आ जाती है और बीजेपी सत्ता में. इस बदलाव को रोकने के लिए बीजेपी परेशान है और उसे तलाश है अपने खुद के नीतीश कुमार की, जिस पर बीजेपी भरोसा कर सके.

और इसी भरोसे को जुटाने की कोशिश में हैं बिहार बीजेपी के नेता और अमनौर विधायक कृष्ण कुमार ‘मंटू’ पटेल, जिन्होंने नीतीश कुमार की कुर्मी एकता रैली के ठीक 31 साल बाद एक और कुर्मी एकता रैली की. हालांकि रैली के बैनर-पोस्टर पर भी नीतीश कुमार ही मौजूद थे और रैली के आयोजक कृष्ण कुमार मंटू पटेल के भाषण में भी बार-बार नीतीश कुमार का ही जिक्र आ रहा था.

नीतीश कुमार के नेतृत्व पर लगातार उठाते रहे हैं सवाल 
इस बाबत पर एबीपी न्यूज़ की रिपोर्टर निधी श्री ने कृष्ण पटेल से सवाल भी पूछा तो उन्होंने नीतीश कुमार को ही अपना नेता बताया. लेकिन सवाल है कि कब तक. आखिर नीतीश कुमार ही कब तक कुर्मी समाज के नेता बने रहेंगे. आखिर उनकी सियासी विरासत को कौन आगे बढ़ाएगा और क्या जो नीतीश की विरासत को आगे बढ़ाएगा वही मुख्यमंत्री का दावेदार भी होगा. ये सवाल उस वक्त में तब अहम हो जाता है.

जब नीतीश कुमार की जाति का ही शख्स उस जाति की रैली निकालता है, लेकिन पार्टी बदली हुई होती है और पार्टी वो होती है जो दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी, लगातार तीन बार केंद्र में सरकार बनाने और उत्तर से लेकर दक्षिण तक का किला फतह करने के बाद भी कभी अपने दम पर बिहार नहीं जीत पाती है. जाहिर है कि बात बीजेपी की है, जिसके कई नेता नीतीश कुमार के नेतृत्व पर लगातार सवाल उठाते रहे हैं.

तो क्या कृष्ण कुमार पटेल की ये कुर्मी यात्रा उसी सवाल का जवाब है, जिसमें कृष्ण सीधे तौर पर नीतीश के उत्तराधिकारी या कहिए कि कुर्मी समाज के नेता बनने की ओर पहला बड़ा कदम उठा चुके हैं, जिसे बीजेपी आलाकमान का वरदहस्त हासिल है. रैली में मौजूद लोग तो इसी बात की ओर इशारा कर रहे हैं.

लेकिन सवाल तब और बड़ा हो जाता है जब इसी साल के अंत में बिहार में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं. और इस चुनाव से चंद महीने पहले मुख्यमंत्री नीतीश के जातिगत समीकरण के गणित में अपनी हिस्सेदारी तलाशती बीजेपी को एक नया नेता मिलता हुआ दिख रहा है, जिसने प्रत्यक्ष तौर पर तो नहीं लेकिन परोक्ष तौर पर नीतीश कुमार की विरासत पर तो दावा ठोक ही दिया है. क्या बीजेपी का आलाकमान इस दावेदारी को अपना सियासी खाद-पानी देकर और सींचेगा या फिर ये कुर्मी चेतना रैली भी बिहार में होने वाली तमाम दूसरी रैलियों की तरह ही महज एक रैली बनकर रह जाएगी, इस सवाल का जवाब आने वाले वक्त में मिलेगा.

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अविनाश राय एबीपी लाइव में प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हैं. अविनाश ने पत्रकारिता में आईआईएमसी से डिप्लोमा किया है और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रैजुएट हैं. अविनाश फिलहाल एबीपी लाइव में ओरिजिनल वीडियो प्रोड्यूसर हैं. राजनीति में अविनाश की रुचि है और इन मुद्दों पर डिजिटल प्लेटफार्म के लिए वीडियो कंटेंट लिखते और प्रोड्यूस करते रहते हैं.

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