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खेल दिवस: जब मेजर ध्यानचंद का खेल देख मैदान छोड़कर चला गया था 'हिटलर'

राष्ट्रीय खेल दिवस: जब बर्लिन के ओलम्पिक्स में ध्यानचंद की कप्तानी में भारत के हाथों अपनी टीम जर्मनी को हारता देख मैदान छोड़कर जाने को मजबूर हो गए थे हिटलर.

नई दिल्ली: आज भले ही हिन्दुस्तान में हॉकी के दीवाने बेहद कम हों लेकिन एक ऐसा दौर भी था जब हॉकी का जादू भारतीय खेल प्रेमियों के सिर चढ़कर बोलता था. उसके जादू के पीछे हॉकी का एक ऐसा सौदागर था जिसे हॉकी थामे देखने भर से हर कोई उनका फैन हो जाता था. जी हां, हम बात कर रहे हैं हॉकी के बेताज बादशाह मेजर ध्यानचंद की. आज मेजर ध्यानचंद की 113वीं जयंती है. आज यानि 29 अगस्त के दिन को खेल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. इसके पीछे का कारण है आज ही के दिन 1905 में इलाहाबाद में उनका जन्म होना. ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता था और भारत क लिए बेहतरीन खेल दिखाते हुए उन्होंने 1928 से लेकर 1936 तक भारत को तीन ओलंपिक गोल्ड भी दिलाए. साल 1928: 1928 में पहली बार ओलंपिक खेलने गए ध्यानचंद ने इस पूरे टूर्नामेंट में अपनी हॉकी का ऐसा जादू दिखाया कि मानो विरोधी टीमें उन्हें मैदान पर देखकर ही डरने लगीं. 1928 में नीदरलैंड्स में खेले गए ओलंपिक में ध्यानचंद ने 5 मैच में सबसे ज्यादा 14 गोल किए और भारत को गोल्ड मेडल जिताया. इस जीत के बाद बोम्बे हार्बर में हज़ारों लोगों ने टीम का ज़ोरदार स्वागत किया. साल 1932: 1928 के करिश्मे को दोहराने में ध्यानचंद को कोई भी परेशानी नहीं हुई. 1932 में लोस एंजलिस में खेले गए ओलम्पिस में जापान के खिलाफ अपने पहले ही मुकाबले को भारत ने 11-1 से जीत लिया. इतना ही नहीं इस टूर्नामेंट के फाइनल में भारत ने यूएसए को 24-1 से हराकर एक ऐसा वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया जो बाद में साल 2003 में जाकर टूटा. इस ओलम्पिक में एक बार फिर भारत गोल्ड मेडलिस्ट बना. साल 1936: अलिगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़े ध्यानचंद के लिए ये ओलम्पिक सबसे ज्यादा यादगार रहने वाला था. ध्यानचंद की कप्तानी में बर्लिन पहुंची भारतीय टीम से एक बार फिर गोल्ड की उम्मीद थी. भारतीय टीम इस टूर्नामेंट में भी उम्मीदों पर खरी उतरी और विरोधी टीमों को पस्त करते हुए फाइनल तक पहुंची. फाइनल में भारत की भिड़ंत जर्मन चांसर एडोल्फ हिटलर की टीम जर्मनी से होनी थी. इस मैच को देखने के लिए खुद हिटलर भी पहुंचे थे. लेकिन हिटलर की मौजूदगी या गैर-मौजूदगी से भारतीय टीम या ध्यानचंद के प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला था. हालांकि इस मैच से पहले भारतीय टीम तनाव में थी क्योंकि इससे पहले वाले मुकाबले में भारतीय टीम को जर्मनी से हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन मैदान पर उतरने के बाद वो तनाव खुद बा खुद दूर हो गया. मैच के पहले हाफ में जर्मनी ने भारत को एक भी गोल नहीं करने दिया. इसके बाद दूसरे हाफ में भारतीय टीम ने एक के बाद एक गोल दागने शुरु किए और जर्मनी को चारो खाने चित कर दिया. हालांकि दूसरे हाफ में जर्मनी भी एक गोल दागने में सफल रही जो कि इस ओलंपिक में भारत के खिलाफ लगा एकमात्र गोल था. इस मैच के खत्म होने से पहले ही हिटलर ने स्टेडियम छोड़ दिया था क्योंकि वो अपनी टीम को हारते हुए नहीं देखना चाहता था। इतना ही नहीं इस मैच के दौरान हिटलर ने मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक भी चैक करने के लिए मंगवाई. बताया जाता है कि मैच के बाद मेजर ध्यानचंद को हिटलर ने मिलने के लिए बुलाया और उन्हें जर्मन आर्मी में सीनियर पोस्ट ऑफर की. लेकिन ध्यानचंद ने इसे सिरे से नकार दिया था. साल 1948: मेजर ध्यानचंद ने साल 1948 में अपना आखिरी मैच खेला और अपने पूरे कार्यकाल में कुल 400 से अधिक गोल भी किए. जो कि एक रिकॉर्ड है. सम्मान: मेजर ध्यानचंद को भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया. उन्हें साल 1956 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.
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