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डायबिटीज से फेफड़े की बीमारी का जोखिम ज्यादा
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रिसर्च का प्रकाशन पत्रिका 'रेस्पिरेशन' में किया गया है. इसमें टाइप-2 डायबिटीज वाले 110 मरीजों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया. इसमें 29 मरीजों में हाल में टाइप-2 डायबिटीज का पता चला था, 68 मरीज ऐसे थे जिन्हें पहले से डायबिटीज था और 48 मरीजों को डायबिटीज नहीं था. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
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रिसर्च से पता चलता है कि आरएलडी एल्बूमिन्यूरिया के साथ जुड़ा है. एल्ब्यूमिन्यूरिया एक ऐसी स्थिति है, जिसमें पेशाब का एल्ब्यूमिन स्तर बढ़ जाता है. यह फेफड़े की बीमारी और गुर्दे की बीमारी के जुड़े होने का संकेत हो सकता है जो कि नेफ्रोपैथी से जुड़ा है. नेफ्रोपैथी-डायबिटीज गुर्दे से जुड़ी बीमारी है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
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जानवरों पर किए गए पहले की रिसर्च में भी रिस्ट्रिक्टिव फेफड़े की बीमारी और मधुमेह के बीच संबंध का पता चला था. यूनिर्विसिटी के प्रोफेसर पीटर पी. नवरोथ ने कहा, "हमे संदेह है कि फेफड़े की बीमारी टाइप-2 मधुमेह का देर से आने वाला परिणाम है." (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
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जर्मनी के हेडेलबर्ग हॉस्पिटल यूनिर्विसिटी के स्टीफन कोफ ने कहा, "तेजी से सांस फूलना, आरएलडी और फेफड़ों की विसंगतियां टाइप-2 डायबिटीज से जुड़ी हैं." (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
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डायबिटीज रहित लोगों की तुलना में टाइप-2 डायबिटीज वाले लोगों में रिस्ट्रिक्टिव फेफड़े की बीमारी (आरएलडी) विकसित होने का जोखिम ज्यादा होता है. आरएलडी की पहचान सांस फूलने से की जाती है. (तस्वीर: गूगल फ्री इमेज)
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ये रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने एक्सपर्ट की सलाह जरूर ले लें.
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