तुर्किए के कट्टर दुश्मन के 'घर' में जाएंगे पीएम मोदी, रचेंगे ऐसा चक्रव्यूह, देखता रह जाएगा पाकिस्तान
1974 में तुर्किए ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से में अतिक्रमण कर लिया था, जिसके बाद यह द्वीप दो हिस्सों में बंट गया. अब एक हिस्से में ग्रीक साइप्रस और दूसरे में तुर्क साइप्रस लोगों का कंट्रोल है.

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तुर्किए ने न सिर्फ खुलकर पाकिस्तान के सपोर्ट में बयान दिए, बल्कि भारत के खिलाफ लड़ने के लिए ड्रोन्स और मिसाइलों की भी सप्लाई की. इस हिमाकत के बाद भारत ने तुर्किए को चारों तरफ से घेरने की तैयारी कर ली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसके सबसे बड़े कट्टर दुश्मन साइप्रस की यात्रा करने वाले हैं.
प्रधानमंत्री मोदी 15 से 17 जून तक कनाडा में होने वाले G-7 सम्मेलन में शामिल होंगे, लेकिन कनाडा से पहले वह साइप्रस जाएंगे और वापसी में क्रोएशिया से होते हुए भारत आएंगे. साइप्रस के साथ तुर्किए की दुश्मनी साल 1974 से चली आ रही है. ऐसे में जब पीएम मोदी साइप्रस में होंगे तो टर्किश राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोगन की टेंशन बढ़ना तो लाजमी है. हालांकि, पीएम मोदी के साइप्रस दौरे को लेकर कोई जानकारी सामने नहीं आई है कि वह क्यों कनाडा से पहले वहां जा रहे हैं.
भारत के खिलाफ तुर्किए ने दिया था पाकिस्तान का साथ
22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बहुत बढ़ गया था. भारत ने हमले का बदला लेने के लिए ऑपरेशन सिंदूर लॉन्च कर पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल मुजाहिदीन आतंकी संगठनों के नौ ठिकानों को तबाह कर दिया था. हालांकि, भारत ने ये कार्रवाई 6-7 मई की दरमियानी रात को की थी, लेकिन उससे पहले ही तुर्किए ने पाकिस्तान को हथियार भेजने शुरू कर दिए थे.
5 मई को पाकिस्तान के कराची पोर्ट पर टर्किश नेवल वॉरशिप, TCG BUYUKADA को देखा गया था, जबकि इससे एक दिन पहले ही तुर्किए की एयरफोर्स ने C-130 एयरक्राफ्ट कराची में लैंड किया था.
साइप्रस को मिलने वाली है EU की अध्यक्षता?
साइप्रस और क्रोएशिया यूरोपीय यूनियन के सदस्य हैं और अगले साल साइप्रस को छह महीने के लिए ईयू की अध्यक्षता मिल सकती है. पिछले महीने पीएम मोदी क्रोएशिया, नीदरलैंड और नोर्वे का दौरा करने वाले थे, लेकिन पाकिस्तान के साथ तनाव के चलते यह दौरा पोसपोन कर दिया गया. इस साल कनाडा जी-7 समिट की मेजबानी कर रहा है और अलबर्ट शहर के कनानस्किस में सम्मेलन का 15 से 17 जून को आयोजन किया जा रहा है, जिसमें पीएम मोदी भी पहुंचेंगे.
तुर्किए ने ड्रोन्स और मिसाइलें ऑपरेट करने के लिए भेजी थी टर्किश टीम
बाद में यह भी सामने आया कि तुर्किए ने सिर्फ ड्रोन्स ही नहीं भेजे, बल्कि उन्हें ऑपरेट करने के लिए ऑपरेटर्स भी भेजे थे. इस सबके अलावा, एर्दोगन बार-बार ये कहते रहे कि वह हर स्थिति में पाकिस्तान के साथ खड़े हैं, जबकि भारत ने 2023 में आए भीषण भूकंप में तुर्किए की मदद की थी. फिर भी एर्दोगन ने भारत को लेकर ऐसा रवैया अपनाया.
पीएम मोदी तीसरे प्रधानमंत्री, जो करेंगे साइप्रस का दौरा
पीएम मोदी भारत के तीसरे प्रधानमंत्री होंगे, जो साइप्रस का दौरा करेंगे. उनसे पहले साल 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी यहां गए थे और उनसे भी पहले साल 1983 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने साइप्रस का दौरा किया था.
तुर्किए और साइप्रस में क्या है लड़ाई?
तुर्किए और साइप्रस का विवाद दशकों पुराना है. साइप्रस एक भूमध्यसागरीय द्वीप है, जो तुर्किए के दक्षिण में, सीरिया के पश्चिम और इजरायल के उत्तर पश्चिम में पड़ता है. साइप्रस में तुर्किए और ग्रीक समुदाय के लोग रहते हैं, जिनमें नस्ली विवाद है. तुर्किए और साइप्रस के बीच विवाद की शुरुआत तब हुई जब साल 1974 में ग्रीक लड़ाकों के तख्तापलट के बाद तुर्किए ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर आक्रमण कर दिया था.
इस घटना के बाद साइप्रस दो हिस्सों में बंट गया, जिनमें से एक में ग्रीक साइप्रस सरकार है और दूसरे पर तुर्क साइप्रस वासियों का कंट्रोल है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग्रीक साइप्रस सरकार के शासन वाले साइप्रस गणराज्य को मान्यता प्राप्त है. वहीं, तुर्क साइप्रस वासियों ने अपने इलाके को एक स्वघाषित राष्ट्र का दर्जा दिया है, जिसे सिर्फ तुर्किए स्वीकार करता है. तुर्किए ने अतिक्रमण में साइप्रस के मशहूर शहर वरोशा पर भी कब्जा कर लिया था, जहां उसके 35 हजार सैनिक तैनात हैं और अब यह शहर वीराना पड़ा है, जबकि पहले यहां पर्यटकों की भीड़ लगी रहती थी.
Source: IOCL





















