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Hijab Row: ईरान से लेकर भारत तक हिजाब पर क्यों छिड़ी है बहस, जानें दुनिया के किन देशों में मचा बवाल

Hijab Row: हिजाब पर तमाम देशों में हर बार अलग-अलग तरह की बहस छिड़ती है. आमतौर पर हर जगह विवाद इसी पर है कि हिजाब पहनने को लेकर आजादी मिलनी चाहिए या नहीं.

Hijab Row: पिछले कुछ दिनों से ईरान में हिजाब को लेकर चिंगारी लगातार सुलग रही है. हिजाब को लेकर हिरासत में ली गई युवती की पुलिस कस्टडी में मौत के बाद पूरे देशभर में प्रदर्शन जारी हैं. महिलाएं अपना हिजाब उतारकर फेंक रही हैं और कैंची से बाल काटकर हिजाब के खिलाफ अपनी आवाज उठा रही हैं. ईरान में महिलाओं की मांग है कि हिजाब को अनिवार्य नहीं किया जाना चाहिए, इसकी वजह से उन्हें अपनी जान क्यों देनी पड़ रही है. हालांकि हिजाब पर बवाल कोई नया नहीं है, दुनियाभर के कई देशों में इसे लेकर विवाद हो चुका है. जिसमें भारत भी शामिल है. 

हिजाब पर तमाम देशों में हर बार अलग-अलग तरह की बहस छिड़ती है. आमतौर पर हर जगह विवाद इसी पर है कि हिजाब पहनने को लेकर आजादी मिलनी चाहिए या नहीं... या फिर कुछ देशों में इस बात को लेकर बहस होती है कि हिजाब अपनी मर्जी से पहनने दिया जाए, यानी इसकी अनिवार्यता नहीं होनी चाहिए. 

ईरान में हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन
अब सबसे पहले बात ईरान में हो रहे ताजा विवाद की करते हैं. ईरान में 22 साल की महसा अमीनी को सिर्फ इसलिए हिरासत में ले लिया गया क्योंकि उसने सिर नहीं ढककर रखा था, यानी हिजाब नहीं पहना था. कुर्द मूल की महसा को हिरासत में लिए जाने के बाद वो कोमा में चली गई, इसके कुछ ही घंटों बाद उसकी मौत हो गई. महसा अमीनी की मौत की खबर पूरे ईरान में आग की तरह फैली, जिसके बाद हिजाब के खिलाफ महिलाओं ने मोर्चा खोल दिया. 

क्या है प्रदर्शनकारियों की मांग?
इस्लामिक देश ईरान में 22 साल की महसा अमीनी की मौत के बाद महिलाओं ने खुलकर प्रदर्शन शुरू कर दिया है. बंदिशों की तमाम बेड़ियों को तोड़ते हुए महिलाएं सड़कों पर उतर आईं हैं और खुलकर हिजाब को लेकर अपना विरोध जता रही हैं. इतना ही नहीं सोशल मीडिया पर भी जमकर इस प्रोटेस्ट को हवा दी जा रही है. ईरानी महिलाओं के इस प्रदर्शन को दुनियाभर के लोगों का समर्थन भी मिल रहा है. प्रदर्शन करने वाली महिलाओं की मांग है कि उन्हें इस बात की आजादी दी जानी चाहिए कि वो हिजाब पहने या नहीं. हिजाब की अनिवार्यता को लेकर उनकी जान को खतरा है. इसीलिए इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए. 

ईरान में कहां हो रहा है प्रदर्शन? 
ईरान के पश्चिमी इलाके कुर्दिस्तान में ये प्रदर्शन सबसे ज्यादा उग्र हैं. हिजाब के खिलाफ सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां भी चलाने का आरोप है, जिसमें 5 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं प्रदर्शन के दौरान करीब 80 से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं. कुर्दिस्तान के तमाम शहरों के अलावा राजधानी तेहरान में भी प्रदर्शन देखे जा रहे हैं. ईरान में मीडिया पर लगाई जाने वाली तमाम पाबंदियों के बावजूद इस प्रदर्शन की आग दुनियाभर में फैल रही है, जिसका सबसे बड़ा कारण सोशल मीडिया को माना जा रहा है. 

अब ईरान का पूरा मामला समझने के बाद हम आपको बताते हैं कि दुनिया के किन देशों में हिजाब को लेकर बवाल हुआ और इसके बाद वहां क्या फैसले लिए गए हैं. 

फ्रांस में हिजाब को लेकर बवाल
फ्रांस दुनिया का ऐसा देश है जहां हिजाब का मुद्दा हमेशा से ही चर्चा में रहा है. यहां 2004 में एक कानून पारित किया गया, जिसके तहत स्कूलों में किसी भी तरह के धार्मिक पहनावे पर बैन लगाया गया. जब ये कानून लाया गया था तो फ्रांस में इसका काफी विरोध भी हुआ. हालांकि फ्रांस की यूनिवर्सिटी और बाकी जगहों पर ये कानून लागू नहीं होता था. इसके बाद 2010 में जब निकोलस सरकोजी फ्रांस के राष्ट्रपति थे, तब एक ऐसा कानून लाया गया जिसमें सार्वजनिक जगहों पर चेहरे को ढककर नहीं रखा जा सकता है. ऐसा करने पर जुर्माने का प्रावधान रखा गया.

इस फैसले के बाद फ्रांस पहला ऐसा यूरोपीय देश बना जहां पर सार्वजनिक तौर पर हिजाब पर बैन लगाया गया. हालांकि इस कानून को लेकर फ्रांस में लगातार प्रदर्शन और विवाद देखने को मिले हैं. फ्रांस के हर चुनाव में हिजाब का ये मुद्दा गरमाता है. बता दें कि फ्रांस में करीब 55 लाख मुस्लिम आबादी है. इनमें वो लोग भी शामिल हैं, जो हिजाब पहनने पर बैन के विरोध में हैं. इसे लेकर फ्रांस में तब फिर से बहस शुरू हो गई जब 2020 में कोरोना महामारी आई और मास्क पहनने को अनिवार्य कर दिया गया. तब कई मुस्लिम एक्टिविस्ट्स ने हिजाब के मुद्दे को उठाया था. 

फ्रांस के राष्ट्रपति चुनाव में हिजाब बड़ा मुद्दा
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों पर उनके विपक्षी दल ये आरोप लगाते आए हैं कि वो इस्लामिक कट्टरता पर नरम रुख रखते हैं. कुछ महीने पहले जब फ्रांस में राष्ट्रपति पद के चुनाव हो रहे थे तो मैक्रों के खिलाफ मैदान में उतरीं दक्षिणपंथी उम्मीदवार मरीन ली पेन ने उन पर इसे लेकर जमकर हमला बोला था. ली पेन ने वादा किया था कि अगर वो जीतकर आती हैं तो हिजाब पर सख्त बैन लगाया जाएगा और ऐसा करने वाले मुस्लिमों से कड़ा जुर्माना वसूला जाएगा. हालांकि मैक्रों भी इस्लाम को लेकर कई विवादित बयान दे चुके हैं, जिसे लेकर तमाम इस्लामिक देश उनकी आलोचना भी कर चुके हैं. 

तुर्की में हिजाब का बहिष्कार
तुर्की एक ऐसा देश है जहां पर काफी लंबे समय से धार्मिक लिबास को लेकर विरोध होता आया है. कई दशकों से बुर्का और हिजाब को लेकर यहां कैंपेन चलाए जा रहे हैं. मॉर्डन तुर्की के जनक कहे जाने वाले कमाल पाशा ने धार्मिक लिबास को लेकर जागरुकता फैलाने का काम किया था. उन्होंने हिजाब के खिलाफ बड़ा आंदोलन छेड़ा था. कमाल पाशा की ही ये कमाल है कि आज तुर्की में ज्यादातर महिलाएं खुलकर अपनी जिंदगी जी रही हैं और उन्हें अपनी मर्जी से कपड़े पहनने की आजादी है. 

हिजाब को लेकर एर्दोगान का अलग रुख
जहां कमाल पाशा ने मॉर्डन तुर्की का सपना देखते हुए हिजाब और तमाम धार्मिक लिबासों से देश को मुक्त कर दिया था, वहीं तुर्की के मौजूदा राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान का रुख हिजाब को लेकर अलग है. एर्दोगान ने हिजाब को लेकर बनाए गए कानून को 2014 में खत्म कर दिया. जिसके बाद एर्दोगान पर तुर्की को एक बार फिर इस्लामीकरण की तरफ धकेलने का आरोप लग रहा है. हालांकि तुर्की में काफी कम संख्या में ही महिलाएं हिजाब या बुर्का पहनती हैं. 

डेनमार्क में भी हिजाब पर विवाद 
यूरोपीय देश डेनमार्क में साल 2018 से हिजाब पर बैन है. यहां चेहरा ढकने वालों के लिए जुर्माने का प्रावधान रखा गया है. यहां के कानून के तहत अगर कोई दूसरी बार इसका उल्लंघन करता है तो 10 गुना अधिक जुर्माना वसूला जाएगा. हालांकि सिर पर रखे जाने वाले स्कार्फ को लेकर बैन नहीं लगाया गया था. सिर्फ चेहरा ढकने पर ही प्रतिबंध लगाए गए. वहीं अब सरकार की तरफ से एक प्रस्ताव लाया गया है, जिसमें हिजाब को पूरी तरह से बैन करने की बात कही गई है. इसे लेकर डेनमार्क में विवाद शुरू हो चुका है. सिर पर स्कार्फ पहनने वाली कई महिलाएं इसके विरोध में उतर आईं हैं. अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक डेनमार्क में कई स्कूल छात्राएं भी स्कार्फ पहनती हैं, अब ये कानून लागू होता है तो वो ऐसा नहीं कर पाएंगीं. 

भारत में भी शुरू हुई बहस
भारत में भी हिजाब को लेकर बहस शुरू है. कर्नाटक के कुछ कॉलेजों से उठा ये विवाद अब पूरे देशभर में फैल चुका है. कर्नाटक में स्कूल और कॉलेजों में हिजाब पहनकर जाने को लेकर विवाद शुरू हुआ. मामला हाईकोर्ट तक गया, लेकिन मुस्लिम छात्राओं को यहां से झटका लगा. हाईकोर्ट ने साफ किया कि हिजाब इस्लाम में अनिवार्य धार्मिक परंपरा नहीं है. यानी हाईकोर्ट ने कर्नाटक सरकार के फैसले के पक्ष में अपना फैसला सुनाया. इसके बाद अब मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. विवाद के बाद कई संगठन हिजाब को बैन करने की मांग कर रहे हैं. ईरान के मुद्दे पर भी भारत का एक बड़ा वर्ग महिलाओं के समर्थन में खड़ा दिख रहा है. 

क्या कहता है अंतरराष्ट्रीय कानून?
इंटरनेशनल कॉन्वनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स (UCCPR) के आर्टिकल 18 में धार्मिक आजादी का जिक्र किया गया है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इसके तहत धर्म और विश्वास के तौर पर न सिर्फ बाकी चीजों की आजादी है, बल्कि विशिष्ट कपड़े या फिर सिर ढकने जैसे रीति-रिवाज भी शामिल हो सकते हैं. ICCPR के आर्टिकल 18  के तहत धर्म की स्वतंत्रता पर कोई भी बैन गैर भेदभावपूर्ण होना चाहिए. 

इन देशों में है हिजाब पर बैन
हिजाब पर बैन लगाने वाले देशों की लिस्ट में लगातार नए नाम जुड़ते जा रहे हैं. दुनिया की एक बड़ी टूरिस्ट डेस्टिनेशन स्विटजरलैंड ने पिछले ही साल हिजाब पर बैन लगाया था. यहां बुर्का और हिजाब दोनों पर ही बैन है. साथ ही इसका उल्लंघन करने पर भारी जुर्माने का प्रावधान भी है. इसके अलावा बेल्जियम, चीन, श्रीलंका, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, बल्गेरिया, नीदरलैंड, स्वीडन और रिपब्लिक ऑफ कांगो ऐसे देश हैं जहां पर हिजाब पूरी तरह से बैन है. इनके अलावा भी कई ऐसे देश हैं, जहां सरकारी स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब नहीं पहना जा सकता है. 

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