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Explained: क्या है UN पीस कीपिंग फोर्स ? वर्षों से भारत दे रहा इसके मिशन में योगदान

UN Peacekeeping Missions: कांगो (Congo) में यूएन पीस कीपिंग मिशन का हिस्सा रहे बीएसएफ के दो जवान एक विरोध प्रदर्शन में मारे गए. यूएन के शांति सैनिक कौन है और भारत का इसमें क्या योगदान है, यहां जानिए.

UN Peacekeeping Missions: कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य-डीआरसी (Democratic Republic Of The Congo-DRC) में मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन (UN Peacekeeping Missions) का हिस्सा रहे भारत के दो जवान मारे गए. सीमा सुरक्षा बल-बीएसएफ (Border Security Force-BSF) के ये दो जवान वहां हो रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान शहीद हुए. आखिर भारत के ये जवान वहां क्या कर रहे थे ? ये वहां क्यों गए थे ? यूएन पीस कीपिंग मिशन क्या है और भारत इसके साथ किस तरह से जुड़ा हुआ है ? इस तरह के सवाल अगर आपके मन में भी उठ रहे हैं तो इन के जवाब जानने के लिए तैयार हो जाइए. यहां आपको यूएन पीस कीपिंग मिशन और भारत (India) के इस मिशन में योगदान की पूरी कहानी पता चलेगी.

कांगो में मारे गए बीएसएफ के जवान मोनुस्को के

कांगो डीआरसी में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन का हिस्सा रहे बीएसएफ के दो जवान 26 जुलाई मंगलवार को युगांडा (Uganda) के साथ लगी सीमा के पास एक पूर्वी शहर में विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे गए. इस प्रदर्शन में दो जवानों सहित कुल पांच लोगों की मौत हुई. गौरतलब है कि अभी तक वहां संयुक्त राष्ट्र में सेवा के दौरान कुल 175 भारतीय शांति सैनिकों (Indian Peacekeepers) की मौत हो चुकी है. भारत ने पीस कीपिंग मिशन में किसी भी अन्य संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश की तुलना में अधिक शांति सैनिकों को खोया है. इन जवानों की शहादत पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ( External Affairs Minister S Jaishankar ) ने ट्वीट किया, “कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में बीएसएफ के दो बहादुर भारतीय शांति सैनिकों के मारे जाने पर गहरा दुख हुआ. वे मोनुस्को (MONUSCO) का हिस्सा थे. इन क्रूर हमलों के अपराधियों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए और उन्हें न्याय के कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए. शोक संतप्त परिवारों के प्रति मेरी गहरी संवेदना है. ” इन दो बीएसएफ जवानों की पहचान हेड कांस्टेबल शिशुपाल सिंह (Shishupal Singh) और हेड कांस्टेबल सांवाला राम विश्नोई ( Sanwala Ram Vishnoi) के रूप में हुई है.

डीजी बीएसएफ ने भी शोक जताया

बीएसएफ के डीजी ने भी दोनों जवानों की मौत पर 27 जुलाई को ट्वीट कर संवेदना जताई. डीजी ने ट्वीट किया, "बीएसफ डीजी और सभी रैंक के कर्मचारी 26 जुलाई 2022 को कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक दल (@MONUSCO) के साथ तैनात एचसी शिशुपाल सिंह और एचसी सांवाला राम विश्नोई के दुखद निधन पर शोक व्यक्त करते हैं, सभी प्रहरी परिवार इस मुश्किल वक्त में मारे गए जवानों के परिवारों के साथ खड़ा है." बीएसएफ के मुताबिक, बुटेम्बो (Butembo ) में मंगलवार का विरोध संयुक्त राष्ट्र मिशन मोनुस्को के खिलाफ प्रदर्शन और आंदोलन के लिए एक सप्ताह के लंबे प्रदर्शनों का एक हिस्सा था.

यूएन पीस कीपिंग मिशन की स्थापना

पिछले 70 वर्षों में, 1 मिलियन यानी 10 लाख से अधिक पुरुषों और महिलाओं ने संयुक्त राष्ट्र के ध्वज के तहत 70 से अधिक संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सेवा की है. संयुक्त राष्ट्र के शांति सैनिक लंबे समय से दुनिया के कुछ सबसे कमजोर लोगों के लिए शांति कायम करने का सबसे बेहतरीन जरिया रहे हैं. उनकी सेवा और बलिदान अक्सर कठोर और खतरनाक परिस्थितियों से मानव जाति को उबारता है. इस वजह से इसके ब्लू हेलमेट दुनिया के लाखों लोगों के लिए आशा का प्रतीक माने जाते हैं. इस की स्थापना 1948 में हुई थी और इसने अपने पहले ही मिशन में 1948 में हुए अरब-इसराइल युद्ध के दौरान युद्धविराम का पालन करवाने में अहम भूमिका निभाई थी. साल 1948 से संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों (UN Peacekeepers) ने 71 फील्ड मिशन शुरू किए हैं. वर्तमान में चार महाद्वीपों में यूएनडीपीओ (UNDPO) के नेतृत्व में 13 शांति अभियानों में लगभग 81,820 कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे हैं. साल 1999 के बाद से यूएन पीस कीपर्स और मिशन में नौ गुना की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. यूएन के दुनिया में शांति स्थापित करने वाले इस पीस कीपिंग मिशन में अभी 119 देशों ने अपने सैन्य और पुलिस कर्मियों का योगदान दिया है. मौजूदा वक्त में, सेवारत लोगों में से 72,930 सैनिक और सैन्य पर्यवेक्षक हैं, और लगभग 8,890 पुलिस कर्मी हैं.

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में भारत का योगदान

भारत का संयुक्त राष्ट्र (UN) शांति स्थापना में सेवा का एक लंबा इतिहास रहा है. भारत ने किसी  किसी भी अन्य देश की तुलना में यूएन पीस कीपिंग मिशन में सबसे अधिक कर्मचारियों का योगदान दिया है. साल 1948 से लेकर अब तक दुनिया भर में स्थापित 71 यूएन शांति अभियानों में से 49 में 2,53,000 से अधिक भारतीयों ने सेवा दी है. मौजूदा वक्त में भारत के लगभग 5,500 सैनिक और पुलिस कर्मचारी संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में तैनात है. इसके साथ भारत यूएन पीस कीपिंग मिशन में सैन्य योगदान देने वाले देशों में पांचवां सबसे बड़ा देश है. भारत ने यूएन मिशनों के लिए मशहूर फोर्स कमांडर ( Force Commanders) भी दिए हैं. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के यूएन के पीस कीपिंग मिशन में भागीदारी का ये सिलसिला अब-तक लगातार चल रहा है. भारत पांचवें सबसे बड़े सैन्य योगदानकर्ता (Troop Contributor-TCC) है.अभी यूएन के 13 सक्रिय शांति मिशन में से आठ में भारत के 5323 कर्मचारी है, जिनमें 166 पुलिस कर्मी है. यूएन शांति स्थापना में भारत का योगदान 1950 के दशक में कोरिया (Korea) में संयुक्त राष्ट्र के ऑपरेशन में भागीदारी के साथ शुरू हुआ था. यहां कोरिया में युद्धबंदियों पर गतिरोध को हल करने में भारत ने मध्यस्थता की अहम भूमिका निभाई और युद्धविराम समझौते पर  हस्ताक्षर हुए. इससे कोरियाई युद्ध (Korean War) खत्म हो गया. भारत ने पांच सदस्यीय तटस्थ राष्ट्र प्रत्यावर्तन आयोग (Neutral Nations Repatriation Commission) की अध्यक्षता की. इसमें भारतीय अभिरक्षक बल ( Indian Custodian Force) ने साक्षात्कार और स्वदेश वापसी प्रक्रिया की निगरानी का काम किया. इसके बाद यूएन ने भारतीय सशस्त्र बलों (Indian Armed Forces) को मध्य पूर्व (Middle East), साइप्रस (Cyprus) और कांगो जिसे साल 1971 से ज़ैरे ( Zaire) नाम से जाना जाता है, में शांति मिशनों की जिम्मेदारी दी. भारत ने वियतनाम, कंबोडिया और लाओस के पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिए तीन अंतरराष्ट्रीय आयोगों के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया है. इसकी स्थापना 1954 में इंडो चीन पर जिनेवा (Geneva) समझौते के जरिए हुई थी.

यूएन पीस कीपिंग में भारतीय महिलाओं की भूमिका

भारत संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में महिला कर्मियों को भेजता रहा है. साल 2007 में भारत यूएन शांति मिशन में महिला दल को तैनात करने वाला पहला देश बना था. भारतीय महिलाओं के इस दल ने लाइबेरिया (Liberia) में गठित पुलिस यूनिट में 24 घंटे की गार्ड ड्यूटी निभाई. इस दल ने राजधानी मोनरोविया (Monrovia) में रात में गश्त की और लाइबेरिया पुलिस की क्षमता को बढ़ाने में अहम योगदान दिया. इन महिला अधिकारियों ने न केवल पश्चिम अफ्रीकी राष्ट्र (West African) में सुरक्षा बहाल करने में भूमिका निभाई बल्कि लाइबेरिया के सुरक्षा क्षेत्र में महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी करने में भी योगदान दिया.

भारत की यूएन शांति मिशन में चिकित्सीय मदद

भारत के दलों ने केवल यूएन पीस कीपिंग में सुरक्षा में ही योगदान नहीं दिया बल्कि भारतीय पुलिस इकाई के सदस्यों ने लाइबेरियाई लोगों के लिए चिकित्सा शिविर भी आयोजित किए. इनमें से कई के पास स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंचना भी मुश्किल था. मेडिकल केयर उन कई सेवाओं में से है जो भारतीय शांति रक्षक उन समुदायों को देते हैं, जहां वो यूएन के शांति सैनिकों के तौर पर काम करते हैं. कई जगह भारत की तरफ से यूएन के ये शांति सैनिक पशु चिकित्सा सहायता और इंजीनियरिंग सेवाओं जैसे खास काम भी करते हैं.दक्षिण सूडान (South Sudan) में यूएन मिशन (यूएनएमआईएसएस-UNMISS) के साथ काम कर रहे भारतीय पशु चिकित्सकों ने पशुपालकों की मदद के लिए कदम बढ़ाया था. यहां उन्होंने इस युद्धग्रस्त देश में कुपोषण और बीमारी के की वजह से अपना पशु धन खो रहे लोगों की मदद की थी. इसके साथ यहां भारतीय दल ने व्यावसायिक प्रशिक्षण और जीवन रक्षक चिकित्सा में मदद करने के साथ सड़कों की मरम्मत में भी योगदान दिया. यहीं नहीं सितंबर 2020 में यूएन सचिवालय से मिले एक तत्काल अनुरोध के आधार पर भारत ने गोमा (Goma-DRC) और जुबा (Juba) में 15-15 की दो चिकित्सा टीमों को तैनात किया. गौरतलब है कि मोनुस्को का मुख्य कमांड-एंड-कंट्रोल हब गोमा डीआरसी में है. गोमा में भारत ने  जनवरी 2005 में एक अस्पताल शुरू किया था जो अब भी चल रहा है. यहां  18 विशेषज्ञों सहित 90 भारतीय नागरिक हैं.

भारतीय प्रयासों को मान्यता

अपर नाइल (Nile) इलाके में भारतीय दल को यूएन मेडल ऑफ ऑनर (UN Medals OF Honour) मिला है. इस सम्मान को लेने वालों में भारतीय बटालियन, हॉरिजॉन्टल मैकेनिकल इंजीनियरिंग कंपनी, लेवल II अस्पताल, पेट्रोलियम प्लाटून और फोर्स सिग्नल यूनिट शामिल हैं. भारत ने कई यूएन मिशनों को 17 फोर्स कमांडर दिए हैं. फोर्स कमांडरों के अलावा भारत ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को दो सैन्य सलाहकार, एक महिला पुलिस सलाहकार और एक उप सैन्य सलाहकार देने का भी सम्मान मिला. भारत साल 2016 में स्थापित यौन शोषण और दुर्व्यवहार के ट्रस्ट फंड में योगदान करने वाला पहला देश बना.

यूएन पीस कीपिंग मिशन पर भारत के विचार

भारत का विचार है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को समकालीन शांति अभियानों की प्रकृति और भूमिका में तेजी से हो रहे परिवर्तनों को समझना चाहिए. यूएन के शांति अभियानों के लिए सुरक्षा परिषद (Security Council) के जनादेश को जमीनी वास्तविकताओं से जोड़कर देखना जरूरी है. इससे साथ ही इसके शांति अभियान के लिए मुहैया कराए गए संसाधनों के साथ संबंधित होना भी जरूरी है. यह महत्वपूर्ण है कि यूएन शांति मिशन में सेना और पुलिस का योगदान करने वाले देशों को मिशन के सभी चरणों और योजना के सभी पहलुओं में पूरी तरह से शामिल करना चाहिए. अधिकारियों के मुताबिक, जहां यूएनपीकेओ (UNPKO) को अनिवार्य किया गया है, वहां संघर्ष के बाद के वक्त में समाजों में शांति निर्माण के लिए अधिक वित्तीय और मानव संसाधन होने चाहिए.

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