जब साड़ी नहीं बनी थी, तब कैसे कपड़े पहनती थीं औरतें? 99% नहीं जानते जवाब
साड़ी भारतीय महिलाओं का एक पारंपरिक परिधान है, जिसमें बिना सिले बुने हुए कपड़े का एक हिस्सा होता है. जिसे शरीर का पर एक रोब की तरह पहना जाता है. इसका एक सिरा कमर से बंधा और दूसरा कंधे पर रहता है.

हर साल 21 दिसंबर को वर्ल्ड साड़ी डे मनाया जाता है. साड़ी भारतीय महिलाओं का एक पारंपरिक परिधान है, जिसमें बिना सिले बुने हुए कपड़े का एक हिस्सा होता है, जिसे शरीर का पर एक रोब की तरह पहना जाता है. इसका एक सिरा कमर से बंधा होता है और दूसरा शॉल की तरह कंधे पर रहता है. साड़ी जैसे कपड़े का इतिहास 2,800 से 1800 बीसी तक सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है.
साड़ी पहनने के कई जाने-माने तरीके हैं. भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में भी कई महिलाएं साड़ी पहनती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब साड़ी नहीं बनी थी, तब औरतें कैसे कपड़े पहनती थीं. चलिए तो आज हम आपको बताते हैं कि जब साड़ी नहीं बनी थी, तब औरतें कैसे कपड़े पहनती थी.
साड़ी से पहले का दौर
कई ऐतिहासिक कहानियां से पता चलता है कि साड़ी दुनिया के सबसे पुराने परिधानों में से एक है. हालांकि, उससे पहले भी महिलाएं कपड़े पहनती थी. सिंधु घाटी सभ्यता के समय करीब ढाई हजार ईसा पूर्व महिलाएं सूती कपड़ों के टुकड़ों को शरीर पर लपेटकर पहनती थीं. यह कपड़े सिलाई वाले नहीं होते थे, बल्कि जरूरत के हिसाब से शरीर पर बांध या लपेट लिए जाते थे. खुदाई में मिले चित्र और मूर्तियां इस बात का प्रमाण भी देते हैं. इसके अलावा मौर्य और गुप्त काल में महिलाओं के कपड़े और ज्यादा व्यवस्थित हुए. उस समय महिलाएं अंतरिया यानी नीचे पहनने का वस्त्र, उत्तरीय यानी दुपट्टा या ओढ़नी जैसा कपड़ा और स्तनपट्ट यानी छाती को ढकने वाला कपड़ा पहनती थी. इन्हीं परिधानों को आधुनिक सदी की शुरुआती झलक माना जाता है. यह कपड़े नेचुरल रंगों से रंगे जाते थे और इन पर हाथ से की गई छपाई होती थी.
दूसरे देशों में कैसे पहनती थी महिलाएं कपड़े?
भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी महिलाओं का पहनावा समय और संस्कृति से जुड़ा था. प्राचीन मिश्र और ग्रीस में महिलाएं ढीले, लंबे कपड़े पहनती थी, जो लीलन या सिल्क जैसे हल्के फैब्रिक से बने होते थे. खास बात यह थी कि इन कपड़ो में भी सिलाई बहुत कम होती थी, जो साड़ी की तरह लपेटकर पहने जाते थे. वहीं मध्यकाल में यूरोप में महिलाओं के कपड़े भारी और परतदार होने लगे. यह पहनावे अमीर और गरीब को फर्क दिखाने का जरिया बन गए. धीरे-धीरे कपड़े ज्यादा सजावटी हुए और आराम पीछे छूटता चला गया. वहीं भारत में भी समय के साथ अलग-अलग क्षेत्रों में पहनावे ने अलग-अलग रूप लिया, लेकिन साड़ी और ड्रेप्ड कपड़ों के परंपरा बनी रही.
क्यों आज भी खास है साड़ी?
आज जब वर्ल्ड साड़ी डे मनाया जा रहा है तो यह सिर्फ साड़ी पहनावे का दिन नहीं, बल्कि उस परंपरा को सम्मान देने का मौका होता है जिसमें महिलाएं हजारों सालों से बिना सिलाई वाले कपड़ों में काम करती आई है. इतिहासकारों के अनुसार, साड़ी सिर्फ कपड़ा नहीं बल्कि संस्कृति की कहानी भी है. इसे पहनने के 100 से ज्यादा तरीके हैं वहीं हर तरीका उस महिला के काम के सेक्टर और जरूरत से जुड़ा होता है. यही वजह है कि आज भी साड़ी खेत से लेकर ऑफिस तक पहनी जाती है.
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