जारी रहा शहरीकरण तो 75 सालों में घट सकते हैं 50 फीसद कीडे़-मकोडे़
कीड़े-मकोड़े पारिस्थितिकी तंत्र के लिए संतुलन बनाने का काम करते हैं.मगर शहरीकरण के चलते अब उनके वजूद पर खतरा मंडराने लगा है.

एक शोध में कीड़े-मकोड़ों की संख्या में भयानक कमी का अंदेशा जाहिर किया गया है. दावा किया गया है कि कीड़े मकोड़ों के हवाले से ये अबतक का सबसे बड़ा शोध है. इसके लिए आंकड़ों को दुनिया भर के 1675 अलग-अलग जगहों से जुटाया गया है.
शोध में बताया गया है कि जमीन के अंदर, झाड़ियों, पेड़-पौधों में बसने वाले कई तरह के कीड़ों में लगातार कमी आ रही है. कीड़े-मकोड़े जैसे ग्रास हॉपर, चीटियों, तितलियों में लगातार कमी की बात कही गई है. शोध के मुताबिक सालाना उनकी तादाद में सालाना एक फीसद की कमी है. टीम में शामिल शोधकर्ता रोल फॉन कलंक का कहना है कि अगले 75 सालों में 50 फीसद कीड़े-मकोड़े घट सकते हैं. शोधकर्ताओं के मुताबिक जमीन पर आबादी में बेतहाशा वृद्धि इसका एक अहम कारण माना जा रहा है. इसी के साथ कृषि योग्य क्षेत्र पर मकान, कारखाने, फैक्ट्री और गोदामों का निर्माण होना है. शहरीकरण होने से कीड़े-मकोड़ों को बढ़ने का माहौल नहीं मिल रहा है. इसके अलावा इंसानी बस्तियों के निर्माण ने भी जमीन के कीड़े-मकोड़ों की संख्या घटाने का काम किया है.
शोधकर्ताओं का मानना है कि फिलहाल ये सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है. अमेरिका की मिशीगन यूनिवर्सिटी के तितलियों पर शोध करनेवाले प्रोफेसर निक हुडाड का कहना है कि स्थिति भवायह हो चुकी है. कीड़े मकोड़ों में कमी के रुजहान देखकर उन्होंने कुछ समय बाद इनके विलुप्त होने की आशंका जताई है. हालांकि संतोषजनक बात ये है कि विशेषज्ञों को कीड़े-मकोड़ों में बढ़ोतरी के संकेत उन जगहों पर मिले हैं जहां सफाई की मुहिम पाई गई. उन्होंने इसका क्रेडिट झीलों और नदियों के दूषित पानी को साफ करने की मुहिम से जोड़ा है. डॉक्टर राउल फान की सलाह है दूषित पानी की जगहों को सफाई अभियान चलाकर कीड़े मकोड़ों की संख्या में वृद्धि लाई जा सकती है.
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