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'पंडितों ने जाति बनाई...', संघ प्रमुख के इस बयान के पीछे क्या है?

मुंबई में एक कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, 'अगर समाज बंटा न होता तो कोई आंख दिखाने की हिम्मत न कर पाता. बाहर से आकर लोगों ने हमारे ऊपर शासन तक किया है'.

आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने कहा है कि जाति व्यवस्था पंडितों ने बनाई है. मोहन भागवत का यह बयान रणनीतिक कदम के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि उनके इस बयान के साथ ही साल 2015 में आरक्षण पर दिया गया बयान भी लोग याद कर रहे हैं. 
 
क्या कहा आरएसएस प्रमुख ने
रविवार को मुंबई में संत रविदास की जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि समाज में बंटवारे का फायदा दूसरों ने उठाया. बाहरी देशों से आए लोगों ने यहां पर राज किया. अगर समाज संगठित होता तो कोई आंख न उठा पाता.

मोहन भागवत ने कहा कि क्या हिंदू समाज के नष्ट होने का भय है, इस सवाल का जवाब कोई पंडित या ब्राह्मण नहीं दे सकता है इसे आपको खुद महसूस करना होगा. जब हर काम समाज के लिए है तो फिर ऊंच-नीच की बात कैसे हो सकती है. 

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भगवान की नजर में सब बराबर हैं कोई जाति-वर्ण में नहीं बंटा है. लेकिन श्रेणियां पंडितों ने बनाई है. आरएसएस प्रमुख ने कहा कि संत रविदास और बाबा साहेब अंबेडकर ने समाज में समता के लिए काम किया है.

साल 2015 में क्या कहा था
बिहार चुनाव से ठीक पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि सरकार को जातीय आरक्षण पर एक समिति बनाकर तय करना चाहिए कि किसको कितना और कितने दिन तक आरक्षण मिले. उनका ये बयान बिहार चुनाव में बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल बन गया.

आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव ने संघ प्रमुख के बयान को बड़ी ही कुशलता से मुद्दा बना दिया और ये संदेश देने में सफल रहे कि मौजूदा बीजेपी सरकार आरक्षण को खत्म करना चाहती है. हालांकि पीएम मोदी सहित पूरी बीजेपी पूरे चुनाव में सफाई देते नजर आई. 

साल 2019 में क्या कहा था संघ प्रमुख ने 
आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने साल 2019 में भी आरक्षण पर एक बयान दिया था. उन्होंने कहा कि जो लोग आरक्षण के पक्ष में और जो इसके खिलाफ हैं, दोनों लोगों को एक दूसरे की बात सुनें तो इसका एक रास्ता बिना किसी कानून या नियम के मिनटों में निकल आएगा. समाज में समता लाने के लिए हमेशा इस पर काम करना होगा और संघ यही कर रहा है.'

आरएसएस के विस्तार की कहानी
संघ की स्थापना साल 1925 में नागपुर में डॉ. केशवराव बलिराव हेडगेवार ने की थी. संघ के एजेंडे में हिंदू राष्ट्रवाद-हिंदू संस्कृति का बढ़ावा देना है. संघ पर आजादी के आंदोलन में हिस्सा न लेने और कई मौकों पर अंग्रेजों का साथ देने का भी आरोप लगता रहा है. हालांकि आरएसएस नेता इसको सिरे से खारिज करते हैं.

हेडगेवार के बाद संघ की कमान 1940 में माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर को मिली. गोलवलकर 1975 तक संघ प्रमुख रहे. इस दौरान आरएसएस को लेकर कई विवाद हुए और इसके विस्तार का भी मौका मिला.

गांधी जी की हत्या से लेकर, देश में कई जगह हुए दंगों तक में संघ पर आरोप लगा. गांधी जी की हत्या के दौरान पंडित नेहरू की सरकार ने संघ पर प्रतिबंध भी लगाया लेकिन चीन युद्ध के बाद 26 जनवरी की परेड में आरएसएस के स्वयंसेवकों ने भी हिस्सा लिया. प्रधानमंत्री उस समय भी पंडित जवाहरलाल नेहरू ही थे.

गोलवलकर के विचार और संघ के भीतर का द्वंद
माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर के समय ही जनसंघ की स्थापना की गई थी और इसके नेता संघ से आए थे. जिसमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी थे.

संघ हालांकि खुद को आज भी सांस्कृतिक संगठन बताता है लेकिन ये सच्चाई छिपी नहीं है कि जनसंघ से लेकर बीजेपी की नीतियों में इसी संगठन की छाप दिखती है.

गोलवलकर के समय एक बड़ा रणनीतिक परिवर्तन किया गया. स्थापना के समय संघ में 'हिंदू संस्कृति' की बात होती थी. लेकिन धीरे-धीरे अब इस विचार को 'भारतीय संस्कृति' में बदल दिया गया. इसके पीछे तर्क ये था कि इस शब्द से बाकी तमाम धर्मों, समुदायों के बीच पैठ बनाने में मदद मिलेगी लेकिन मूल भावना में हिंदू राष्ट्र था.

आलोचक या कह लें कि संघ के विरोधी हिंदू राष्ट्र में जाति व्यवस्था पर हमेशा सवाल करते रहे हैं. गोलवलकर किताब 'बंच ऑफ थॉट्स' भी हमेशा सवालों के घेरे रही है. इस किताब में जातियों को लेकर कथित तौर पर पुराने विचार हैं. 

हालांकि जातिवाद को लेकर संघ ने हमेशा सामजिक समरसता जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है लेकिन इसके खिलाफ आज तक उसका कोई ठोस कार्यक्रम नजर नहीं आता है. 

मोहन भागवत की 'बंच ऑफ थॉट्स' पर सफाई
साल 2018 में मौजूदा संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था गोलवलकर कि किताब बंच ऑफ थॉट्स में कही गई बातें शास्वत नहीं है. उनमें कुछ बातें परिस्थितिवश बोली गई हैं. उन्होंने कहा कि संघ कोई बंद संगठन नहीं है, समय बदलने के साथ ही आरएसएस की सोच भी बदलती है. समय के साथ बदलने की इजाजत हमें हेडगेवार से मिली है.

संघ प्रमुख ने अब क्यों दिया ये जातिवाद पर ये बयान
माना जा रहा है कि संघ प्रमुख की ओर से दिया गया ये बयान हाल ही के दिनों में रामचरित मानस पर हुए विवाद और उसके जरिए खींची जा रही जातीय राजनीति की लकीर को कम करना है. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इसी साल के आखिरी तक विधानसभा चुनाव होने हैं. 

लेकिन इन चुनाव में तपिश उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति में आई अचानक गर्मी के जरिए महसूस की जा सकती है. दरअसल बिहार सरकार इस समय जातीय जनगणना करा रही है. जिसकी रिपोर्ट अगले साल लोकसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकती है.

इसके साथ ही विपक्ष की कोशिश है कि हिंदू राष्ट्रवाद और ओबीसी के गठजोड़ के दम पर बीजेपी ने जो समीकरण बनाया है उसको जातीय राजनीति के उभार के जरिए ही तोड़ा जा सकता है.

रामचरित मानस पर बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर के बयान को यूपी में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी मुद्दा बना लिया है. अखिलेश यादव इस समय ओबीसी, दलित और मुसलमानों को मिलाकर जातीय समीकरण बनाने की कोशिश में हैं.

यही वजह है कि शुरुआती उहापोह के बाद अखिलेश, पार्टी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं जो चंद्रशेखर की तरह ही रामचरित मानस पर सवाल उठा रहे हैं. 

हिंदी पट्टी के राज्यों में जातीय समीकरणों का उभार बीजेपी के लिए बड़ा खतरा बन सकता है. इसका सबसे बड़ा प्रमाण साल 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे रहे हैं. संघ प्रमुख जाति व्यवस्था पर नया बयान देकर एक तरह से इन समीकरणों की धार कुंद करने की कोशिश की है.

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