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बिहार में शराबबंदी से पहले की कहानी, जानिए कैसे आए थे राज्य सरकार के खाते में 6,000 करोड़ रुपये

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का शराब नीति को लेकर दो अलग-अलग रुख रहा है. ये वहीं मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने अपने पहले कार्यकाल के दौरान बिहार में शराब खरीदने या बेचने के नियम में ढील दी थी.

बिहार में शराबबंदी के बावजूद जहरीली शराब पीने से होने वाली मौतों का सिलसिला नहीं थम रहा है. इसी महीने 12 दिसंबर को बिहार के छपरा जिले में जहरीली शराब पीने से दर्जनों लोगों की मौत हो गई. जहरीली शराब के मुद्दे पर सदन में खूब हंगामा हुआ. बीजेपी ने नीतीश कुमार का इस्तीफा भी मांगा.

नीतीश शराबबंदी के बचाव में उतरे और शराब से मरने वालों के प्रति कोई नरमी नहीं बरतने की बात भी कही. नीतीश ने कहा कि जो शराब पिएगा, वो मरेगा ही. मगर, नीतीश ऐसे नहीं थे. 2005 में सरकार बनाने के बाद नीतीश सरकार ने एक्साइज रेवेन्यू बढ़ाने के लिए शराब ठेका खोलने पर जोर दिया था.

नीतीश सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान बिहार में शराब खरीदने या बेचने के नियम में बड़ी ढील दी थी. इससे गांव-गांव में शराब के ठेके खोले गए थे. हालांकि, महिलाओं की मांग और वोट बैंक को देखते हुए उन्होंने अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान यानी साल 2016 में बड़ा यू टर्न लिया और राज्य में शराबबंदी कानून लागू कर दिया. आइए बिहार में शराब ठेके खुलवाने से लेकर शराबबंदी तक की पूरी कहानी जानते हैं...


बिहार में शराबबंदी से पहले की कहानी, जानिए कैसे आए थे राज्य सरकार के खाते में 6,000 करोड़ रुपये

पहले कार्यकाल में दी शराब नीति को ढील

अपने पहले कार्यकाल (2005-10) के दौरान सीएम नीतीश कुमार ने साल 2008 तक राज्य की शराब नीति को ढील दी और एक्साइज रेवेन्यू को 2015 में 6,000 करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया. जो कि साल 2006 तक सिर्फ 500 करोड़ रुपये ही था.

दरअसल, 2005 के नवंबर महीने में जब नीतीश कुमार ने बिहार के सीएम का पद संभाला तो शराब नीति पर उनकी सोच बिल्कुल अलग थी. उन्होंने राजस्व बढ़ाने के लिए दो तरीकों का इस्तेमाल किया. जिसमें पहला था जमीन और फ्लैटों के रजिस्ट्रेशन को बढ़ावा और शराब नीति को ढील देना. 

उस वक्त पंचायतों में शराब की दुकानें खोलने की अनुमति दी गई. परिणामस्वरूप, राज्य के आबकारी राजस्व में वृद्धि होने लगी. हालांकि सीएम के इस कदम की जमकर आलोचना भी की गई, लेकिन सरकार इस पर कायम रही. 

शराबबंदी के बाद हर महीनें करोड़ों का नुकसान 

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी और अब जेडीयू से अलग हो चुके आरसीपी सिंह का आरोप है कि राज्य में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से हर महीने लगभग छह हज़ार करोड़ के राजस्व का नुक़सान हो रहा है. उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी विपक्ष में रहते हुए राजस्व के नुकसान का मामला उठा चुके हैं.


बिहार में शराबबंदी से पहले की कहानी, जानिए कैसे आए थे राज्य सरकार के खाते में 6,000 करोड़ रुपये
(फोटो- पीटीआई)

2016 में लागू किया गया था शराबबंदी कानून
 
सीएम ने साल 2016 में शराबबंदी कानून लागू कर दिया. कानून तो लागू हो गया लेकिन इसका कार्यान्वयन लड़खड़ा गया. इस कानून में अब तक कुल तीन बार संशोधन किया जा चुका है. बिहार में शराब पीने से लेकर इसे खरीदने बेचने पर भी पाबंदी है. शराब के अवैध कारोबार को रोकने के लिए राज्य सरकार ने पुलिस और आबकारी विभाग को जिम्मेदारी सौंपी है.

कैसे आया शराबबंदी का विचार

शराबबंदी का विचार नीतीश कुमार को तब आया जब उनकी जनसभाओं में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल होने लगीं. उनमें से कई महिलाओं ने शिकायत की कि उनके पति उन्हें नशे की हालत में पीटते हैं. सीएम ने इन दलीलों को सुना और महिलाओं का समर्थन पाने के लिए शराब पर प्रतिबंध लगा दिया. 

नीतीश सरकार ने अपने कई बयानों में यह कहा है कि उन्होंने शराबबंदी कानून महिलाओं की मांग को देखते हुए लागू किया है. इसका असर ये हुआ कि बिहार की महिला वोटर नीतीश के पक्ष में चली गई. सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक साल 2010 में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को सबसे बड़ी जीत मिली थी. उस वक्त 39 प्रतिशत महिलाओं ने एनडीए को वोट दिया था.  

इसके बाद साल 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने राजद से हाथ मिलाया और एक बार फिर उनकी जीत हुई. इस चुनाव में उन्हें 42 फीसदी महिलाओं का वोट मिला था.

हालांकि इन्हीं आंकड़ों को देखें तो शराबबंदी की शुरुआत में ज्यादातर महिला वोटरों ने सीएम नीतीश कुमार को वोट दिया था, लेकिन ये असर अब धीरे धीरे कम होता जा रहा है. पिछले कुछ चुनावों में सीएम को महिलाओं का खास समर्थन नजर नहीं आ रहा है.

जहरीली शराब से हर साल मर रहे हैं लोग

बिहार में 2016 से शराबबंदी कानून लागू है. लेकिन इसके बावजूद सूबे में जहरीली शराब का कहर नहीं थम रहा है. 6 साल में अब तक 202 लोगों की जहरीली शराब पीने की वजह से मौत हो चुकी है.

2021 में सबसे ज्यादा 90 मौतें

बिहार में जहरीली शराब पीने की वजह से सबसे ज्यादा 2021 में 90 मौतें हुई थी. राज्य में 2020 में, 2019 में 9, 2018 में 9, 2017 में 8 और 2016 में 13 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं 2022 में अब तक 67 लोग जहरीली शराब पीने की वजह से मारे गए हैं. अधिकांश मौतें गोपालगंज, छपरा, बेतिया और मुजफ्फरपुर जिले में हुई है.


बिहार में शराबबंदी से पहले की कहानी, जानिए कैसे आए थे राज्य सरकार के खाते में 6,000 करोड़ रुपये
6 साल में देश में 6,172 की मौत

केंद्र सरकार के मुताबिक 2016 से 2022 तक भारत में जहरीली शराब पीने से 6,172 लोगों की मौत हुई है. लोकसभा में एक सवाल के जवाब में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया- 2016 में 1054, 2017 में 1510, 2018 में 1365, 2019 में 1296 और 2020 में 947 लोगों की जहरीली शराब पीने से मौत हुई है.

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