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यूपी चुनाव: रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा पर गाजीपुर में 'कमल' खिलाने का दबाव

गाजीपुर: उत्तर प्रदेश में बिहार की सीमा से सटा गाजीपुर जिला यूं तो कभी कम्युनिस्टों का गढ़ हुआ करता था, लेकिन समय बदलने के साथ ही यहां के राजनीतिक समीकरण भी बदलते चले गए. पिछले विधानसभा चुनाव में गाजीपुर की छह सीटों पर एसपी का कब्जा रहा था, जबकि एक सीट कौमी एकता दल के खाते में थी.

तीन सालों में कराए गए विकास कार्यो का लिटमस टेस्ट

लोकसभा चुनाव में यहां से सांसद बनने वाले केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा पर जिले में कमल खिलाने का दबाव तो होगा ही, साथ ही उनकी ओर से पिछले तीन सालों में कराए गए विकास कार्यो का लिटमस टेस्ट भी साबित होने वाला है.

गाजीपुर में कुल सात विधानसभा सीटें हैं. गाजीपुर सदर, जमानियां, मोहम्मदाबाद, जहूराबाद, सैदपुर, जंगीपुर ओर जखनियां. वर्तमान में इनमें से छह सीटों पर एसपी का कब्जा है. एसपी को इस जिले में मिली शानदार जीत का ही नतीजा था कि 2012 में सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यहां से चार विधायकों विजय मिश्रा, ओम प्रकाश सिंह, शादाब फातिमा और कैलाश यादव को मंत्रिपरिषद में जगह दी.

गाजीपुर में एशिया का सबसे बड़ी अफीम कारखाना है. शायद यही गाजीपुर की एकलौती पहचान है. गाजीपुर के जिला अस्पताल में सुविधाओं का आभाव पूरी तरह से दिखाई देता है, तो शहर के भीतर उखड़ी सड़कें विकास की कहानी खुद ही बयां करती हैं.

बीजेपी का कमल खिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं मनोज सिन्हा

गाजीपुर से सांसद व रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा जिले में बीजेपी का कमल खिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. इस बार उनकी प्रतिष्ठा का सवाल भी है. जिले से जितनी सीटें आएंगी, उतनी ही उनकी अहमियत बढ़ेगी.

इलाके के विरोधी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि केंद्र में मंत्री बनने के बाद मनोज सिन्हा ने गाजीपुर के लिए काफी कुछ किया है. उन्होंने गाजीपुर से कई रेलगाड़ियां चलवाईं. बनारस से छपरा वाया गाजीपुर मार्ग का तेजी से दोहरीकरण भी हो रहा है.

इन सारी चुनौतियों के बीच मनोज सिन्हा कहते हैं, "केंद्र सरकार ने कितना विकास किया है, यह तो जनता तय करेगी. लेकिन एक बात मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि बीजेपी इस बार विधानसभा चुनाव में गाजीपुर सारी सीटें जीतकर इतिहास रचने जा रही है."

गाजीपुर सदर सीट :

गाजीपुर सदर सीट से वर्तमान विधायक विजय मिश्र पिछले चुनाव में बीएसपी के प्रत्याशी को हराकर एसपी के विधायक बने थे. बाद में वह सरकार में पांच वर्षो तक धर्मार्थ कार्य मंत्री भी बने. लेकिन एसपी में अंदरूनी कलह के बाद उन पर शिवपाल यादव के करीबी होने का ठप्पा लग गया. इसके बाद अखिलेश यादव ने सदर सीट से उनका टिकट काट दिया.

टिकट कटने से नाराज विजय मिश्र अंतिम क्षणों में बीएसपी में शामिल हो गए. बीएसपी ने भी हालांकि टिकट पहले ही घोषित कर दिया था, लिहाजा उन्हें खाली हाथ ही रहना पड़ा.

गाजीपुर सदर सीट से बीजेपी ने संगीता बलवंत को टिकट दिया है, जबकि एसपी ने यहां के जिलाध्यक्ष राजेश कुशवाहा को मैदान में उतारा है. बीएसपी की तरफ से संतोष यादव ताल ठोक रहे हैं. यह सीट मुख्यतौर पर बिंद और कुशवाहा बाहुल्य मानी जाती है. यहां जीत उसी की होगी जो यह समीकरण साधने में सफल होगा.

सदर सीट पर हालांकि ब्राह्मण, ठाकुर और भूमिहार मतदाताओं की भी अच्छी खासी संख्या है, लेकिन सर्वण जाति का कोई उम्मीदवार न होने से इस जाति विशेष का रुझान किधर होगा, यह देखना दिलचस्प होगा.

बीजेपी की प्रत्याशी संगीता बलवंत कहती हैं, "यूपी में पांच वर्षो तक एसपी का शासन रहा. यहां से चार-चार मंत्री कैबिनेट में शामिल थे, फिर भी गाजीपुर में विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ. जनता आज इसका जवाब मांग रही है."

सदर सीट पर पूर्व मंत्री विजय मिश्रा भी एसपी के लिए काफी मुश्किलें पैदा कर रहे हैं. वह सवर्ण मतदाताओं को बीएसपी के पक्ष में लामबंद करने में जुटे हुए हैं. मिश्रा कहते हैं कि अखिलेश यादव ने सर्वणों को धोखा देने का काम किया है. सवर्णो का हित बीएसपी में ही सुरक्षित है, क्योंकि वह सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय की बात करती है.

जमानिया विधानसभा सीट :

जिले की जमानिया विधानसभा सीट पर पिछले कई चुनाव से यहां के दिग्गज नेता और कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश सिंह का कब्जा रहा है. ओमप्रकाश सिंह पूर्वाचल में एसपी का ठाकुर चेहरा भी हैं. हालांकि एसपी के अंदरूनी कलह में उनके टिकट पर भी खतरा मंडरा रहा था, लेकिन अखिलेश यादव ने उन पर अपना भरोसा बरकरार रखा है.

ओमप्रकाश सिंह को इस बार जमानिया में बीएसपी के उम्मीदवार अतुल राय से कड़ी टक्कर मिल रही है, तो वहीं, ठाकुर बिरादरी की ही बीजेपी प्रत्याशी सुनीता सिंह भी उनके लिए मुश्किलें पैदा कर रही हैं. ओम प्रकाश सिंह को ठाकुर मतों के बिखराव का डर सता रहा है.

ओम प्रकाश सिंह हालांकि हमेशा यह दावा करते रहे हैं कि जमानिया ही नहीं, गाजीपुर में भी उन्होंने विकास का काफी काम कराया है. लेकिन हकीकत यह है कि जनता उनसे नाराज है. वजह यह है कि जमानिया विधानसभा में सड़कों का हाल बेहद खराब है. बिहार का सीमावर्ती क्षेत्र होने की वजह से यहां हमेशा भारी वाहनों का आवागमन होता है, जिससे सड़कें पूरी तरह से टूट चुकी हैं.

इस सीट पर जातीय समीकरण की बातें करें तो यहां ठाकुर के साथ ही मुस्लिम, बिंद और कुशवाहा मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है. ठाकुर होने की वजह से जहां सुनीता सिंह ठाकुर मतदाताओं में सेंध लगा रही हैं, वहीं मुस्लिम मतदाताओं में अतुल राय अपनी पैठ बना रहे हैं. बाहुबली मुख्तार अंसारी के बीएसपी में आने के बाद इलाके के मुसलमानों का रुझान भी बीएसपी की तरफ माना जा रहा है.

गहमर गांव के 35 साल के दुकानदार रामकेवल कुशवाहा ने आईएएनएस से कहा, "इलाके की बदहाली किसी से छुपी नहीं है. ओम प्रकाश सिंह के सामने कोई बोलने की हिम्मत नहीं जुटाता, लेकिन सच्चाई यही है कि जमानिया में पिछले पांच वर्षो के दौरान कुछ नहीं हुआ."

उन्होंने कहा कि यहां का कामाख्या मंदिर प्राचीन समय का ही है. काफी संख्या में लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं, बावजूद इसके उसके उद्धार के नाम पर जो पैसा आया वह भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया.

मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट :

मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट भी गाजीपुर की चर्चित सीटों में गिनी जाती है. वर्ष 2005 में तत्कालीन बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद यह सीट सुर्खियों में आई थी. उनकी हत्या के बाद हालांकि उनकी पत्नी अलका राय को जनता की सहानुभूति मिली और उप चुनाव जीतने में कामयाब रही थीं. हालांकि उस समय बीएसपी ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था.

नवंबर 2005 में हुई बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या का आरोप गाजीपुर के ही बाहुबली और मउ सदर से विधायक मुख्तार अंसारी पर लगा था. वर्ष 2002 में हालांकि मुख्तार के बड़े भाई शिवगतुल्लााह अंसारी इस सीट से जीतने में कामयाब रहे थे.

मोहम्मदाबाद सीट से मुख्तार अंसारी परिवार की प्रतिष्ठा भी जुड़ी हुई है. पिछली बार उनके भाई कौमी एकता दल से मैदान में थे, लेकिन इस बार वह बीएसपी के टिकट पर मैदान में हैं. बीजेपी ने इस सीट से एक बार फिर कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय पर दांव लगाया है. एक दूसरे के धुर विरोधी होने की वजह से इस इलाके में ध्रुवीकरण हमेशा ही दिखाई देता है.

मोहम्मदाबाद में भूमिहार, मुस्लिम, यादव और दलित मतदाताओं की संख्या बहुत ज्यादा है. राजभर भी अच्छी संख्या में हैं. इस सीट पर भूमिहार मतदाता हमेशा ही निर्णायक साबित होते आए हैं. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले विधानसभा चुनाव में इस सीट से एसपी, बीएसपी, कांग्रेस और बीजेपी ने भूमिहार उम्मीदवारों पर ही दांव लगाया था. तब आपसी लड़ाई में बाजी शिवगतुल्लाह अंसारी के हाथ लगी थी.

इस बार यहां का समीकरण बदल गया है. एसपी और कांग्रेस गठबंधन के बाद यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ. जनक कुशवाहा मैदान में हैं. अलका राय एक मात्र भूमिहार प्रत्याशी हैं. इस वजह से वह इस बार शिवगतुल्लाह को कड़ी टक्कर दे रही हैं.

मोहम्मदाबाद के वरिष्ठ पत्रकार गोपाल यादव ने आईएएनएस से कहा, "देखिए मोहम्मदाबाद में इस बार सीधी लड़ाई बीजेपी और बीएसपी के बीच है. इसके दो कारण हैं. एक तो एसपी-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार जनक कुशवाहा जहूराबाद से हैं. उन पर बाहरी का ठप्पा लग रहा है. दूसरा यह है कि एसपी ने इस बार अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है. दिलचस्प बात यह है कि एसपी और बीएसपी की लड़ाई में एसपी का कोर वोटर भी बीजेपी के साथ खड़ा दिख रहा है. ऐसा मोहम्मदाबाद में पहली बार हो रहा है."

मोहम्मदाबाद से एसपी-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार जनक कुशवाहा हालांकि इस दावे को खारिज करते हैं कि एसपी का कोर वोटर भी बीजेपी में जा रहा है. उन्होंने कहा कि ऐसी अफवाहें जानबूझकर फैलाईं जा रही हैं, ताकि ध्रुवीकरण का खेल खेला जा सके. अखिलेश के काम की बदौलत गठबंधन को यहां से भारी मतों से जीत मिलेगी.

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