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यूपी: समाजवादी पार्टी के खिलाफ बसपा सुप्रीमो मायावती के तेवर गरम, अखिलेश नरम!

बता दें कि मायावती ने अकेले उपचुनाव लड़ने की घोषणा बहुत तल्ख तेवर में की थी, तब जाकर अखिलेश ने कहा था कि वह भी उपचुनाव अकेले ही लड़ेंगे. इसके बाद से न तो इस मुद्दे पर कोई बयान आया, न उनका कोई प्रवक्ता बोलने को तैयार है.

लखनऊ: लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच रिश्तों में खटास लगातार बढ़ती जा रही है. मायावती ने ऐलान कर दिया है कि बसपा अब आगे के सभी छोटे-बड़े चुनाव अपने बूते पर लड़ेगी और वह लगातार समाजवादी पार्टी (सपा) और अखिलेश यादव पर हमलावर हैं. लेकिन लोकसभा चुनाव में नुकसान होने के बाद भी सपा खामोश है. वह मायावती के किसी भी हमले पर प्रतिक्रिया नहीं दे रही है.

मायावती ने कहा, "लोकसभा चुनाव के बाद सपा का व्यवहार बसपा को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसा करके बीजेपी को आगे हरा पाना संभव होगा? जो संभव नहीं है. इसलिए पार्टी और मूवमेंट (आंदोलन) के हित में अब बसपा आगे होने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले अपने बूते पर ही लड़ेगी."

वह यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने सपा पर हमला करते हुए कहा, "अखिलेश नहीं चाहते थे कि लोकसभा चुनाव में मुस्लिमों को अधिक टिकट दिए जाएं. उन्हें डर था कि इससे वोटों का ध्रुवीकरण होगा." उन्होंने इसके साथ यह भी कहा है कि बसपा कार्यकर्ता किसी मुद्दे पर धरना-प्रदर्शन नहीं करेंगे.

मायावती ने रविवार को पार्टी की अखिल भारतीय स्तर की बैठक में कहा, "गठबंधन के चुनाव हारने के बाद अखिलेश ने उन्हें फोन नहीं किया. सतीश मिश्रा ने उनसे कहा कि वह मुझे फोन कर लें, फिर भी उन्होंने फोन नहीं किया. मैंने बड़ा होने का फर्ज निभाया और मतगणना के दिन 23 तारीख को उन्हें फोन कर उनकी पत्नी डिंपल यादव और परिवार के अन्य लोगों के हारने पर अफसोस जताया."

मायावती ने कहा, "तीन जून को जब मैंने दिल्ली की मीटिंग में गठबंधन तोड़ने की बात कही तब अखिलेश ने सतीश चंद्र मिश्रा को फोन किया, लेकिन तब भी मुझसे बात नहीं की."

उन्होंने इस मुद्दे पर अखिलेश के पिता मुलायम को भी घसीट लिया और कहा, "मुझे ताज करिडोर केस में फंसाने में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मुलायम सिंह यादव का भी अहम रोल था. अखिलेश की सरकार में गैर यादव और पिछड़ों के साथ नाइंसाफी हुई. इसलिए उन्होंने वोट नहीं दिया. बसपा के प्रदेश अध्यक्ष आर.एस. कुशवाहा को सलेमपुर सीट पर विधायक दल के नेता राम गोविंद चौधरी ने हराया, लेकिन अखिलेश ने उन पर कोई कार्रवाई नहीं की."

अब इतने बड़े हमले के बाद भी सपा का जवाब न आना कहीं न कहीं उनको और उनकी पार्टी को पीछे धकेलता है.

मायावती ने अकेले उपचुनाव लड़ने की घोषणा बहुत तल्ख तेवर में की थी, तब जाकर अखिलेश ने कहा था कि वह भी उपचुनाव अकेले ही लड़ेंगे. इसके बाद से न तो इस मुद्दे पर कोई बयान आया, न उनका कोई प्रवक्ता बोलने को तैयार है. सवाल उठता है आखिर क्यों?

राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल के अनुसार, "सपा की ओर से अगर मायावती के किसी बयान का उत्तर दिया गया तो मायावती चारों तरफ से अखिलेश को घेर लेंगी. पिता-चाचा का उदाहरण देकर उन्हें बहुत उधेड़ देंगी. अभी देखा जाए तो चूहा-बिल्ली के खेल में बसपा भारी है."

उन्होंने कहा, "अभी अखिलेश को अक्रामक जवाब देने से कोई फायदा नहीं है. इसीलिए वह शांत हैं. अखिलेश सोच रहे होंगे कि शायद कुछ बात बन जाए. सपा अभी बीच का रास्ता निकालने का भी प्रयास कर रही होगी. इसीलिए वह 'वेट एंड वाच' की स्थित में है."

एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक राजकुमार सिंह ने कहा, "समजावादी पार्टी में अखिलेश यादव के अलावा कोई बोलने वाला नहीं है. अभी वह राजनीतिक सदमे में हैं. पहले वह संगठन को आंतरिक रूप से मजबूत करेंगे. अभी अखिलेश के पास कोई जवाब नहीं है. मायावती ने लीड ले ली है."

राजकुमार ने बताया, "अखिलेश तथ्यों के साथ जवाब देना चाह रहे हैं. इसलिए अभी वह मुस्लिम और यादवों का एक डेटा तैयार करा रहे हैं, जिसमें एक-एक विधानसभा में कोर वोटर का हिसाब दें. वह बताना चाहेंगे कि उन्होंने कितनी ईमानदारी के साथ गठबंधन को निभाया है. इसलिए वह खमोश हैं."

लोकसभा चुनाव में संतोषजनक सीटें न मिलने से मायावती खफा हैं. वह 12 सीटों पर होने वाले विधानसभा के उपचुनाव और 2022 में होने वाले चुनाव को लेकर पार्टी में बड़े बदलाव कर रही हैं. मायावती ने लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से ही सपा पर हमले शुरू कर दिये थे.

सपा के मुरादाबाद से सांसद डॉ़ एस.टी. हसन ने मायावती के हमले पर तो प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन उन्होंने कहा, "पहले भी हम अकेले लड़ते थे, आगे भी अकेले लड़ेंगे. अखिलेश यादव कभी फोन करके हिंदू मुस्लिम की बात नहीं करते हैं. हमारी पार्टी के पास जनाधार है. बसपा के पास एक भी सीट नहीं थी, अब वह 10 पर है. वह (मायावती) हमारी जुबान से सब क्यों कहलवाना चाहती हैं."

उन्होंने कहा, "लोकसभा चुनाव में अल्पसंख्यकों का वोट सपा को गया है और हमारा वोट बसपा को भी मिला है. मायावती ही बता सकती हैं. उन्होंने ऐसा बयान क्यों दिया है. इस पर राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव निर्णय लेंगे. अगर वह नहीं चाहती हैं तो हम भी अकेले चुनाव लड़ेंगे."

सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी कहते हैं कि जनता सच्चाई जानती है. "राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का चरित्र किसी को धोखा देने वाला नहीं है. सपा संविधान का सम्मान करने और समाजवादी विचारधारा पर चलने वाली पार्टी है. अखिलेश यादव ने कभी भी किसी पर कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की. सपा ने हमेशा बेहतर काम करने और सभी को साथ लेकर चलने का काम किया है."

प्रगतिशील समाज पार्टी (प्रसपा) के प्रवक्ता डॉ़ सी.पी. राय के अनुसार, "सपा अभी से नहीं पिछले ढाई-तीन साल से खमोश है. उसे जितना बोलना था, मुलायम और शिवपाल के खिलाफ बोला गया है. मायावती ने गेस्टहाउस कांड का बदला ले लिया. सबको झुका लिया. सबसे पैर छुआ लिए. उन्होंने अपना काम कर लिया."

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