बी ज़मानी बेगम: खैर छोड़ो इस किस्से को, कुछ-न-कुछ हो ही जाएगा
तीसरा बोला-“बिल्कुल दुरुस्त है...आइये, हम फौरन यह नेक काम शुरू कर दें.” तीनों तरीकेे मिलाकर एक नया तरीका बनाया गया, जिस पर तीनों बड़े डॉक्टर मुत्तफिक हो गये. दुनिया का चेहरा खुशी से तमतमा उठा!

बी ज़मानी बेगम
सआदत हसन मंटो
“ज़मीन शक हो रही है, आसमान काँप रहा है, हर तरफ धुआँ है, आग के शोलों में दुनिया उबल रही है, ज़लज़ले आ रहे हैं...यह क्या हो रहा है?”
“तुम्हें मालूम नहीं?”
“नहीं तो!”
“लो सुनो...दुनिया भर को मालूम है.”
“क्या?”
“वही ज़मानी बेगम...वही मुई चड्डो...”
“हां हां, क्या हुआ उसे?”
“वही जो होता आया है...लेकिन इस उम्र में...? शर्म नहीं आई बदबख़्त को.”
“यह बदबख़्त ज़मानी बेगम है कौन?”
“हाएं...वही सिकन्दर की होती-सोती...मुई टखायाई चंगेज़ के पास रही, हलाकू की दाश्ता बनी, कुछ दिन उस लँगड़े तैमूर के साथ मुंह काला करती रही...वहां से निकली तो नैपोलियन की बगल में जा घुसी...अब यह मुवा हिटलर बाकी रह गया था!”
“तो अब क्या हिटलर के घर है?”
“बुआ, घर-घाट कैसा...निबाह हो सकता है कभी ऐसी औरत का!”
“तलाक हो गयी क्या?”
“तुम कैसी बातें करती हो बुवा...! तलाक तो तब हो, जो सहरे-जलवों की ब्याही हो...और फिर ऐसे मर्दों का भी क्या एतिबार है...दो दिन मज़े किये और चलो छुट्टी हुई.”
“तो अब क्या हो रहा है...यह फज़ीहता किस बात का?”
“फज़ीहता क्या है, पूरे दिनों से है...बच्चा पैदा होने वाला है.”
“तो फिर हो क्यों नहीं चुकता?”
“हां सच तो है...कोई पहलौठी का तो है नहीं.”
डॉक्टर आते रहे, लेकिन बी ज़मानी के बच्चा पैदा न हुआ! दर्दो-कर्ब की लहरों में इज़ाफा हो गया, ज़लज़ले और ज्यादा ज़ोर से आने लगे, शोलों की ज़बानें और ज्यादा तेज़ हो गयीं. डॉक्टरों ने कान्फ्रेंस की, हिकमत की सारी किताबें छानी गयीं! तय हुआ कि हामिला को तेहरान ले जाया जाए, वहां रूस के माहिर डॉक्टर को बुलाया जाए और उससे मश्वरा किया जाए.
तेहरान में खास तौर पर जल्दी-जल्दी एक मैटरनिटी होम तैयार किया गया! बी ज़मानी बेगम दर्द से तड़पती रही और दुनिया के तीन बड़े डॉक्टर मश्वरा करते रहे. एक बोला-“साहबान, इसमें कोई शक नहीं कि होने वाला बच्चा हमारा नहीं है, लेकिन इंसानियत के नाम पर हमें मरीज़ों को इस मुश्किल से निज़ात दिलाना ही पड़ेगी.”
दूसरा बोला-“हम तीन बड़े डॉक्टर तीन मुख़्तलिफ किस्म के तरीका-ए-इलाज के माहिर हैं ... सबसे पहले जरूरत इस बात की है कि हम पर एक तरीका-ए-इलाज पर मुत्तफिक हों. अगर ऐसा हो गया तो बी ज़मानी बेगम के बच्चा पैदा होना कोई मुश्किल नहीं.”
तीसरा बोला-“बिल्कुल दुरुस्त है...आइये, हम फौरन यह नेक काम शुरू कर दें.” तीनों तरीकेे मिलाकर एक नया तरीका बनाया गया, जिस पर तीनों बड़े डॉक्टर मुत्तफिक हो गये. दुनिया का चेहरा खुशी से तमतमा उठा! मगर बी ज़मानी के बच्चा पैदा न हुआ. “यह क्या हो रहा है...बच्चा पैदा क्यों नहीं हुआ अभी तक?”
“बच्चा तो पैदा हो रहा था, मगर उसे रोक दिया गया है.”
“क्यों?”
“डॉक्टर सोच रहे हैं कि उसे गोद कौन लेगा.”
“हूँ...तो फैसला क्या हुआ?”
“तुम कैसी बातें करती हो बुवा...ऐसे मामलों का इतनी जन्दी फै’सला कैसे हो सकता है...खैर छोड़ो इस किस्से को, कुछ-न-कुछ हो ही जाएगा...जिसके हां औलाद नहीं है, वह गरीब उसे गोद ले लेगा.”
औलाद हर एक के थी. किसी के हां चार बच्चे थे, किसी के हां पाँच और किसी के हां सात. अब फैसला कैसे हो. एक और कान्फ्रेंस हुई, डम बारटन औक्स में. एक और मैटरनिटी होम अफरातफरी में बनाया गया. तीनों बड़े डॉक्टर वहां जमा हुए. हर एक ने सोचा, हर एक ने मामले की अहमियत समझने की कोशिश की. बी ज़मानी बेगम बिस्तर पर पड़ी दर्द से कराहती रही.
एक बोला-“साहिबान, हम साहिबे-औलाद हैं...इस बच्चे के वुजूद के हम जिम्मेदार नहीं, लेकिन इंसानियत का तकाज़ा है कि हम इसकी पैदाइश में हर मुमकिन तरीके से मदद करें...आखिर इसमें होनेवाले बच्चे का क्या कुसूर है.”
दूसरा बोला-“हम डॉक्टर हैं. हमारा मज़हब दवा है...हम चाहें तो इस होने वाले नाखालफ बच्चे को, जिससे हमारा कोई रिश्ता नहीं, एक फरमांबरदार, इताअत शिआर7, आज़ादी पसन्द और इंसानियत दोस्त नौजवान बना सकते हैं.”
तीसरा बोला-“बिल्कुल दुरुस्त है...इस बच्चे की पैदाइश से दुनिया का एक बहुत बड़ा बोझ दूर हो जाएगा...हम डॉक्टर हैं. अपने फजर्“ से हमें गाफिल नहीं रहना चाहिए.”
आखिर तय हो गया, एक और दस्तावेज़ पर अँगूठे भी लगा दिये गये कि होने वाले बच्चे को तीनों बड़े डॉक्टर गोद ले लेंगे और तीनों मिलकर उसकी परवरिश करेंगे. लेकिन बी ज़मानी बेगम की तकलीफ फिर भी रफा न हुई. वह पड़ी दर्द से कराहती रही. “आखिर यह मुसीबत क्या है?”
“कुछ समझ में नहीं आता?”
“किस्सा यह है कि बच्चे को गोद लेने का तो फै’सला हो गया है, लेकिन इस बी ज़मानी का भी तो कुछ बंदोबस्त होना चाहिए.”
“मैं तो कहती हूँ, सात झाड़ू और हुक्के का पानी...”
“लानत भेजें मुई हर्राफा पर...”
“नहीं बुवा, वह सोच रहे हैं कि यह कमबख़्त कहीं फिर...”
“ओह...”
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(सआदत हसन मंटो की कहानी का यह अंश प्रकाशक जगरनॉट बुक्स की अनुमति से प्रकाशित)

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