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प्रोपेगंडा के खिलाफ लड़ाई या दिल्ली पर नजर… ममता ने बिहार-यूपी के नेताओं को क्यों बनाया राष्ट्रीय प्रवक्ता?

ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी बीजेपी और कांग्रेस से दूरी बनाए रखते हुए दोनों खेमों के विरोधी क्षेत्रीय दलों का एक समूह बनाने की कोशिश में है. 

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में हाल ही विधानसभा चुनाव हुए थे. ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस ने त्रिपुरा और मेघालय की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी और इन राज्यों में पार्टी की सक्रियता भी बढ़ा दी गई थी. लेकिन चुनाव परिणाम से लगे झटके के बाद तृणमूल कांग्रेस चीफ ममता बनर्जी ने अपनी रणनीति बदल ली है.  

ममता की पार्टी अब बीजेपी और कांग्रेस से दूरी बनाए रखते हुए दोनों खेमों के विरोधी क्षेत्रीय दलों का एक समूह बनाने की कोशिश में है. 

पार्टी ने अप्रैल के अंत तक होने वाले पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव और लोकसभा चुनाव 2024 को देखते हुए 25 मार्च को 20 राष्ट्रीय प्रवक्ता और 40 राज्य प्रवक्ताओं की लिस्ट जारी की है. राष्ट्रीय प्रवक्ताओं की लिस्ट में बिहार-यूपी के कई नेताओं के नाम भी शामिल हैं. 

बता दें कि इससे पहले टीएमसी के 12 राष्ट्रीय प्रवक्ता बंगाली मूल के थे लेकिन अब नई लिस्ट के बाद इनकी संख्या 20 हो गई है जिसमें यूपी-बिहार के भी नेता शामिल हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि ममता ने बिहार-यूपी के नेताओं को राष्ट्रीय प्रवक्ता क्यों बनाया है? क्या उनकी निगाहें अब दिल्ली पर है? 

पहले जानते हैं राष्ट्रीय प्रवक्ताओं की लिस्ट में किनका नाम शामिल है 

राष्ट्रीय प्रवक्ताओं की सूची में वरिष्ठ नेता में सुखेंदु शेखर रॉय, सुष्मिता देव, डेरेक ओ'ब्रायन, महुआ मोइत्रा और साकेत गोखले का नाम शामिल हैं. इनके अलावा अमित मित्रा, बाबुल सुप्रीयो, चंद्रीमा भट्टाचार्या, जवाहर सरकार, काकोली घोष दस्तीदार, कीर्ती आजाद, ललीतेश त्रिपाठी, मुकुल संगमा, नदीमुल हक, रिपुन बोरा, सौगत रॉय, शशि पांजा, सुगात बोस, ताराजानो डी मेलो (Tarajano D'Mello) और विवके गुप्ता का नाम भी शामिल है.

 

बंगाल के अलावा इन राज्यों के नेताओं को बनाया गया राष्ट्रीय प्रवक्ता

साकेत गोखले- महाराष्ट्र
रिपुन बोरा- असम
सुष्मिता देव- असम
मुकुल संगमा- मेघालय
कीर्ति आजाद- बिहार
ललितेश पति त्रिपाठी- यूपी

यूपी-बिहार के नेताओं को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाने पर क्या बोली टीएमसी 

इस लिस्ट के जारी किए जाने के बाद टीएमसी के एक नेता कहा कि हमें इन प्रवक्ताओं की जरूरत इसलिए है क्योंकि सत्तारूढ़ पार्टी हमारे खिलाफ एसएससी स्कैम और पशुओं की तस्करी को लेकर प्रोपेगंडा चला रही है. ये प्रोपेगेंडा एकजुट विपक्ष यानी बीजेपी, सीपीआई(एम) और कांग्रेस द्वारा चलाया जा रहा था. 

अब ममता बनर्जी की पार्टी क्या चाहती है?

हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी कहते हैं कि ममता बनर्जी को केंद्र और राज्य दोनों जगहों की राजनीति का अनुभव है. ममता बनर्जी देश में एक मात्र महिला मुख्यमंत्री भी हैं. इसलिए विपक्ष को ममता बनर्जी के चेहरे को आगे कर 2024 का चुनाव लड़ना चाहिए.

उन्होंने ये भी कहा कि हमने साल 2021 में बीजेपी को बंगाल में पटखनी भी दी है और सबसे मजबूती से केंद्रीय एजेंसियों से लड़ भी रहे हैं.

हालांकि बनर्जी के इस मांग पर किसी अन्य पार्टी की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. हां कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पिछले दिनों तमिलनाडु में यह जरूर कह दिया था कि बिना चेहरा घोषित किए 2024 का चुनाव लड़ा जाएगा.

ममता की निगाहें अब दिल्ली पर 

तृणमूल कांग्रेस काफी सालों से दिल्ली की कुर्सी पर नजर टिकाए हुए है. साल 2021 में भवानीपुर विधानसभा सीट के नतीजे के एलान के बाद वरिष्ठ नेता और शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम ने अपने एक बयान में कहा था, 'भवानीपुर में ममता बनर्जी की जीत कोई मुद्दा नहीं थी. हमारा लक्ष्य था जीत के अंतर को बढ़ाना और भवानीपुर से पूरे देश को संदेश देना. टीएमसी को इसमें भारी कामयाबी मिली है. अब हमारा लक्ष्य वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को दिल्ली की कुर्सी से हटाना है. वही असली जीत होगी.' टीएमसी नेता की इस टिप्पणी ने पार्टी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का एजेंडा साफ उस वक्त ही साफ कर दिया था. 

ममता ने हाल ही अकेले चुनाव लड़ने का लिया था फैसला, क्या है कारण 

टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने हाल ही में पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि वह 2024 में अकेले चुनाव लड़ेगी. उन्होंने कहा कि बंगाल में कांग्रेस, लेफ्ट और बीजेपी का अनैतिक गठबंधन बना है. इसलिए हम साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में आम जनता के साथ गठबंधन करेंगे. 

उन्होंने आगे कहा कि मुझे यकीन है कि जो लोग बीजेपी को हराना चाहते हैं वे तृणमूल कांग्रेस को जरूर वोट देंगे. बंगाल में टीएमसी ही बीजेपी से मजबूती से लड़ रही है.

 

पीएम के लिए ममता बनर्जी का दावा कितना मजबूत

1. पीएम मोदी और बीजेपी से सीधे मुकाबले की छवि- साल 202 में बंगाल चुनाव हुए थे. उस वक्ता टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने बिना किसी पार्टी की मदद के, अपने दम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के पूरे चुनावी मशीनरी से मुकाबला किया था और न सिर्फ मुकाबला किया बल्कि ममता ने बीजेपी को बड़ी मात दी थी. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में  बंगाल में बीजेपी को अप्रत्याशित जीत मिली थी.  

साल 2021 में हुए बंगाल चुनाव के बाद ममता बनर्जी की छवि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी से सीधी लड़ाई लड़ने वाले मुख्यमंत्री की बन गई. विधानसभा चुनाव अलावा भी कई मौकों पर बीजेपी और तृणमूल के बीच बंगाल में टकराव भी देखने को मिला.

2. केंद्र और राज्य की राजनीतिक का अनुभव- ममता बनर्जी ने पिछले 12 साल की पश्चिम बंगाल सत्ता संभाल रखी है. उन्होंने इस पार्टी की स्थापना सल 1998 में की थी, उस वक्त से अपनी पार्टी चला रही हैं.

इसके अलावा वह केंद्र में नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं. ममता बनर्जी बंगाल के सीएम बनने से पहले 25 साल लोकसभा में सांसद रह चुकी हैं. लोकसभा के अपने पहले चुनाव 1984 में ममता ने दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को हराया था. 

3. विपक्ष के पास कोई चेहरा नहीं- अगले साल यानी 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. लेकिन पीएम मोदी के सामने विपक्ष का चेहरा कौन होगा? इसको लेकर अब तक कन्फ्यूजन की स्थिति है. वर्तमान में ममता के अलावा भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार भी विपक्ष में पीएम चेहरे के लिए बड़े दावेदार हैं. 

यानी अब तक विपक्ष पार्टियों में किसी एक चेहरे पर सहमति नहीं बन पाई है. ऐसे में ममता बनर्जी भी अपनी दावेदारी मजबूत करने की कोशिश में हैं. 

क्या कांग्रेस से नाराज है टीएमसी 

टीएमसी के मुख्य प्रवक्ता सुखेंदु शेखर रॉय ने हाल ही में अपने एक बयान में कहा था, 'कांग्रेस भारतीय राजनीति की बदलती वास्तविकता के साथ अभी तक स्वयं को नहीं ढाल पाई है. पिछले 9 सालों से यह पार्टी बीजेपी से बुरी तरह से हार रही है. यही कारण है कि हम मजबूत ताकतों के साथ उनके संबंधित राज्यों में गठबंधन करने की कोशिश करेंगे. 

ममता बनर्जी का राजनीतिक सफर 

ममता बनर्जी का राजनीतिक सफ़र 21 साल की उम्र से यानी साल 1976 से ही शुरू हो गया था. राज्य में कांग्रेस के छात्र संगठन छात्र परिषद की नेता के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाली ममता ने तमाम मुकाम अपने दम पर हासिल किए. 

साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में ममता पहली बार मैदान में उतरीं और माकपा के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को पटखनी देते हुए धमाके के साथ अपनी संसदीय पारी शुरू की थी. वह इस साल पहली बार जादवपुर सीट से सांसद चुनी गईं. 

इसके बाद साल 2011 तक वह लोकसभा की सांसद रहीं. ममता बनर्जी राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव, अटल बिहारी और मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री रह चुकी हैं.

ममता बनर्जी मुख्यमंत्री के अलावा रेल, कृषि, युवा और खनन जैसे विभाग केंद्र में संभाल चुकी हैं. साल 2011 में उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर बंगाल में वाम का किला उखाड़ फेंका और राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी. हालांकि एक साल बाद ही यानी साल 2012 में ही कांग्रेस के साथ उनकी नहीं जमी और ममता ने गठबंधन तोड़ लिया. 

साल 2014 और 2019 का उन्होंने बंगाल का विधानसभा चुनाव अकेले अपने दम पर लड़ना चुना. इसके अलावा साल 2016 और 2021 के विधानसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी अकेले उतरी और बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब रहीं.

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