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पीढ़ियों से रह रहे 600 ईसाई-हिंदू परिवार, अब वक्फ बोर्ड ने ठोका 404 एकड़ जमीन पर दावा, जानें क्या है मुनंबम भूमि विवाद

एर्नाकुलम जिले के मुनंबम तट पर स्थित 404 एकड़ भूमि को लेकर विवाद गर्मा गया है. यहां 600 ईसाई और हिंदू परिवार कई पीढ़ियों से रह रहे हैं. जबकि इस जमीन पर केरल वक्फ बोर्ड ने अपना दावा ठोका है.

वक्फ संशोधन विधेयक 2024 पर सियासी घमासान जारी है. जहां एक ओर इस विधेयक पर विचार करने के लिए बनाई गई संयुक्त संसदीय समिति अलग-अलग राज्यों का दौरा करके स्टेट वक्फ बोर्ड और राज्य अल्पसंख्यक आयोगों से मुलाकात कर रही है, वहीं दूसरी ओर केरल में एक जमीन विवाद पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है. 

केरल राज्य वक्फ बोर्ड लंबे समय से एर्नाकुलम जिले के मुनंबम तट पर स्थित 404 एकड़ भूमि पर दावा कर रहा है, जबकि यहां 600 ईसाई और हिंदू परिवार कई पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं. केरल वक्फ बोर्ड के इस दावे के खिलाफ 600 परिवार अब सड़क पर उतर आए हैं और बोर्ड के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. बीजेपी ने भी इसे उपचुनाव में मुद्दा बना लिया है. 

वक्फ संशोधन बिल पर केंद्र और केरल आमने सामने

केंद्र सरकार लगातार वक्फ संशोधन बिल लाने का दावा कर रही है. उधर, केरल राज्य ने केंद्र से इसे वापस लेने की मांग की थी और इसके खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव भी पारित किया था. 

क्या है मुनंबम का इतिहास?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, विवादास्पद भूमि केरल के एर्नाकुलम जिले में वाइपिन द्वीप पर मुनंबम के कुझुपिल्ली और पल्लीपुरम गांवों तक फैली हुई है. यह जगह पारंपरिक मछली पकड़ने वाले समुदायों का घर रहा है. यहां करीब 604 परिवार रहते हैं. जिनमें से लगभग 400 ईसाई हैं जो मुख्य रूप से पिछड़े लैटिन कैथोलिक समुदाय के हैं, जबकि बाकी पिछड़े हिंदू हैं. 

इस जमीन को लेकर विवाद की शुरुआत 1902 में हुई. जब त्रावणकोर शाही परिवार ने इस 404 एकड़ जमीन को अब्दुल सथार मूसा नाम के एक व्यापारी को पट्टे पर दे दी. जबकि इस पर मछली पकड़ने वाले समुदाय पहले से रहते थे. अब्दुल सथार बाद में कोच्चि शिफ्ट हो गए. 

1948 में अब्दुल के दामाद मोहम्मद सिद्दीक सैत ने पट्टे की जमीन को अपने नाम पर रजिस्टर कराया. इसके बाद उन्होंने कोझिकोड के फारूक कॉलेज के प्रबंधन को जमीन सौंपने का फैसला किया. फारूक कॉलेज की स्थापना 1948 में मालाबार के मुसलमानों को शैक्षिक रूप से सशक्त बनाने के लिए की गई थी. 

1 नवंबर 1950 को कोच्चि के एडापल्ली में सब-रजिस्ट्रार दफ्तर में एक वक्फ डीड रजिस्टर किया गया था, जिसमें सिद्दीक सैत द्वारा फारूक कॉलेज के अध्यक्ष के नाम इसे रजिस्टर किया गया था. वक्फ डीड एक दस्तावेज होता है, जो ऐसी संपत्ति को वक्फ-संपत्ति स्थापित करता है जो इस्लामी कानून के तहत धार्मिक उद्देश्यों के लिए समर्पित हो.

1960 में शुरू हुई कानूनी जंग

1960 में इस जमीन को लेकर कानूनी लड़ाई शुरू हुई. इस जमीन पर पीढ़ियों से रहने वाले लोगों के पास कोई वैध दस्तावेज नहीं थे. वहीं कॉलेज प्रबंधन उनसे ये जमीन खाली कराना चाहता था. हालांकि, तब कोर्ट के बाहर दोनों में समझौता हुआ. कॉलेज प्रबंधन ने मौजूदा रेट पर जमीन को वहां रहने वाले लोगों को बेचने का फैसला किया. हालांकि, तब कॉलेज प्रबंधन ने सेल डीड में यह जिक्र नहीं किया कि यह वक्फ की जमीन है और इसे शिक्षा के उद्देश्य से कॉलेज प्रबंधन को दिया गया है. इसके बजाय कॉलेज की तरफ से इस जमीन को गिफ्ट के तौर पर मिली बताया गया.

राज्य के वक्फ बोर्ड के खिलाफ कई शिकायतों के मिलने के बाद 2008 में वी एस अच्युतानंदन के नेतृत्व वाली CPI (M) सरकार ने रिटायर जिला जज एम ए निसार के नेतृत्व में एक जांच आयोग नियुक्त किया. आयोग का काम बोर्ड द्वारा संपत्तियों के नुकसान की जिम्मेदारी तय करना और उनकी वसूली के लिए कार्रवाई की सिफारिश करना शामिल था.

केरल हाईकोर्ट पहुंचा मामला

आयोग ने 2009 में अपनी रिपोर्ट सौंपी. इसमें उसने मुनंबम की जमीन को वक्फ संपत्ति माना और कहा कि कॉलेज प्रबंधन ने बोर्ड की सहमति के बिना इसकी बिक्री को मंजूरी दे दी थी. इतना ही नहीं रिपोर्ट में कमेटी ने इसकी वसूली के लिए कार्रवाई का भी सुझाव दिया. 

ऐसे में 2019 में वक्फ बोर्ड ने संज्ञान लेते हुए वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 40 और 41 के तहत मुनंबम भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया. बोर्ड ने राजस्व विभाग को भूमि के वर्तमान कब्जेदारों से टैक्स स्वीकार नहीं करने का निर्देश दिया. राजस्व विभाग को दिए इस निर्देश को राज्य सरकार ने 2022 में खारिज कर दिया.

केरल वक्फ बोर्ड ने 2022 में ही केरल हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी. कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगा दी. अभी इस विवाद के संबंध में भूमि के कब्जेदारों के साथ-साथ वक्फ संरक्षण समिति की ओर से कई अपील कोर्ट में दाखिल हैं.  

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