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क्या है 71 देश को जोड़ने वाली चीन की BRI परियोजना, कैसे है ये भारत के लिए ख़तरा

दक्षिण-पूर्व एशिया से लेकर पू्र्वी यूरोप और अफ्रीका तक कुल 71 देश बेल्ट एंड रोड परियोजना का हिस्सा हैं. इसमें विश्व की आधी आबादी और एक चौथाई जीडीपी शामिल है.

बेल्ट एंड रोड (बीआरआई) चीन के इतिहास की सबसे महत्वकांक्षी योजना है. इसके तहत 'ड्रैगन' विश्व भर में अपना प्रभुत्व कायम करना चाहता है. पश्चिमी जगत की मीडिया के अनुसार चीन इस परियोजना में खरबों रुपयों का निवेश दो वजहों से कर रहा है. एक तो विश्व भर में अपना प्रभुत्व कायम करने के अलावा चीन इसके सहारे अपनी धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था में भी नई जान फूंकना चाहता है. वहीं दूसरा, उनका ये भी मानना है कि पहले से विश्वभर में हो रहे चीनी निवेश और बढ़ते प्रभुत्व को बीआरआई के रूप में बस एक नया नाम दे दिया गया है.

ब्रिटेन के भरोसेमंद मीडिया हाउस में शुमार द गार्डियन में छपी एक रिपोर्ट में लिखा है कि जब शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति बने उसके बाद उन्होंने एशिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ने की एक महत्कांक्षी परियोजना की घोषणा की. इसी परियोजना को परिभाषित करने के लिए मौटे तौर पर बीआरआई का नाम स्वीकार किया गया जिसके तहत वो सारी आर्थिक और भू-राजनीतिक बातें आ जाएं जो चीन के नेतृत्व में हो रही हैं. बेल्ट एंड रोड जिसे चीनी भाषा में या डाई यी लू कहेंगे, चीन का 21वीं सदी का सिल्क रोड है. इसका मतलब व्यापार के उन जमीनी गलियारों और समुद्री मार्ग से है जिसके रास्ते व्यापार को आसान बनाने की तैयारी है.

कितने देश हैं इसका हिस्सा दक्षिण-पूर्व एशिया से लेकर पू्र्वी यूरोप और अफ्रीका तक कुल 71 देश बेल्ट एंड रोड परियोजना का हिस्सा हैं. इसमें विश्व की आधी आबादी और एक चौथाई जीडीपी शामिल है. बीआरआई की परिभाषा को इतान खुला रखा गया है कि इसके तहत ट्रंप के थीम पार्क से लेकर चोंगक्विंग के जैज कैंप तक आ जाता हैं. वही, पनामा से मेडागास्कर और साउथ अफ्रीका से न्यूजीलैंड तक ने इसे अपना समर्थन दिया है.

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कितने की है परियोजना चीनी की ये परियोजना एक ट्रिलियन डॉलर यानी करीब 7,34,60,00,00,00,000 रुपए की है. वहीं आज तक इस परियोजना पर कितना रुपया खर्च किया जा चुका है इसको लेकर अलग-अलग राय है. अनुमान के मुताबिक चीन ने जून महीने तक 1,54,26,60,00,00,000 रुपए का निवेश किया है जिसका बड़ा हिस्सा एशिया में निवेश किया गया है.

इस मुहिम के तहत सिर्फ व्यापार के मार्ग का निर्माण नहीं हो रहा, बल्कि चीन कंपनियां दुनिया भर में रियल स्टेट क्षेत्र में जमकर निर्माण कार्य कर रही हैं. इस निर्माण कार्य का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इस साल के मध्य तक चीन ने दुनिया भर में निर्माण कार्य से जुड़ा 2,49,39,00,00,00,000 रुपए का काम हासिल किया है.

इसके ख़तरे क्या हैं? हाल ही में ऐसी बातें सामने आई हैं कि पाकिस्तान से मलेशिया तक की सरकारें ये सोचने को मजबूर हुई हैं कि जिस कीमत पर वो बीआरआई का हिस्सा बन रहे हैं, क्या वो सही है. श्रीलंका में तो सरकार को अपना एक बंदरगाह चीन को लीज़ पर देना पड़ा और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि श्रीलंका की सरकार चीन से लिए गए पैसे लौटाने की स्थिति में नहीं थी. बाकी देशों को भी यही डर सता रहा है कि जितना बड़ा निवेश है, अगर लेने वाले देश उसे लौटाने की स्थिति में नहीं होंगे तो अंजाम क्या होगा.

इस साल की शुरुआत में सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलंपमेंट ने इस बात की जानकारी सार्वजनिक की कि ऐसे आठ देश हैं जिनके ऊपर चीन से लिए गए पैसे नहीं लौटा पाने का सबसे ज़्यादा ख़तरा है और इस जानकारी ने योजना को लेकर आतंकित करने का काम किया. इन आठ देशों में पाकिस्तान, जिबूती, लाओस , कीर्गिस्तान, मालदीव, मंगोलिया, मॉन्टेनेग्रो और तजाकिस्तान जैसे देशों का नाम शामिल है.

आलोचकों को डर है कि जो देश पैसे लौटाने की स्थिति में नहीं होंगे उनका श्रीलंका की तरह ग़लत इस्तेमाल किया जा सकता है और उन्हें दक्षिणी चीन सागर और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों पर चुप कराए जाने जैसे बातें हो सकती हैं. ऐसा सबसे बड़ा उदाहरण ताजिकिस्तान का है जिसके मामले में साल 2011 में चीन ने उसका वो कर्ज माफ कर दिया जिसकी राशि को सार्वजनिक नहीं किया गया था. हालांकि, इसके बदले चीन ने इस देश की 1,158 स्क्वायर किलोमीटर की वो जमीन हथिया ली जिसे लेकर दोनों के बीच विवाद था.

इससे जुड़े विश्लेषकों का कहना है कि इसकी वजह से चीन वैश्विक दबदबा कायम कर सका है जिसके बाद अन्य देशों में उसकी सैन्य उपस्थिति मजबूत हो सकती है. आपको बता दें कि पिछले साल चीन ने अपने देश के बाहर जिबूती में अपना पहला सैन्या अड्डा स्थापित किया. ये इसी बीआरआई का ही परिणाम है. वहीं, इस बात की भी आशंका जताई गई है कि एक बार व्यापार मार्ग मजबूत कर लेने के बाद अगर चीन सामान एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की स्थिति में होगा, तो सेना को भी एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की स्थिति में होगा.

इस परियोजना के निरंतर और निरंकुश विकास की आशंकाओं को इस बात से भी बल मिलता है कि इसे चीन के संविधान में जगह दी गई है. इसे उसी संविधान में जगह दी गई है जिसे हाल ही में बदल कर शी जिनपिंग को उनके जीवन काल के लिए चीन का राष्ट्रपति बना दिया गया. जैसा की हम आपको बता चुके हैं कि इस परियोजना के जनक शी ही रहे हैं, ऐसे में संविधान बदलने के बाद अब उनके राह में मीलों तक कोई रोड़ा नहीं है.

भारत की चिंताएं जब मई के महीने में नेपाल ने चीन की इस महत्वकांक्षी योजना का हिस्सा बनने पर सहमति जताई, तब भारत इकलौता सार्क देश रह गया जो इससे बाहर था. हालांकि, भूटान भी चीन की इस परियोजना का हिस्सा नहीं है. लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि दोनों देशों के बीच कोई राजनयिक ताल्लुकात है ही नहीं. भारत इस योजना का प्रखर विरोधी रहा है और इसके विरोध के पीछे सबसे बड़ी वजह चीन पाकिस्तान कॉरिडोर (सीपेक) रही है. चीन ने जानकारी साझा करते हुए विश्व को बताया कि इसके तहत पाकिस्तान में 46 बिलियन डॉलर (लगभग 56,81,00,00,00,000 पाकिस्तानी रुपए) का निवेश किया गया है.

वहीं, भारत ने इस बात पर भी विरोध जताया है कि वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर- इस योजना क पुराना नाम) को लेकर भारत का कोई विरोध नहीं है, लेकिन इससे भारत को ख़तरा है क्योंकि पाकिस्तान में इसके तहत जो सड़क बनाई जानी है वो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से होकर गुजरती है. भारत की इस चिंता पर चीन का यही रुख रहा है उन्होंने इस मामले पर अपनी पलकें भी नहीं झपकाई हैं.

क्यों बदला नाम पहले इस परियोजना का नाम वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) था. इस नाम को लेकर ये आपत्ति जताई गई कि इससे चीन का एकतरफा प्रभुत्व झलकता है जिसे चीन ने भी ये सोचते हुए मान लिया कि इससे इसका हिस्सा बनने वाले देशों के बीच गलत संदेश जा सकता है. इसी वजह से बाद में इस परियोजना का नाम बदलकर बीआरआई कर दिया गया जिससे कम से कम नाम में चीनी प्रभुत्व समाप्त होता नज़र आया.

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