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विकास दुबे मुठभेड़: 22 जुलाई को न्यायिक आयोग के सदस्यों के नाम तय करेगा SC, जांच का दायरा व्यापक रखने के दिये संकेत

मामले में आज यूपी सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए. वहीं राज्य के डीजीपी की तरफ से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे भी पेश हुए.

नई दिल्ली: विकास दुबे मुठभेड़ मामले की जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग में सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज और डीजीपी स्तर के रिटायर्ड पुलिस अधिकारी को भी शामिल किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट बुधवार, 22 जुलाई को इन नामों को मंजूरी देगा. यूपी सरकार की तरफ से गठित आयोग में सिर्फ एक सदस्य, इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस शशिकांत अग्रवाल हैं. अब कोर्ट ने यूपी सरकार से दो और सदस्यों के नाम सुलझाने को कहा है. कोर्ट ने यह भी संकेत दिए हैं कि इस आयोग की जांच का दायरा काफी व्यापक रखा जाएगा.

कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या और उसके बाद गैंगस्टर विकास दुबे समेत 6 लोगों को पुलिस की तरफ से मार गिराए जाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल हुई हैं. इन याचिकाओं में कहा गया है कि यूपी पुलिस निष्पक्ष जांच नहीं कर सकती. मामले में पुलिस, अपराधियों और नेताओं के गठजोड़ की तह तक पहुंचने के लिए जांच CBI, NIA या SIT को सौंपी जाए. सुप्रीम कोर्ट खुद जांच की निगरानी करे. याचिकाओं में कहा गया है कि विकास दुबे को इतने लंबे समय तक संरक्षण और सहयोग देने वाले लोगों का नाम सामने आना जरूरी है. साथ ही उन पुलिसवालों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए जिन्होंने अपने साथियों के एनकाउंटर के बाद बदला लेने के लिए एक के बाद एक 6 लोगों को एनकाउंटर में मार गिराया.

14 जुलाई को इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपनी तरफ से जांच आयोग के गठन का संकेत दिया था. कोर्ट ने कहा था कि जिस तरह से पिछले साल दिसंबर में हुए हैदराबाद एनकाउंटर की जांच के लिए उसने एक आयोग का गठन किया था. वैसा ही वह इस मामले में भी करना चाहता है. इसका जवाब देते हुए यूपी सरकार ने कहा था कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराई जा रही है. जांच के लिए हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज वाला न्यायिक आयोग भी बनाया गया है. यूपी सरकार ने अपने हलफनामे में यह भी कहा था कि हैदराबाद एनकाउंटर और इस मामले में बहुत अंतर है. हैदराबाद में एक महिला के साथ गैंगरेप और उसकी हत्या के आरोपियों का कोई पूर्व अपराधिक रिकॉर्ड नहीं था. लेकिन इस मामले में मारा गया विकास दुबे कुख्यात गैंगस्टर था, जिस पर 65 मामले चल रहे थे. उसने थोड़े दिनों पहले ही 8 पुलिसकर्मियों की हत्या करवाई थी. जिस वक्त उसे मारा गया, उस वक्त वह पुलिसकर्मी का पिस्टल छीन कर फायरिंग करता हुआ भाग रहा था.

आज हुई सुनवाई में चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह माना कि हैदराबाद एनकाउंटर और इस मामले में काफी अंतर है. लेकिन कोर्ट का कहना था कि कानून का शासन बनाए रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है. मामले की विस्तृत जांच की ज़रूरत बताते हुए कोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति पर कई गंभीर अपराध के मुकदमे चल रहे थे, उसका अंतरिम जमानत पर इस तरह से बाहर रहना हैरानी की बात है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता पुलिस को एनकाउंटर के लिए उच्च स्तर से आदेश मिलने की दलील दे रहे हैं. इसलिए, इस मामले में यह भी देखे जाने की जरूरत है कि पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद सीएम, डिप्टी सीएम समेत बड़े लोगों ने किस तरह का बयान दिया और क्या पुलिस ने उसके मुताबिक ही काम किया?

मामले में आज यूपी सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए. वहीं राज्य के डीजीपी की तरफ से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे भी पेश हुए. सॉलिसिटर जनरल से चीफ जस्टिस ने सवाल किया, “आपने एक न्यायिक आयोग बनाया है. क्या आप उसमें सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व जज और एक रिटायर्ड वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को भी शामिल करने पर सहमत हैं?” सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कोर्ट जो भी आदेश देगा, सरकार उसका पालन करेगी.

पुलिस महानिदेशक के लिए पेश हरीश साल्वे ने पुलिसकर्मियों के भी मानवाधिकार का हवाला दिया. उन्होंने कहा, “पुलिसकर्मी भी इंसान होते हैं. अगर उनका सामना विकास दुबे जैसे गैंगस्टर से हो तो वह क्या करें? इस तरह से पुलिस के काम पर सवाल उठाने से पुलिस बल के मनोबल पर बुरा असर पड़ सकता है." इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, “हमारा ध्यान फिलहाल लोगों की आस्था कानून के शासन में बनाए रखने की तरफ है. इसलिए हम महसूस करते हैं कि कमेटी को व्यापक बनाया जाए और उसकी जांच के दायरे में कई बातों को रखा जाए."

इसके बाद साल्वे ने सुनवाई को बुधवार तक के लिए टालने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार कल तक कमेटी में शामिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और डीजीपी स्तर के रिटायर्ड अधिकारी का नाम तय कर लेगी और नोटिफिकेशन जारी कर देगी. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि राज्य सरकार अभी अधिसूचना जारी न करे. वह एक ड्राफ्ट नोटिफिकेशन तैयार करे, जिसमें उन नामों को शामिल किया जाए जिन्हें आयोग में सदस्य के तौर पर जोड़ा जाएगा. कोर्ट बुधवार को उसे देखकर फैसला लेगा.

मामले के एक याचिकाकर्ता विशाल तिवारी ने इसका विरोध करते हुए कहा, “राज्य सरकार की तरफ से प्रायोजित आयोग को मंजूरी न दी जाए. आयोग के सदस्यों के नाम खुद सुप्रीम कोर्ट को तय करना चाहिए." इस दलील पर चीफ जस्टिस ने सख्त नाराजगी जताई. उन्होंने कहा, “क्या आप यह कहना चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का एक पूर्व जज और डीजीपी स्तर का रिटायर्ड अधिकारी राज्य सरकार की तरफ से प्रायोजित होगा? कृपया इस तरह की दलील न दीजिए."

चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि हैदराबाद एनकाउंटर की जांच काफी पहले पूरी हो जानी चाहिए थी. लेकिन देश में कोरोना फैल जाने के चलते जांच आयोग काम पूरा नहीं कर पा रहा है. अगर दिल्ली से किसी पूर्व जज को आयोग का सदस्य बनाकर भेजा गया, तो वैसा ही कुछ इस मामले में भी हो सकता है. इसलिए बेहतर हो कि आयोग के सदस्यों के तौर पर जो नाम तय किया जाए वह यूपी में ही रहने वाले हों.

करीब 2 दशक से सुप्रीम कोर्ट के गलियारों का एक जाना-पहचाना चेहरा. पत्रकारिता में बिताया समय उससे भी अधिक. कानूनी ख़बरों की जटिलता को सरलता में बदलने का कौशल. खाली समय में सिनेमा, संगीत और इतिहास में रुचि.
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