विपक्ष को लगा बड़ा झटका, CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव खारिज
राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. कांग्रेस समेत सात विपक्षी दलों ने दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव दिया था.

नई दिल्ली: राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने चीफ जस्टिस (सीजेआई) दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. वेंकैया नायडू ने 20 पन्नों के आदेश में खारिज करने के कारणों का जिक्र किया है. इसमें एक तकनीकी वजह का जिक्र है. राज्यसभा सचिवालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अधिकारी ने बताया कि नायडू ने देश के शीर्ष कानूनविदों से इस मामले के सभी पहलुओं पर विस्तार से विचार विमर्श करने के बाद यह फैसला लिया है.
उन्होंने बताया कि नोटिस में जस्टिस मिश्रा पर लगाये गये कदाचार के आरोपों को प्रथम दृष्टया संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के दायरे से बाहर पाये जाने के कारण इन्हें अग्रिम जांच के योग्य नहीं माना गया. विपक्षी दलों ने नोटिस में जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ पांच आधार पर कदाचार का आरोप लगाते हुये उन्हें ‘चीफ जस्टिस के पद से हटाने की प्रक्रिया’ शुरू करने की मांग की थी.
रविवार को उपराष्ट्रपति नायडू ने महाभियोग के मसले पर लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप, पूर्व विधि सचिव पी के मल्होत्रा, पूर्व विधायी सचिव संजय सिंह और राज्यसभा सचिवालय के अधिकारियों से मुलाकात की थी.
उपराष्ट्रपति ने अपने आदेश में क्या कहा? एबीपी न्यूज़ के पास उपराष्ट्रपति के आदेश की कॉपी मौजूद है. इसमें उपराष्ट्रपति ने विपक्ष के आरोपों को निराधार बताया है. आदेश के मुताबिक उपराष्ट्रपति ने कहा कि मेरे सामने ऐसे कोई सबूत पेश नहीं किए गए जिससे ये साबित होता हो कि चीफ जस्टिस ने मिसविहेब किया हो. इसके आधार सीजेआई के खिलाफ आगे किसी भी तरह की जांच का मामला नहीं बनता.
पुख्ता सबूतों के ना होते हुए चीफ जस्टिस जैसी शख्सियत के खिलाफ जांच के आदेश देना एक संवैधानिक संस्था को जनता की नजरों में कमजोर करना. उन्होंने आखिरी पैराग्राफ में लिखा कि कांग्रेस ने जो प्रस्ताव भेजा उसका प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए प्रचार किया जो राज्यसभा के नियमों के खिलाफ है. ऐसा प्रस्ताव जिसमें आरोप लगाते हुए प्रतीत होता है, मालूम होता है, संभावना है जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है उसे जांच के लिए आधार नहीं बना सकते.
इन्होंने दिया था महाभियोग प्रस्ताव, BJP ने कहा- जजों को डराने की कोशिश कांग्रेस समेत सात विपक्षी दलों (कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, एनसीपी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और मुस्लिम लीग) ने पिछले शुक्रवार को सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव दिया था. इस प्रस्ताव पर 71 सांसदों ने हस्ताक्षर किये हैं. इनमें से 7 पिछले दिनों रिटायर हो गये थे. महाभियोग प्रस्ताव के लिए न्यूनतम सदस्यों की संख्या 50 होनी चाहिए. बीजेपी ने विपक्षी दलों के कदम को 'जजों को डराने वाला' बताया है.
प्रशांत भूषण ने किया उपराश्ट्रपति के फैसले का विरोध वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने उपराष्ट्रपति के फैसले पर आश्चर्य जताया है. उन्होंने ट्विट कर कहा, ''क्या!! सीजेआई के खिलाफ 64 सासंदों के हस्ताक्षर वाले महाभियोग को वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया! क्या आधार है? उनके पास यह पावर नहीं है कि वह कहें कि सीजेआई पर लगे आरोप का आधार नहीं है. इसकी जांच तीन जजों की कमेटी करती है. उन्हें सिर्फ यह देखना होता है कि 50 सांसदों ने हस्ताक्षर किये हैं या नहीं.''
What!! VP Naidu rejects impeachment motion against CJI signed by 64 RS MPs! On what grounds? He has no power to say that charges are not made out. That's for the inquiry committee of 3 judges. He only has to see if it's signed by >50 MPs & possibly if charges are of misbehaviour
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) April 23, 2018
क्या होगा कांग्रेस का अगला कदम? महाभियोग पर कांग्रेस पहले ही साफ कर चुकी है कि सीजेआई के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव खारिज होने पर वह सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगी. रविवार को कांग्रेस के सूत्रों ने कहा था, ''अगर राज्यसभा के चेयरमैन वेंकैया नायडू ने महाभियोग के नोटिस को नामंजूर किया तो फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.''
कांग्रेस का कहना है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में है. इसलिए सीजेआई को हटाना होगा. पिछले दिनों कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा था, ''देश की सुप्रीम कोर्ट के चार शीर्ष जजों ने कहा है कि लोकतंत्र खतरे में है, न्यायपालिका की स्वायत्तता के साथ खिलवाड़ हो रहा है.'' सिब्बल ने कहा कि ये चिंता की बात है, हमने संविधान की शपथ ली है और हमें इसकी रक्षा करनी है.
क्यों उठी महाभियोग की मांग? आपको बता दें कि कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जस्टिस जस्टिस जे चेलमेशवर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसफ ने मीडिया के सामने आकर सीजेआई दीपक मिश्रा की प्रशासनिक कार्यशैली पर सवाल उठाए थे. इसके बाद कांग्रेस, वामदलों ने महाभियोग की तैयारी शुरू की थी. हालांकि समर्थन नहीं मिलने की वजह से पैर पीछे खींच लिये थे. अब एक बार फिर जज बी एच लोया मामले में कांग्रेस और वामदल बैकफुट पर है ऐसे में विपक्षी पार्टियां महाभियोग पर विचार कर रही थी.
महाभियोग के लिए विपक्ष ने सीजेआई के पर लगाए ये पांच आरोप
चीफ जस्टिस पर पहला आरोप: प्रसाद ऐजुकेशन ट्रस्ट में लाभ लेने का आरोप CJI पर पहले आरोप की जानकारी देते हुए कपिल सिब्बल ने कहा, ''प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट मामले चीफ जस्टिस की भूमिका की जांच की जरूरत है. हमने इस मामले में उड़ीसा हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड जज और एक दलाल के बीच बातचीत के टेप सभापति को सौंपे हैं. ये टेप सीबीआई को मिले थे.''
चीफ जस्टिस पर दूसरा आरोप: सबूत होने के बावजूद केस की मंजूरी नहीं दी विपक्षी दलों के CJI पर दूसरे आरोप के बताते हुए कपिल सिब्बल ने कहा, ''सीबीआई के पास सबूत होने के बावजूद चीफ जस्टिस ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ एक मामले में केस दर्ज करने की मंजूरी नहीं दी थी.''
चीफ जस्टिस पर तीसरा आरोप: एक मामले में तारीख बदलने का आरोप विपक्षी दलों ने चीफ जस्टिस पर एक मामले में तारीख बदलने का आरोप लगाया. कपिल सिब्बल ने विपक्षी दलों के तीसरे आरोप की जानकारी देते हुए कहा, ''जस्टिस चेलमेश्वर जब 9 नवंबर 2017 को एक याचिका की सुनवाई करने को राजी हुए, तब अचानक उनके पास सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से बैक डेट का एक नोट भेजा गया और कहा गया कि आप इस याचिका पर सुनवाई नहीं करें.''
चीफ जस्टिस पर विपक्ष का चौथा आरोप: वकील रहते झूठा हलफनामा दिया विपक्षी दलों ने चौथा आरोप लगाते हुए कहा कि वकालत के दिनों के दौरान CJI ने झूठा हलफनामा दाखिल किया था. कपिल सिब्बल ने कहा, ''जस्टिस दीपक मिश्रा ने वकील रहते 1979 में झूठा हलफनामा दिया था. उड़ीसा में 2 एकड़ कृषि जमीन का आवंटन अपने हक में कराने के लिए कहा कि उनके या परिवार के पास कृषि भूमि नहीं है. 1985 में स्थानीय प्रशासन ने दावे को झूठा पाया और ज़मीन का आवंटन रद्द किया. 2012 में सुप्रीम कोर्ट जज बनने के बाद जस्टिस मिश्रा ने ज़मीन पर कब्ज़ा छोड़ा.''
चीफ जस्टिस पर विपक्ष का पांचवां आरोप: संवेदनशील मामलों को चुनिंदा जजों के पास भेजा विपक्षी दलों ने अपने प्रस्ताव में सीजेआई पर संवेशनशील मामलों को अपनी पसंद दे जजों के पास भेजने का आरोप भी लगाया. कपिल सिब्बल ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा, ''दीपक मिश्रा बतौर चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर हैं, यानी तय करते हैं कि कौन सा मामला किस जज के पास लगेगा. उन्होंने संवेदनशील मामलों को चुनिंदा जजों के पास भेजा.''
Source: IOCL






















