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‘यह संविधान में संशोधन करने जैसा’, राज्यपालों और राष्ट्रपति पर निश्चित समयसीमा लागू करने पर केंद्र ने SC में दिया जवाब

Solicitor General Tushar Mehta: सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि विधानसभा में पारित विधेयकों पर कदम उठाने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति पर निश्चित समयसीमा थोपने से संवैधानिक अव्यवस्था पैदा होगी.

केंद्र ने शनिवार (16 अगस्त, 2025) को सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि राज्य विधानसभा में पारित विधेयकों पर कदम उठाने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति पर निश्चित समयसीमा थोपना सही नहीं होगा. इसका मतलब होगा कि सरकार के एक अंग की ओर से उन शक्तियों का प्रयोग करना जो संविधान की ओर से उसे नहीं दी गई और इससे संवैधानिक अव्यवस्था पैदा होगी.

केंद्र ने राष्ट्रपति के संदर्भ में दाखिल लिखित दलीलों में यह बात कही है, जिसमें संवैधानिक मुद्दे उठाए गए हैं कि क्या राज्य विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों से निपटने के संबंध में समयसीमा निर्धारित की जा सकती है. जिस पर केंद्र ने कहा, “किसी एक अंग की कथित विफलता, निष्क्रियता या त्रुटि किसी अन्य अंग को ऐसी शक्तियां ग्रहण करने के लिए अधिकृत नहीं करती है और न ही कर सकती हैं, जो संविधान ने उसे प्रदान नहीं की हैं. यदि किसी अंग को जनहित या संस्थागत असंतोष या संविधान के आदर्शों से प्राप्त औचित्य के आधार पर किसी अन्य अंग के कार्यों को अपने ऊपर लेने की अनुमति दी जाती है, तो इसका परिणाम संवैधानिक अव्यवस्था होगी, जिसकी परिकल्पना इसके निर्माताओं ने नहीं की थी.”

सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में दी दलील

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में यह नोट दाखिल किया है. इसमें दलील दी गई है कि सुप्रीम कोर्ट के निश्चित समयसीमा लागू करने से संविधान की ओर से स्थापित संवेदनशील संतुलन भंग हो जाएगा और कानून का शासन नकार दिया जाएगा.

इसमें कहा गया है, “यदि कोई चूक हो, तो उसका समाधान संवैधानिक रूप से स्वीकृत तंत्रों जैसे चुनावी जवाबदेही, विधायी निरीक्षण, कार्यपालिका की जिम्मेदारी, संदर्भ प्रक्रिया या लोकतांत्रिक अंगों के बीच परामर्श प्रक्रिया, के माध्यम से किया जाना चाहिए. इस प्रकार, अनुच्छेद 142 न्यायालय को मान्य सहमति की अवधारणा बनाने का अधिकार नहीं देता है, जिससे संवैधानिक और विधायी प्रक्रिया उलट जाती है.'

राज्यपाल और राष्ट्रपति के पद राजनीतिक रूप से पूर्ण हैं और लोकतांत्रिक शासन के उच्च आदर्शों का प्रतिनिधित्व करते हैं. नोट में कहा गया है कि किसी भी कथित चूक का समाधान राजनीतिक और संवैधानिक तंत्र के माध्यम से किया जाना चाहिए, न कि न्यायिक हस्तक्षेप के माध्यम से. मेहता ने कहा कि यदि कोई कथित मुद्दा है, तो उसका राजनीतिक उत्तर दिया जाना चाहिए, न कि न्यायिक.

समय सीमा का निर्धारण करना संविधान में संशोधन करने जैसा होगा- मेहता

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए, मेहता ने दलील दी है कि अनुच्छेद 200 और 201, जो राज्य विधेयक प्राप्त होने के बाद राज्यपालों और राष्ट्रपति के विकल्पों से संबंधित हैं, में जानबूझकर कोई समय-सीमा नहीं दी गई है. उन्होंने कहा, “जब संविधान कुछ निर्णय लेने के लिए समय-सीमा निर्धारित करना चाहता है, तो वह ऐसी समय-सीमा का विशेष रूप से उल्लेख करता है. जहां संविधान ने शक्तियों के प्रयोग को जानबूझकर लचीला रखा है, वहां कोई निश्चित समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई. न्यायिक दृष्टि से ऐसी सीमा निर्धारित करना संविधान में संशोधन करना होगा.”

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