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गैर इरादतन हत्या के मामले में नवजोत सिंह सिद्धू पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज

दिसंबर 2006 में हाई कोर्ट ने सिद्धू और संधू को आईपीसी की धारा 304 (2) के तहत गैरइरादतन हत्या का दोषी माना और दोनों को तीन साल की सज़ा हुई. सिद्धू ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की.

नई दिल्ली: पूर्व क्रिकेटर और पंजाब में कांग्रेस के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के लिए आज का दिन बेहद अहम है. आज सुप्रीम कोर्ट उनके खिलाफ गैर इरादतन हत्या मामले में फैसला देगा. इस मामले में हाई कोर्ट ने उन्हें तीन साल की सज़ा दी थी. अगर सुप्रीम कोर्ट इस सज़ा को बरकरार रखता है या इसे बढ़ाता है तो सिद्धू को जेल जाना होगा. वो विधायक या मंत्री बने रहने के अयोग्य हो जाएंगे और उनका राजनीतिक करियर थम जाएगा.

क्या है मामला?

साल 1988 में नवजोत सिंह सिद्धू और उनके दोस्त रुपिंदर सिंह संधू ने गुरनाम सिंह नाम के शख्स की पिटाई की थी. घटना पंजाब के पटियाला की है. सड़क पर हुई मामूली कहासुनी के बाद दोनों ने 50 साल के गुरनाम सिंह को उनकी कार से खींच कर निकाला और पिटाई की. इसके बाद बेहोश हुए गुरनाम सिंह की अस्पताल में मौत हो गई थी.

सिद्धू और रुपिंदर पर आईपीसी की धारा 302 और 323 के तहत मुकदमा चला था. यानी हत्या और मारपीट की धाराएं. नवंबर 1999 में पटियाला की सेशन्स कोर्ट ने दोनों को बरी कर दिया. इसके खिलाफ पंजाब सरकार ने पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट में अपील की थी.

दिसंबर 2006 में हाई कोर्ट ने सिद्धू और संधू को आईपीसी की धारा 304 (2) के तहत गैरइरादतन हत्या का दोषी माना और दोनों को तीन साल की सज़ा हुई. सिद्धू ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. 12 जनवरी 2007 को सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू की सज़ा पर रोक लगा दी.

चुनाव लड़ने की योग्यता बनी रही

जब हाई कोर्ट का फैसला आया, तब सिद्धू अमृतसर से लोकसभा सांसद थे. उन्होंने फैसले के बाद संसद से इस्तीफा दे दिया. हाई कोर्ट से मिली सज़ा दो साल से ज़्यादा होने की वजह से सिद्धू चुनाव लड़ने के अयोग्य हो चुके थे. दोबारा चुनाव लड़ने के लिए ज़रूरी था कि उन्हें दोषी ठहराने वाले आदेश पर रोक लगे.

वरिष्ठ वकील अरुण जेटली की अगुवाई में वकीलों की टीम ने पूरा ज़ोर लगाया. 23 जनवरी को कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराने वाले आदेश पर भी रोक लगा दी. इसके बाद सिद्धू दोबारा अमृतसर से चुनाव लड़े और सांसद बने.

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में क्या हुआ?

हाई कोर्ट के फैसले के 11 साल बाद हुई सुनवाई में सिद्धू के वकील ने बार-बार ये दावा किया कि गुरनाम सिंह की मौत दिल के दौरे से हुई थी. मारपीट के दौरान लगी चोट ज़्यादा गंभीर नहीं थी. उन्होंने पुलिस की तरफ से चश्मदीद गवाह बनाए गए लोगों के बयान पर भी सवाल खड़े किए. सिद्धू के साथी रुपिंदर सिंह संधू ने घटना में शामिल होने से ही इनकार किया. उसके वकील ने कहा कि वो घटनास्थल पर मौजूद ही नहीं था. उसे इस मामले में फंसाया गया.

गुरनाम सिंह के परिवार के वकीलों ने तीन साल की सज़ा को नाकाफी बताते हुए बढ़ाने की मांग की. जबकि पंजाब सरकार ने अपने मंत्री सिद्धू को हाई कोर्ट से मिली तीन साल की सज़ा को सही ठहराया. पंजाब सरकार ने कहा कि गुरनाम सिंह की मौत सिर पर लगी चोट की वजह से ही हुई. इसलिए, इस मामले में दोषियों को मिली सज़ा सही है.

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