'शादी कानूनन अमान्य होने पर भी मुआवजे पर पाबंदी नहीं है', सुप्रीम कोर्ट का फैसला
जजों ने कहा, 'शादी के कानूनन अमान्य होने के चलते मुआवजे की मांग को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता. अगर हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24-25 के तहत मुआवजे का आदेश देना उचित लगता है, तो वो ऐसा कर सकता है.'

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी विवाह के वॉइड यानी अमान्य होने की स्थिति में भी मुआवजे का आदेश देने से कोर्ट मना नहीं कर सकता. हर केस के तथ्य अलग होते हैं, उन्हें देख कर ही फैसला लिया जाना चाहिए. हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24 (मुकदमे के दौरान अंतरिम मुआवजा) और 25 (विवाह की समाप्ति पर स्थायी मुआवजा) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ये स्पष्टता दी है.
क्या है वॉइड मैरिज?
हिंदू मैरिज एक्ट में कुछ शादियों को अमान्य (void) कहा गया है. पति या पत्नी के जीवित रहते की गई दूसरी शादी, प्रतिबंधित रिश्तों (पिता-बेटी, मां-बेटा, भाई-बहन आदि) में की गई शादी और सपिंडा (माता या पिता की तरफ से एक पूर्वज वाले लोगों की कुछ पीढ़ियों) में हुई शादी वॉइड मैरिज की श्रेणी में आती हैं. ऐसी शादी कानूनन अमान्य या शून्य होती है. सीधे शब्दों में कहें तो इस तरह की शादी का कोई कानूनी दर्जा नहीं होता.
कोर्ट के सामने सवाल
इसी तरह कुछ शादियों को वॉइडेबल कहा गया है. ऐसी शादी वैध तो होती है, लेकिन कुछ कानूनी कमियों के चलते उन्हें कोर्ट के जरिए अमान्य घोषित करवाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों को बेंच के सामने सवाल ये था कि वॉइड या वॉइडेबल विवाह के मामले में क्या पति या पत्नी मुआवजे का हकदार हो सकता है? जजों ने इसका उत्तर 'हां' में दिया है.
पति की दलील
जिस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया है, उसमें पति का कहना था कि जो शादी कानूनन शून्य है, उसके लिए मुआवजे का आदेश नहीं दिया जा सकता. पति की तरफ से दलील दी गई कि पहली शादी की जानकारी छुपा कर शादी करने या प्रतिबंधित रिश्तों में विवाह करने वालों को मुआवजे के प्रावधान का लाभ नहीं मिल सकता.
'तथ्यों की पड़ताल जरूरी'
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओका, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने पति की तरफ से दी गई दलील को स्वीकार नहीं किया. जजों ने कहा, 'हर मामले के तथ्य अलग होते हैं. शादी के कानूनन अमान्य होने के चलते मुआवजे की मांग को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता. अगर कोर्ट को तथ्यों की पड़ताल के बाद हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24 या 25 के तहत मुआवजे का आदेश देना उचित लगता है, तो वह ऐसा कर सकता है.
'अवैध पत्नी कहना गलत'
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर विचार करते हुए कई पुराने फैसलों की भी चर्चा की. इनमें से एक 2004 में बॉम्बे हाई कोर्ट से आया 'भाऊसाहेब बनाम लीलाबाई" फैसला है. इस केस में हाई कोर्ट ने मुआवजे का आदेश देने से मना करते हुए दूसरी पत्नी के लिए 'अवैध पत्नी' और 'वफादार रखैल' जैसे शब्दों का प्रयोग किया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाई कोर्ट को ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए था. जब पति के लिए 'अवैध पति' का प्रयोग नहीं किया जाता तो पत्नी के लिए ऐसा कह कर उसके सम्मान को ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती.
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Source: IOCL
























