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Supreme Court: 'HC जल्द करे सुनवाई', SC ने कुतुब मीनार परिसर की मस्जिद में नमाज अदा करने की इजाजत मांगने वाली याचिका पर सुनवाई से किया इंकार

SC On Masjid Quwwatul Islam: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हमें उस मामले में दखल देने का कोई अच्छा आधार नहीं मिला जो पहले से ही हाई कोर्ट के समक्ष लंबित है. एसएलपी खारिज की जाती है.

SC On Masjid Quwwatul Islam: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (5 अप्रैल) को कुतुब मीनार परिसर के अंदर, लेकिन कुतुब एन्क्लेव के बाहर मौजूद एक मस्जिद में नमाज अदा करने की इजाजत मांगने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. हालांकि, इस मुद्दे के पहले से ही दिल्ली हाई कोर्ट में होने से एससी ने इस याचिका पर हाई कोर्ट से जल्द से जल्द विचार करने का आग्रह किया है.

अदालत ने ये बात दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रबंध समिति बनाम भारत संघ और अन्य. एसएलपी (सी) संख्या 5671/2023 केस को लेकर कही है.

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने? 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "हमें उस मामले में दखल देने का कोई अच्छा आधार नहीं मिला जो पहले से ही हाई कोर्ट के समक्ष लंबित है. एसएलपी खारिज की जाती है. हालांकि, मामले की परिस्थितियों में, हम हाई कोर्ट से आग्रह करते हैं कि वह यथासंभव शीघ्रता से अपनी काबिलियत के आधार पर कानून के मुताबिक फैसला ले." 

दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रबंध समिति की तरफ से पेश वकील ने जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच को केस के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कोर्ट से कहा कि केंद्र सरकार के अधिकारियों ने अवैध तौर पर अचानक कुतुब एन्क्लेव के बाहर मौजूद एक मस्जिद में नमाज अदा करना बंद करवा दिया. तब जस्टिस मुरारी ने उनसे पूछा, ''इसे एक आदेश से रोका गया है?'' इस पर दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रबंध समिति की तरफ से पेश वकील ने जवाब दिया, "कोई नोटिस नहीं, कोई आदेश नहीं, बिल्कुल अवैध और जबरदस्ती."

उन्होंने SC की बेंच को इस बारे में भी सूचना दी कि लगभग एक साल पहले इस संबंध में दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर की गई थी, लेकिन मामला प्रभावी तौर से आगे नहीं बढ़ा है. उन्होंने कोर्ट से निवेदन किया कि मामले में दायर नई एप्लीकेशन रमजान के मद्देनजर थी.

इस पर हाई कोर्ट ने विचार नहीं किया है. हाई कोर्ट ने इसे लेकर बीते की महीने 7 मार्च को एक ऑर्डर पास किया. इसमें कोर्ट ने लिखा कि इसी तरह की राहत की मांग करने वाली एक अन्य एप्लीकेशन दायर की गई है और ये उसके पास लंबित है. उसी के मद्देनजर कोर्ट ने नई एप्लीकेशन को पहले से ही इस तरह की लंबित एप्लीकेशन के साथ 21 अगस्त, 2023 लिस्ट करने का निर्देश दिया. वकील ने तर्क दिया कि अगस्त में एप्लीकेशन की सुनवाई करने से यह अनिवार्य रूप से बेकार हो जाएगा.

वकील ने कोर्ट की बेंच से मस्जिद में नमाज अदा करने की इजाजत देने का आग्रह किया. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को ये इशारा करते हुए कि वो तर्कों को एकपक्षीय तौर पर स्वीकार नहीं कर सकता. बेंच ने उसे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने को कहा जहां ये मामला पहले से ही लंबित है.

क्या है मामला?

याचिकाकर्ता का कहना है कि मस्जिद का नाम 'मुगल मस्जिद' है, जो एक विधिवत गजट अधिसूचित वक्फ संपत्ति है. इसकी अधिसूचना 16 अप्रैल 1970 में जारी की गई थी. इसके लिए एक विधिवत तौर नियुक्त इमाम और मोअज़िन (अजान देने वाले) है. यह कुतुब परिसर के अंदर मौजूद है. हालांकि, यह कुतुब बाड़े (Qutub Enclosure) के बाहर है और मशहूर 'मस्जिद कुव्वत-उल-इस्लाम' नहीं है. 

दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष याचिका में उस कार्रवाई को चुनौती दी गई है, जिसमें अधिकारियों ने "कानून में किसी भी अधिकार के बगैर", 6 मई को नमाजियों की संख्या को 5 तक सीमित कर दिया. इसके बाद फिर 13 मई को मस्जिद में बगैर किसी सूचना या आदेश के नमाज अदा करने को पूरी तरह से रोक दिया. 

हाई कोर्ट के सामने पेश होकर, केंद्र सरकार ने दावा किया था कि विवादित मस्जिद एक संरक्षित स्मारक है और उसी मस्जिद से संबंधित एक मामले पर साकेत कोर्ट का विचार कर रहा है. वक्फ बोर्ड ने यह कहते हुए केंद्र की सबमिशन का विरोध किया कि साकेत कोर्ट जिस मुद्दे पर विचार कर रहा है वह एक अलग मस्जिद के संबंध में है.

हाई कोर्ट को यह भी जानकारी दी गई था कि संबंधित मस्जिद का अधिसूचना में संरक्षित स्मारकों की सूची अधिसूचित करने में कोई उल्लेख नहीं है. वक्फ बोर्ड के मुताबिक, यदि विचाराधीन मस्जिद संरक्षित स्मारक भी है, तो प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 की धारा 16 के अनुसार प्रासंगिक नियमों के साथ पठित, यह उत्तरदाताओं का परम कर्तव्य है कि वे धार्मिक प्रकृति, मस्जिद से जुड़ी पवित्रता के तहत  इबादत करने वालों के इकट्ठा होने और नमाज अदा करने के अधिकार की रक्षा करें. 

याचिका में कहा गया है, "मुस्लिमों को तत्काल मस्जिद में नमाज अदा करने के अवसर से वंचित करना ताकत के बल पर कुछ भी हासिल करने के नजरिया को दिखाता है, जो संविधान में निहित उदार मूल्यों और आम लोगों के जीवन के हर पहलू में दिखाई पड़ने वाले उदारवाद के उलट है."

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