क्या अपनी मर्जी से समलैंगिक सेक्स को इजाजत मिलेगी?
पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दलील देते हुए कहा कि धारा 377 में 'प्राकृतिक' यौन संबंध का ज़िक्र है और समलैंगिकता भी प्राकृतिक ही है, यह अप्राकृतिक नहीं है.

नई दिल्ली: समलैंगिकता को अपराध के दायरे में लाने वाली धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की सुनवाई शुरू हो गयी है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता यानी जो लोग इसको अपराध के दायरे से बाहर लाने की मांग कर रहे हैं, उनकी तरफ से पेश हो रहे पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दलील देते हुए कहा कि धारा 377 में 'प्राकृतिक' यौन संबंध का ज़िक्र है और समलैंगिकता भी प्राकृतिक ही है. यह अप्राकृतिक नहीं है. पश्चिमी दुनिया में इस विषय पर काफी रिसर्च भी हुई है इस तरह की यौन प्रवृत्ति के वंशानुगत कारण होते हैं.
इस केस में जेंडर से कोई लेना-देना नहीं है. यह पैदा होने के साथ ही इंसान में आती है. यौन रुझान और जेंडर अलग-अलग चीजें हैं और यह केस यौन प्रवृत्ति से संबंधित है. धारा 377 के अपराध में आने से एलजीबीटी समुदाय अपने आप को अघोषित अपराधी महसूस करते हैं और समाज भी इन्हें अलग नजर से देखता है.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मुकुल रोहतगी से पूछा कि क्या यह उनका तर्क है कि समलैंगिकता प्राकृतिक होती है? जवाब में रोहतगी ने महाभारत के शिखंडी और अर्धनारीश्वर का भी उदाहरण दिया कि कैसे धारा 377 यौन नैतिकता की गलत तरह से व्याख्या करती है. धारा 377 मानवाधिकारों का हनन करती है. समाज के बदलने के साथ ही नैतिकताएं बदल जाती हैं. हम कह सकते हैं कि 160 साल पुराने नैतिक मूल्य आज के नैतिक मूल्य नहीं होंगे.
लॉ कमिशन की रिपोर्ट में भी कहा गया कि ये अपराध की श्रेणी में नहीं आता और न ही केंद्र सरकार ने हाइकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. अगर ये कुदरती है तो अपराध की श्रेणी में कैसे आ सकता है, अगर किसी की sexual orientation अलग है तो उसको अपराध कैसे माना जा सकता है जबकि स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कहा गया कि ये बीमारी नही बल्कि कुदरती है.
समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं है. यहां 2 समलैंगिकों के साथ में रहने के अधिकार का मामला है. हालांकि मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट की टिप्पणियां भी सामने आईं. कोर्ट ने कहा समलैंगिकता केवल इंसानों में ही नहीं बल्कि जानवरों में भी देखने को मिलती है. इस बीच कोर्ट ने भी साफ कर दिया कि यह मामला केवल धारा 377 की वैधता से जुड़ा हुआ है और इसका शादी या दूसरे नागरिक अधिकारों से लेना-देना नहीं है.
ये लोगो का निजी अधिकार हो सकता है पर इसको लेकर फिलहाल जो कानून है वो हमको देखना चाहिए. फिलहाल अभी इस मामले पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना कोई भी जवाब नहीं दिया है सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आगे भी जारी रहेगी.
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