जम्मू कश्मीर में इंटरनेट पर पाबंदी की तुरंत समीक्षा हो, यह लोगों की अभिव्यक्ति का जरिया- सुप्रीम कोर्ट
जम्मू कश्मीर में अनुछेद 370 हटाए जाने के बाद लगी पाबंदी पर सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि इंटरनेट पर लगाई गई पाबंदी की तुरंत समीक्षा की जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि जिन इलाकों में इस पाबंदी को जारी रखने का फैसला हो, वहां हर हफ्ते इसकी समीक्षा होनी चाहिए.

नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर में अनुछेद 370 हटाए जाने के बाद लगी पाबंदी पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम आदेश दिया है. कोर्ट ने वहां इंटरनेट पर लगाई गई पाबंदी की तुरंत समीक्षा करने को कहा है. कोर्ट ने यह भी कहा है कि जिन इलाकों में इस पाबंदी को जारी रखने का फैसला हो, वहां हर हफ्ते इसकी समीक्षा होती रहे. सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि इंटरनेट लोगों के लिए अभिव्यक्ति का ज़रिया है. सरकार को इस पर रोक का आदेश देते वक्त लोगों के मौलिक अधिकार और सुरक्षा चिंताओं में संतुलन बनाना चाहिए.
कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और कश्मीर टाइम्स के संपादक अनुराधा भसीन की याचिका पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना है सरकार के किसी भी फैसले से लोगों को असहमति जताने का अधिकार है. इंटरनेट उस असहमति को व्यक्त करने का एक साधन है. कोर्ट ने यह भी कहा है कि आज के दौर में कई तरह के कारोबार इंटरनेट पर आधारित हैं. ऐसे में इंटरनेट पर रोक संविधान के अनुच्छेद 19 1(g) में दिए रोज़गार और जीवनयापन के मौलिक अधिकार में बाधा डालते हैं. इंटरनेट पर कोई भी रोक सिर्फ उचित कारण से ही लगाई जानी चाहिए.
मामले की सुनवाई करने वाली 3 जजों की बेंच के अध्यक्ष जस्टिस एन वी रमना ने कहा, “जहां पर सुरक्षा का गंभीर खतरा हो, वहां इंटरनेट पर रोक लगाई जा सकती है. लेकिन इसकी भी समय सीमा होनी चाहिए. बिना उचित वजह के और अनिश्चित काल तक लोगों की अभिव्यक्ति बाधित करने को सही नहीं ठहराया जा सकता.''
कोर्ट का आदेश
- सरकार इंटरनेट बैन रूल्स के मुताबिक एक कमिटी बनाए जो पाबंदी से जुड़े आदेशों की तुरंत समीक्षा करे
- कमिटी के मुताबिक जहां इंटरनेट पर रोक लगाए रखना अभी ज़रूरी हो, वहां हर हफ्ते इसकी समीक्षा होती रहे
- जहां इंटरनेट पाबंदी बनी रहेगी, वहां भी इंटरनेट आधारित बुनियादी सरकारी सेवाओं को मुहैया करवाया जाए
सुप्रीम कोर्ट ने बिना वजह का खुलासा किए जगह-जगह धारा 144 के इस्तेमाल को भी गलत बताया. कोर्ट ने कहा, “लोगों को बेवजह कहीं आने-जाने से या एक जगह जमा होने से रोकना सही नहीं है. बहुत ज़रूरी होने पर ही ऐसे कदम उठाने चाहिए. मजिस्ट्रेट रूटीन में धारा 144 लगाने का आदेश नहीं दे सकते. बार बार उसे बेवजह बढ़ाते जाना कानूनी शक्ति का दुरुपयोग है.'' कोर्ट ने सरकार से धारा 144 लागू करने के आदेशों की भी समीक्षा करने के लिए कहा है.
इंटरनेट पर बैन और धारा 144 लागू करने के आदेशों को सार्वजनिक न करने पर कोर्ट ने नाराजगी जताई. कोर्ट ने कहा, “इस तरह के सभी आदेश सार्वजनिक होने चाहिए ताकि लोग उन्हें देख सकें. ज़रूरी लगने पर उसे कोर्ट में चुनौती दे सकें. लोगों पर पाबंदी लगाने वाला हर सरकारी आदेश न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है. लोगों को उन्हें कोर्ट में चुनौती देने का हक है.''
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