विधवा मेकअप क्यों नहीं कर सकतीं? सुप्रीम कोर्ट ने खोल दी 39 साल पुराने केस की फाइल और HC के टिप्पणियां पढ़कर रहा गया हैरान
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं, जिससे यह साबित हो सके कि पीड़िता उसी घर में रह रही थी, जहां से उसकी किडनैपिंग का दावा किया जा रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (25 सितंबर, 2024) को पटना हाईकोर्ट की एक टिप्पणी पर आपत्ति जताई है. पटना हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए कहा था कि विधवा महिला को मेकअप की जरूरत नहीं है. पटना हाईकोर्ट एक किडनैपिंग और हत्या के मामले में दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें पटना हाईकोर्ट ने सात लोगों को दोषी करार दिया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन लोगों को बरी करने का फैसला सुनाया है. कोर्ट का कहना है कि इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं कि इन लोगों ने ही महिला की हत्या की है.
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. साल 1985 के इस मामले में एक महिला का कथित तौर पर उसके पिता के घर पर कब्जा करने के लिए अपहरण कर लिया गया था और बाद में उसकी हत्या कर दी गई थी. हाईकोर्ट ने मामले में पांच लोगों की दोषसिद्धि को बरकरार रखा था और दो अन्य सह-आरोपियों को बरी करने के निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट ने दोनों व्यक्तियों को दोषी ठहराया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जिन्हें पहले एक निचली अदालत ने सभी आरोपों से बरी कर दिया था.
न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं मिले हैं कि महिला उस घर में रह रही थी, जहां से उसके अपहरण की बात कही जा रही है. बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट को कपड़े चप्पल कोई भी निजी सामान वहां से नहीं मिला, जो साबित करता हो कि ये पीड़िता का था. हाईकोर्ट महिला के मामा और एक अन्य रिश्तेदार और जांच अधिकारी की गवाही के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंच गया कि वह उसी घर में रह रही थी. हालांकि, घर के उसी हिस्से में एक अन्य विधवा महिला भी रह रही थी और जब मेकअप का सामान मिला तो कोर्ट ने यह कहकर टाल दिया कि ये सामान विधवा महिला का नहीं हो सकता क्योंकि इसकी उसको जरूरत नहीं.
बेंच ने अपने फैसले में कहा, 'हमारे ख्याल से हाईकोर्ट की टिप्पणी न सिर्फ कानूनी रूप से असमर्थनीय है, बल्कि अत्यधिक आपत्तिजनक भी है. इस तरह की व्यापक टिप्पणी कानून की अदालत से अपेक्षित संवेदनशीलता और तटस्थता के अनुरूप नहीं है, विशेष रूप से तब जब रिकॉर्ड पर मौजूद किसी साक्ष्य से ऐसा साबित न हो.'
बेंच ने कहा कि पीड़िता की अगस्त 1985 में मुंगेर जिले में मृत्यु हो गई थी और उसके रिश्तेदार ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उसे सात लोगों ने उनके घर से अगवा कर लिया था. पीठ ने कहा कि प्राथमिकी दर्ज की गई और बाद में सात आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया. निचली अदालत ने हत्या सहित अन्य अपराधों के लिए पांच आरोपियों को दोषी ठहराया था, जबकि अन्य दो को सभी आरोपों से बरी कर दिया था. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपियों द्वारा हत्या किए जाने को साबित करने के लिए कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य रिकॉर्ड में नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने सातों आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया और निर्देश दिया कि अगर वे हिरासत में हैं तो उन्हें तुरंत रिहा किया जाए.
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