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Maharashtra Politics: 'राज्यपाल और न्यायालय ने सत्य को खूंटी में टांग दिया' - सामना में शिवसेना ने उठाए शिंदे सरकार पर सवाल

Maharashtra Politics: सामना में आगे लिखा गया है कि, महाराष्ट्र के विधायकों को पहले सूरत ले गए. वहां से उन्हें असम पहुंचाया. अब वे गोवा आ गए हैं और उनका स्वागत भाजपा वाले मुंबई में कर रहे हैं.

Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की सत्ता अब शिवसेना (Shiv Sena) के बागी विधायकों के नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के हाथों में जा चुकी है. अपनों की बगावत के बाद शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. जिसके बाद शिंदे ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का ऐलान किया और मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली. इसके बाद से ही एकनाथ शिंदे शिवसेना के निशाने पर हैं. अब शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में पूरे घटनाक्रम का जिक्र किया है और पूछा है कि, सत्ता तो पा ली, लेकिन आगे क्या?

उद्धव ठाकरे ने नहीं खेला आंकड़ों का खेल
शिवसेना ने सामना में लिखा है कि, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद एक पल में मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. वे भी कुछ समय रुक कर लोकतंत्र की जीत के लिए आंकड़ों का खेल खेल सकते थे. विश्वासमत प्रस्ताव के समय भी हंगामा खड़ा करके कुछ विधायकों को निलंबित करवाकर वे सरकार बचा सकते थे, परंतु उन्होंने वह मार्ग नहीं चुना और अपने शालीन स्वभाव के अनुरूप भूमिका अपनाई. जिन्होंने दगाबाजी की वे करीब 24 लोग कल तक उद्धव ठाकरे की ‘जय-जयकार’ किया करते थे. इसके आगे भी कुछ समय तक दूसरों के भजन में व्यस्त रहेंगे.

राज्यपाल और सुप्रीम कोर्ट पर सवाल
सामना में आगे राज्यपाल और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी जिक्र किया गया है. संपादकीय में लिखा है कि, राज्यपाल और न्यायालय ने सत्य को खूंटी में टांग दिया और निर्णय सुनाया. इसलिए विधि मंडल की दीवारों पर सिर फोड़ने में कोई अर्थ नहीं था. पार्टी से बाहर निकलकर दगाबाजी करने वाले विधायकों के खिलाफ दल-बदल कानून के तहत कार्रवाई शुरू करते ही सर्वोच्च न्यायालय ने उसे रोक दिया तथा दल-बदल कार्रवाई किए बगैर बहुमत परीक्षण करें, ऐसा कहा. इसलिए विधि मंडल की दीवारों पर सिर फोड़ने में कोई अर्थ नहीं था. दल बदलने वाले, पार्टी के आदेशों का उल्लंघन करने वाले विधायकों की अपात्रता से संबंधित फैसला आने तक सरकार को बहुमत सिद्ध करने के लिए कहना संविधान से परे है. 

परंतु संविधान के रक्षक ही ऐसे गैर कानूनी कृत्य करने लगते हैं और ‘रामशास्त्री’ कहलाने वाले न्याय के तराजू को झुकाने लगते हैं, तब किसके पास अपेक्षा से देखना चाहिए? इस तमाम पार्श्वभूमि में अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा कही गई दो बातें याद आती हैं. अटल बिहारी की सरकार सिर्फ एक मत से गिरने के दौरान ही अटल बिहारी विचलित नहीं हुए. ‘तोड़-फोड़ करके हासिल किए गए बहुमत को मैं चिमटे से भी स्पर्श नहीं करूंगा’, ऐसा उन्होंने कहा ही. लेकिन उन्होंने आगे जो कहा उसे आज के भाजपाई नेताओं के लिए स्वीकार करना जरूरी है. उन्होंने लोकसभा के सभागृह में कहा, ‘मंडी सजी हुई थी, माल भी बिकने को तैयार था लेकिन हमने माल खरीदना पसंद नहीं किया!’ अटल जी की विरासत अब खत्म हो गई है.

बाजार में सभी रक्षक बिकने के लिए तैयार
सामना में आगे लिखा गया है कि, महाराष्ट्र के विधायकों को पहले सूरत ले गए. वहां से उन्हें असम पहुंचाया. अब वे गोवा आ गए हैं और उनका स्वागत भाजपा वाले मुंबई में कर रहे हैं. देश की सीमा की रक्षा के लिए उपलब्ध हजारों जवान खास विमान से मुंबई हवाई अड्डे पर उतरे. इतना सख्त बंदोबस्त केंद्र सरकार कर रही है, तो किसके लिए? जिस पार्टी ने जन्म दिया उस पार्टी से, हिंदुत्व से, बालासाहेब ठाकरे से द्रोह करने वाले विधायकों की रक्षा के लिए? हिंदुस्तान जैसे महान देश और इस महान देश का संविधान अब नैतिकता के पतन से ग्रसित हो गया है. ये परिस्थितियां निकट भविष्य में बदलेंगी ऐसे संकेत तो नजर नहीं आ रहे हैं क्योंकि बाजार में सभी रक्षक बिकने के लिए उपलब्ध हैं.

देवेंद्र फडणवीस को लेकर हैरानी
संपादकीय में फडणवीस को डिप्टी सीएम बनाए जाने पर भी सवाल उठाए गए हैं. इसमें लिखा गया है कि, महाराष्ट्र में गुरुवार को जो हुआ उससे सत्ता ही सर्वस्व और बाकी सब झूठ इस पर मुहर लग गई. सत्ता के लिए हमने शिवसेना से दगाबाजी नहीं की, ऐसा कहने वालों ने ही मुख्यमंत्री पद का मुकुट खुद पर चढ़ा लिया. वह भी किसके समर्थन से, तो इस पूरी बगावत से हमारा कोई संबंध नहीं है, ऐसा भाव जो सरलता से दिखा रहे थे उनकी शह पर. मतलब शिवसेना से संबंधित नाराजगी वगैरह यह सब बहाना था. हमें हैरानी होती है तो देवेंद्र फडणवीस को लेकर. उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में वापस आना था परंतु बन गए उपमुख्यमंत्री. दूसरी बात ये है कि यही ढाई-ढाई वर्ष मुख्यमंत्री बांटने का फॉर्मूला चुनाव से पहले दोनों ने तय किया था, तो फिर उस समय मुख्यमंत्री पद को लेकर युति क्यों तोड़ी? 

ठीक है, अनैतिक मार्ग से ही क्यों न हो तुमने सत्ता हासिल की, परंतु आगे क्या? यह सवाल बचता ही है. इसका जवाब जनता को देना ही होगा. कौरवों ने द्रौपदी को भरी सभा में खड़ा करके बेइज्जत किया व धर्मराज सहित सभी निर्जीव बने ये तमाशा देखते रहे. ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र में हुआ. परंतु आखिरकार भगवान श्रीकृष्ण अवतरित हुए. उन्होंने द्रौपदी की इज्जत और प्रतिष्ठा की रक्षा की. जनता जनार्दन भी श्रीकृष्ण की तरह अवतार लेगी और महाराष्ट्र की इज्जत लूटने वालों पर सुदर्शन चलाएगी. 

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