Sena vs Sena Case: शिवसेना विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, मामला 5 जजों की संविधान पीठ को सौंपा
Supreme Court: महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के विधायकों की बगावत और उसके बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के इस्तीफे से पैदा हुई स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं.

Supreme Court: शिवसेना के उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे विवाद से जुड़े मामलों पर अब 5 जजों की संविधान पीठ सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने कहा है कि सबसे पहले संविधान पीठ यही तय करेगी कि शिवसेना के चुनाव चिह्न को लेकर दोनों गुटों के दावे पर चुनाव आयोग अपनी कार्रवाई जारी रखे या फिलहाल उसे स्थगित रखे. यह सुनवाई गुरुवार, 25 अगस्त को होगी.
कई अहम सवालों पर होनी है सुनवाई
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के विधायकों की बगावत और उसके बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के इस्तीफे से पैदा हुई स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं. इन याचिकाओं में शिंदे कैंप के 16 विधायकों की अयोग्यता, एकनाथ शिंदे को सरकार बनाने के लिए राज्यपाल के निमंत्रण, सदन में नए स्पीकर के चुनाव की गलत प्रक्रिया जैसे कई मसले उठाए गए हैं. लेकिन अब इन सबसे अहम यह मसला हो गया है कि चुनाव आयोग ने असली शिवसेना अपने साथ होने के एकनाथ शिंदे कैंप के दावे पर कार्यवाही शुरू कर दी है और उद्धव ठाकरे गुट से जवाब मांगा है.
आयोग की कार्रवाई रोकने की मांग
मामला संविधान पीठ को सौंपे जाने का आदेश आने के बाद उद्धव गुट के वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इस बात पर जोर दिया कि चुनाव आयोग में पार्टी के चुनाव चिन्ह के आवंटन को लेकर चल रही कार्रवाई रोक दी जाए. सिब्बल ने दलील दी कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके गुट के विधायकों की अयोग्यता का मसला अभी लंबित है. ऐसे में उस पर फैसला हुए बिना चुनाव आयोग को असली पार्टी पर फैसला लेने से रोका जाना चाहिए.
शिंदे कैंप ने किया विरोध
शिंदे गुट के लिए पेश वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल ने कहा कि चुनाव आयोग अपने पास उपलब्ध कराए गए तथ्यों के आधार पर पार्टी के चुनाव चिन्ह को लेकर फैसला लेता है. यह आयोग का संवैधानिक काम है. उसे इससे नहीं रोकना चाहिए. इस पर चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली की बेंच ने कहा कि 2 दिन में कोई आसमान नहीं टूट पड़ेगा. चुनाव आयोग संविधान पीठ के आदेश का इंतज़ार कर ले.
स्पीकर के अधिकार का सवाल
मामले में सबसे पहली याचिका एकनाथ शिंदे ने ही दाखिल की थी. उस याचिका में यह कहा गया था कि विधानसभा के डिप्टी स्पीकर ने उनके गुट के विधायकों को अयोग्यता का जो नोटिस भेजा है, वह गलत है. शिंदे ने कहा था कि डिप्टी स्पीकर को पद से हटाने का प्रस्ताव पहले ही भेजा जा चुका था, ऐसे में नबाम रेबिया मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चलते वह विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर विचार करने की बात करते हुए डिप्टी स्पीकर को फैसला लेने से रोक दिया था. इस बीच राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हो गया. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ को सुनवाई के सवाल सौंपते हुए कहा है कि वह इस बात पर विचार करें कि स्पीकर के अधिकारों पर भी विचार करे. यह तय करे कि अगर स्पीकर के खिलाफ पद से हटाने का प्रस्ताव लंबित हो, तब वह विधायकों की अयोग्यता को लेकर निर्णय ले सकता है या नहीं?
फिलहाल शिंदे सरकार को खतरा नहीं
सुप्रीम कोर्ट की संविधान के सबसे पहले इस बात को तय करेगी कि चुनाव आयोग शिवसेना के चुनाव चिन्ह को लेकर अपनी कार्रवाई जारी फिलहाल जारी रखे या नहीं. उसके बाद संविधान यह तय करेगी कि उसके आगे की सुनवाई की रूपरेखा क्या होगी और उसे कब तक पूरा किया जाएगा. संविधान पीठ की तरफ से सुनवाई पूरी करने में लंबा समय लग सकता है. शिंदे की बगावत से लेकर अब तक महाराष्ट्र की राजनीतिक परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं. इस वक्त बीजेपी के समर्थन से शिंदे की बहुमत वाली सरकार महाराष्ट्र में है. एकनाथ शिंदे सरकार को तभी खतरा हो सकता है जब संविधान पीठ यह तय कर दे कि जिस समय शिंदे और उनके विधायकों ने सरकार बनाई, उस समय वह विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य थे. चूंकि इस पहलू पर फैसला आने में अभी समय लग सकता है. ऐसे में फिलहाल शिंदे सरकार को तुरंत कोई खतरा नजर नहीं आ रहा है.
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Source: IOCL























