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G20 At Rajghat: पीएम मोदी के साथ राजघाट क्यों नहीं गए सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस? जानें वजह

G20 Leaders At Rajghat: जी20 शिखर सम्मेलन में शामिल होने आए नेता राजघाट पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे, लेकिन सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस नहीं गए. जानकारों ने इसके पीछे की वजह बताई है.

Saudi Arabia Crown Prince: जी20 शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन यानी रविवार (10 सितंबर) को समूह के नेता राजधानी दिल्ली स्थित महात्मा गांधी के स्मारक स्थल राजघाट पर बापू को श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे, लेकिन सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान बिन अब्दुलअजीज अल-सऊद वहां नजर नहीं आए.

आखिर मोहम्मद बिन सलमान पीएम मोदी के साथ राजघाट क्यों नहीं गए, इसे लेकर कई अटकलें लगाई जा रही हैं. एक अटकल यह भी है कि क्या सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस बापू का सम्मान नहीं करते हैं? 

विचारधारा हो सकती हैं वजह

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जानकारों की नजर में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस का राजघाट पर न पहुंचना महात्मा गांधी के प्रति अनादर का मामला नहीं है, बल्कि उनकी सलफी विचारधारा कारण हो सकती है.

G20 At Rajghat: पीएम मोदी के साथ राजघाट क्यों नहीं गए सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस? जानें वजह

क्या है सलफी विचारधारा?

रिपोर्ट में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एक पूर्व प्रोफेसर अख्तरुल वासे के हवाले से सलफी विचारधारा के बारे में बताया गया है. प्रोफेसर के मुताबिक, सलफी या अहले हदीस विचारधारा वाले किसी समाधि या मजार पर नहीं जाते हैं. एक और विशेषज्ञ ने बताया कि सलफी विचारधारा में कब्र को पक्का बनाना भी गलत है.

इस्लामी न्यायशास्त्र के पांच सिद्धांतों से खुद को अलग मानते हैं सलफी

रिपोर्ट कहती है कि सलफी या अहले हदीस विचारधारा वाले खुद को इस्लामी न्याशास्त्र (फिक्ह) के पांच सिद्धांत मानने वालों से अलग मानते हैं. फिक्ह के पांच सिद्धांतों के नाम हनफी, शफई, मालिकी, हम्बली और जाफरी हैं. इनमें जाफरी को छोड़कर चारों सिद्धांत सुन्नी समुदाय से संबंधित है. जाफरी सिद्धांत को शिया समुदाय वाले मानते हैं. भारत में ज्यादातर मुसलमानों के बीच फिक्ह के हनफी सिद्धांत को माना जाता है.

फिक्ह के सिद्धांतों को किस रूप में देखते हैं सलफी या अहले हदीस?

सलफी या अहले हदीस विचारधारा वाले मानते हैं कि फिक्ह के पांच सिद्धांतों वाली विचारधाराएं इस्लाम की आखिरी पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के सदियों बाद अस्तित्व में आईं. वे इन्हें विभिन्न इमामों की व्याख्याओं के तौर पर देखते हैं.

उन्हें लगता है कि पैगंबर मोहम्मद के जीवन से अलग बहुत से बातें इनमें शामिल हो गई होंगी. अहले हदीस पवित्र ग्रंथ कुरान और हदीस के हिसाब से इस्लान को मानते हैं. पैगंबर मोहम्मद के कथनों या कार्यों का वर्णन करने वाले संग्रह को हदीस कहते हैं.

इन तीन जगहों पर ही जाना उचित समझते हैं सलफी या अहले हदीस

प्रोफेसर वासे के मुताबिक, सलफी या अहले हदीस विचारधारा वाले तीन जगहों पर जाना ही उचित समझते हैं. ये जगह हैं- मस्जिदुल हराम जिसे काबा भी कहते हैं, मस्जिदुल नबवी और मस्जिदुल अक्सा. काबा मक्का में है. इसका संबंध पैगंबर इब्राहिम से बताया जाता है. मस्जिदुल नबवी मदीना में है, जहां पैगंबर मोहम्मद की कब्र तो है लेकिन उसे पक्का नहीं किया गया है. मस्जिदुल अक्सा येरुशलम में है. मुस्लिमों में ऐसी मान्यता है कि इसी जगह से पैगंबर जन्नत को गए.

यह भी पढ़ें- जी20 सम्मेलन में यूक्रेन पर भारत के कूटनीतिक दांव के आगे क्यों पस्त हुए पश्चिमी देश?

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