Rajasthan Election 2023: पीएम मोदी के इस मास्टर स्ट्रोक से खिसक सकता है कांग्रेस का गुर्जर वोट बैंक, क्या सचिन पायलट पार लगा पाएंगे नैया?
Rajasthan Election: राजस्थान में गुर्जर 40 सीटों पर नतीजे प्रभावित कर सकते हैं, इनका सबसे ज्यादा दबदबा अजमेर, टोंक, करौली, अलवर, धौलपुर, दौसा व सवाई माधोपुर में है. 2018 में इन पर कांग्रेस आगे थी.

Rajasthan Election 2023 News: राजस्थान में आज (25 नवंबर) को मतदान प्रक्रिया जारी है. यहां शुरू से ही कांग्रेस और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर की बात कही जा रही है, लेकिन चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में यह मुकाबला और जोरदार हो गया. दरअसल, पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से राजेश पायलट का नाम लेना और कांग्रेस की ओर से उन्हें अपमानित करने के आरोप के बाद इस राज्य में गुर्जर वोटों की लड़ाई और तेज हो गई थी.
बता दें कि 6-7 प्रतिशत की आबादी वाले गुर्जर पूर्वी राजस्थान की 40 सीटों के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं. माना जाता है कि गुर्जरों ने पारंपरिक रूप से लगातार भारतीय जनता पार्टी का ही समर्थन किया है, लेकिन 2018 में सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने की संभावना के बीच अधिकतर गुर्जर वोट कांग्रेस के पक्ष में गए. उन्हें कांग्रेस का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया. कांग्रेस-राष्ट्रीय लोक दल ने संयुक्त रूप से 100 सीटें जीतीं, जिनमें से 42 सीटें पूर्वी राजस्थान से थीं.
इन सीटों पर गुर्जरों का दबदबा
गुर्जर वोटर राज्य की जिन 40 सीटों के नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है, उनमें मुख्य रूप से अजमेर, टोंक, करौली, अलवर, धौलपुर, दौसा और सवाई माधोपुर शामिल हैं. 2008 और 2013 में इन सीटों पर बीजेपी आगे थी, 2018 में कांग्रेस ने बढ़त हासिल कर ली. गुर्जर प्रभाव वाली 40 सीटों में से आठ शहरी इलाकों में और 32 ग्रामीण इलाकों में आती हैं. 2018 में कांग्रेस ने 12 गुर्जर उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जबकि भाजपा ने नौ गुर्जरों को मौका दिया. कांग्रेस के 12 में से सात गुर्जर उम्मीदवारों ने जीत हासिल की, जबकि भाजपा का कोई भी गुर्जर उम्मीदवार जीत नहीं सका. इस चुनाव में कांग्रेस ने 10 गुर्जर उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जबकि बीजेपी ने 11 गुर्जर उम्मीदवारों को टिकट दिया है.
गुर्जर और मीणा के बीच प्रतिद्वंद्विता से उलझा मामला
राजस्थान में मीणा समुदाय और गुर्जरों के बीच प्रतिद्वंद्विता है. ज्यादातर गुर्जर जहां बीजेपी के साथ जाते हैं, तो मीणा समुदाय कांग्रेस के साथ आते हैं. दोनों समुदायों के बीच 2006 से मनमुटाव और बढ़ा था, तब गुर्जर ने ओबीसी दर्जे की मांग की थी. राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण दोनों समुदाय एक-दूसरे के विरोधी को वोट देते हैं. जिन 40 सीटों पर गुर्जरों का दबदबा है, उन पर मीणा वोटर्स की भी अच्छी खासी आबादी है. ऐसे में गुर्जर वोट के खिसकने पर मीणा वोट काम आ सकता है.
बीजेपी ने इस तरह गुर्जरों को लुभाने की कोशिश की
चुनाव से पहले बीजेपी ने अपने प्रचार के दौरान गुर्जर वोटरों को साधने की पूरी कोशिश की. वसुंधरा राजे अक्सर रैलियों में कहती रहीं कि वह गुर्जरों की 'समधन' हैं. उनकी बहू इसी समुदाय से है. यही नहीं, 22 नवंबर को एक रैली को संबोधित करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर सचिन पायलट और उनके पिता को अपमानित करने का भी आरोप लगाकर गुर्जर वोट को बीजेपी की तरफ खींचने की कोशिश की. प्रधानमंत्री ने कांग्रेस को गुर्जर विरोधी तक कहा.
सचिन पायलट ने संभाला मोर्चा
पीएम के हमले के बाद सचिन पायलट ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि, पार्टी और जनता के अलावा किसी को उनकी चिंता करने की जरूरत नहीं है. उनके पिता जीवन भर एक समर्पित कांग्रेसी रहे. पीएम के बयान तथ्य से बहुत दूर हैं, उनका उद्देश्य केवल लोगों का ध्यान भटकाना है. वहीं सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि, बीजेपी शासन के दौरान फरवरी 2008 की झड़पों में गुर्जरों पर 22 बार गोलियां चलाई गईं, जिसमें 72 लोग मारे गए थे. तब बीजेपी की ही सरकार थी.
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Source: IOCL























